लेख : फरवरी 17, 2020.

 सद्‌गुरु: किसी व्यक्ति को, अपनी मान्यताओं द्वारा बनायी गयी मानसिकता के परे जा कर देखने और यह स्वीकार करने के लिये कि जीवन के मूल पहलुओं के बारे में भी वह कुछ नहीं जानता, अत्यधिक साहस की आवश्यकता होती है। क्या आप मानते हैं कि आप के पास दो हाथ हैं? या फिर, आप जानते हैं कि आप के पास दो हाथ हैं? आप अगर अपनी आँखों से उन्हें ना भी देखें, तो भी आप जानते हैं कि आप के पास दो हाथ हैं। यह बात आपको आपके अनुभव से पता है। पर जब बात ईश्वर की आती है तो आप को बताया गया है कि आप विश्वास कर लें। किसी ने भी आप को यह नहीं कहा है कि आप को दैविकता की खोज कर के पता लगाना चाहिये!

...जब बात ईश्वर की आती है तो आप को बताया गया है कि आप विश्वास कर लें। किसी ने भी आप को यह नहीं कहा है कि आप को दैविकता की खोज कर के पता लगाना चाहिये।

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किसी चीज़ में विश्वास कर लेना आप में कभी कोई परिवर्तन नहीं ला सकता। पर यदि आप उसका अनुभव कर लेते हैं तो फिर ये आप को पूरी तरह से परिवर्तित कर देगा। कोई अनुभव हुए बिना, आप कुछ भी विश्वास कर लें तो उसका कोई अर्थ नहीं है। मान लीजिये, आप के जन्म के समय से ही अगर मैं आप को लगातार यह बताता रहूँ कि मेरी छोटी उँगली ही ईश्वर है, तो जब भी मैं आप को अपनी छोटी उँगली दिखाऊँगा, आप दैवीय भाव से भर जायेंगे। और अगर, आप के जन्म के समय से ही, मैं आप को सिखाता रहूँ कि मेरी छोटी उँगली शैतान है, तो जब भी मैं आप को अपनी छोटी उँगली दिखाऊँगा, आप आतंकित हो जायेंगे। यही आप के मन की प्रकृति है।

आप अपने मन में कुछ भी सोचें, उसका कोई महत्व नहीं है। एक साधन की तरह ये ठीक है पर आख़िरकार इसका कोई महत्व नहीं है, क्योंकि ये आज एक रूप में होता है और कल दूसरे रूप में। मन अत्यंत तरल है, आप इससे कुछ भी बना सकते हैं। ये कैसे बनता है, वो इस बात पर आधारित है कि उस पर कैसे प्रभाव पड़ते हैं? अगर आप गहराई से देखें तो आप जिसे 'अपना मन' कहते हैं, वो एक ऐसी चीज़ है जिसे आप ने अपने आसपास के हज़ारों लोगों से उधार ले कर बनाया है। आप ने अपने इस मन को छोटे छोटे टुकड़ों और हिस्सों में इकट्ठा किया है। आप का मन बस आप की पृष्ठभूमि है - इस बात पर आधारित है कि आप किस तरह के परिवार से आते हैं, आप का शिक्षण एवं धर्म, देश या समाज जहाँ से आप हैं और वो दुनिया जिसमें आप रहते हैं।

आप जिसे 'मैं' कहते हैं वह व्यक्ति या व्यक्तित्व बस उन निष्कर्षों का पुलिंदा मात्र है, जो आप ने जीवन के बारे में निकाले हैं।

बुद्धिमत्ता बस जीवित रहने का साधन है। जीवित रहना आवश्यक है, पर पूर्ण संतोष देने वाला नहीं। यदि आप जीवन के ज्यादा गहरे आयामों में जाना चाहते हैं तो पहले आप को आवश्यक साधनों की ज़रूरत होगी। आप जीवन का अनुभव इन पाँच इंद्रियों से करते हैं - देख कर, सुन कर, स्वाद ले कर, छू कर और सूंघ कर। पर इनसे आप भौतिकता के परे कुछ भी नहीं जान सकते। सागर की गहराई आप किसी फुट स्केल से नहीं नाप सकते। और अभी, लोगों के साथ यही हो रहा है। जीवन के ज्यादा गहरे आयामों का पता वे बिना आवश्यक साधनों के लगाना चाहते हैं, और इसी कारण वे गलत निष्कर्ष निकाल लेते हैं।

लोग निष्कर्ष निकाल लेने के लिए उतावले होते हैं क्योंकि उनके पास अपना स्वयं का कुछ अनुभव नहीं होता। आप जिसे 'मैं' कहते हैं वह व्यक्ति या व्यक्तित्व बस उन निष्कर्षों का पुलिंदा मात्र है, जो आप ने जीवन के बारे में निकाले हैं। पर आप ने चाहे जो भी निष्कर्ष निकाले हैं आप गलत ही होंगें, क्योंकि जीवन, उनमें से किसी भी निष्कर्ष के दायरे में सही नहीं बैठता।

अगर इसको साधारण रूप में देखें, आप सिर्फ एक मनुष्य ले लें। मान लीजिये, आप किसी से 20 साल पहले मिले थे, और वो जो कुछ भी कर रहा था, वो आप को पसंद नहीं आया। तो आप ने निष्कर्ष निकाल लिया कि वह अच्छा आदमी नहीं था। अब मान लीजिये, आप उसी व्यक्ति से 20 साल बाद, आज मिले। हो सकता है कि वो अब एक अद्भुत व्यक्ति हो पर आप का मन आप को उस व्यक्ति का अनुभव उस रूप में नहीं करने देगा जैसा वह अब है। जैसे ही आप एक निष्कर्ष निकाल लेते हैं, आप अपना विकास रोक देते हैं। आप ने कोई भी निष्कर्ष निकाल कर अपने जीवन की संभावनाओं को रोक दिया है, नष्ट कर दिया है।

किसी आध्यात्मिक प्रक्रिया का ये अर्थ नहीं है कि आप निष्कर्षों के एक समूह से दूसरे समूह पर कूद जायें। आप जब यहाँ बिना किसी निष्कर्ष के रहने की हिम्मत जुटा पायेंगे, हर समय नए अनुभव के लिये तैयार होंगे, इस अस्तित्व के एक छोटे से कण के रूप में रहने को तैयार होंगे, तब ही आप अस्तित्व की अनंतता को जान पायेंगे।

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