विषय की सूची
1. हम गणेश चतुर्थी क्यों मनाते हैं?
2. गणेश चतुर्थी का इतिहास
3. गणेश चतुर्थी पर खास : सदगुरु एक पारंपरिक भारतीय मिठाई और उसके स्वाद के आनंद के बारे में बता रहे हैं
4. प्रदूषण न फैलाने वाली, प्राकृतिक रूप से बनी गणेश मूर्ति का महत्व

हम गणेश चतुर्थी क्यों मनाते हैं?

सदगुरु: गणेश एक हाथी के मुँह वाले भगवान हैं। वैसे, उनका चेहरा हाथी का नहीं था, एक गण का था। उन्हें गणपति कहते हैं जिसका मतलब है गणों का नायक, नेता। दुर्भाग्य से हज़ारों सालों के बीतते बीतते, किसी कलाकार की गलती से उनका चेहरा हाथी का हो गया।

गणेश चतुर्थी, हिंदु पंचांग के अनुसार भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी के दिन मनाते हैं जो अगस्त/सितंबर के महीनों में आता है। हम बिना जली हुई मिट्टी से गणेश मूर्ति बनाते हैं और उसकी पूजा करते हैं। गणेश के आसपास बड़े उत्सव होते हैं। बहुत सी विशाल गणेश मूर्तियाँ बनायी जाती हैं, 100 फ़ीट से भी ज्यादा ऊँची! पर, फिर, जब 7 या 15 दिन का समय पूरा हो जाता है - अलग अलग जगहों पर अलग अलग समय है - तब हम इस मूर्ति को तालाब, नदी, सरोवर या समुद्र में डुबो कर उसका विसर्जन कर देते हैं।

गणेश ने कहा, "मैं लिखूँगा पर आपको बिना रुके बोलना होगा। अगर आप कहीं भी रुक गये तो एक बार जब मैं कलम रख दूँगा, तो फिर नहीं लिखूँगा"।

हम लोग अपने लिये एक भगवान बनाते हैं, उनके चारों ओर एक माहौल खड़ा करते हैं और उन्हें अपना जीवन ही बना लेते हैं। 10 -15 दिन या एक महीने तक भी हमारे लिये गणेश के सिवा और कुछ नहीं होता। हम वही खाते हैं जो वे खाते हैं, जो उन्हें पसंद है, हमें वही पसंद होता है। हर चीज़ बस उन्हीं के बारे में होती है। पर, फिर, एक दिन हम उनका विसर्जन कर देते हैं। जब उनका विसर्जन हो जाता है तब सब कुछ खत्म हो जाता है। ये एक हमारी ही संस्कृति है जो इस बारे में जागरूक है कि भगवान हमारे ही बनाये हुए हैं।

गणेश बुद्धि की गतिविधि के प्रतीक हैं। ये वे ही हैं, जिन्होंने महाभारत कथा लिखी थी। महर्षि व्यास ने बोल-बोल कर इस कथा को गणेश से लिखवाया था। गणेश ने उन्हें चुनौती दी थी, उनके सामने एक शर्त रखी थी कि व्यास बोलते समय रुकेंगे नहीं। ऋषि के लिये ये एक परीक्षा थी - कि वे जो कुछ लिखा रहे थे वो उनके अस्तित्व से फूट रहा एक झरना था - या फिर वे अपनी बुद्धि से कोई विद्वत्तापूर्ण रचना कर रहे थे। इसलिये गणेश ने कहा, "मैं इसी शर्त पर लिखूँगा कि सबकुछ बिना रुके बोला जायेगा। अगर आप कहीं भी रुकेंगे तो एक बार अपनी कलम रख देने के बाद मैं नहीं लिखूँगा"। तो, व्यास ऋषि बिना रुके, लगातार बोलते ही रहे। ये कई महीनों तक चलता रहा। गणेश ने भी बिना चूके, लगातार लेखन किया। वे दुनिया के सबसे अच्छे स्टेनोग्राफर थे।

गणेश मानवीय बुद्धिमानी के प्रतीक हैं। प्रतीकात्मक रूप से ये बहुत ही सटीक बात है क्योंकि आपकी बुद्धिमानी का यही स्वभाव है। आप जागरुकतापूर्वक कल्पनायें करने के लिये अपनी बुद्धिमानी का सही उपयोग कर सकते हैं। उनका विसर्जन करना इस बात का प्रतीक है, कि अगर आप अपनी बुद्धिमानी का सही उपयोग करें तो आप सारे संसार को विसर्जित कर सकते हैं। जब आप अपनी कल्पना से संसार को विसर्जित कर देते हैं - तो अपनी बुद्धिमानी की गतिविधि को विसर्जित करना, अपनी कल्पनाशक्ति को शांत कर लेना कोई बड़ी समस्या नहीं होती।

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आप अपनी कल्पना से सारे ब्रह्मांड को मिटा सकते हैं। ये ब्रह्मांड आपके अनुभव में, अस्तित्व में नहीं रहेगा अगर आप एक शक्तिशाली कल्पना बनायें तो। अगर इस कल्पना को जागरूकता के साथ विकसित किया जाये, तो इसे शांत कर देना भी आसान होगा। अभी तो कल्पना के छोटे छोटे टुकड़े बिना जागरूकता के, एक के बाद एक लगातार बनते रहते हैं और ऐसा लगता है कि इन्हें रोकना असंभव है। गणेश चतुर्थी का सारा उत्सव इसी का प्रतीक है।

गणेश स्थापना के बाद उनके लिये जो उत्सव होता है, जो गतिविधि होती है, आपको उसे देखना चाहिये। सामान्य रूप से उनकी मूर्तियों को सार्वजनिक जगहों पर रखा जाता है। बहुत सी गलियाँ, रास्ते 10-15 दिनों तक बंद रहते हैं। ट्रैफिक रुक जाता है और गणेशजी तो रास्ते के बीचोबीच विराजमान रहते हैं। बड़े उत्सव होते हैं और लोग उन्हीं के चारों ओर जमे रहते हैं। पर जब समय आता है तो लोग उनका विसर्जन कर देते हैं।

अगर आपका मन आपके होने के, आपके अस्तित्व के स्वभाव को तय करता है तो ये एक खराब दुर्घटना है। अगर आप अपने मन के स्वभाव को तय करें तो कुछ अद्भुत होगा।

सिर्फ अगर आप अपनी कल्पना और बुद्धिमानी के साथ ये कर सकें। आपका मन कोई अपने आप में पूर्ण नहीं है, ये बस एक खास प्रकार की गतिविधि है। अगर कोई विचार न हों तो मन नाम की कोई चीज़ ही नहीं होगी, क्योंकि ये एक खास गतिविधि है। जागरूकता में ये योग्यता है कि किसी भी गतिविधि की सहायता के बिना 'हो' सकती है। गतिविधि से जागरूकता नहीं होती, जागरूकता से गतिविधि होती है।

मैं अपना हाथ हिलाता हूँ, हाथ मुझे नहीं हिलाता। ये मैं हूँ जो अपने हाथ को हिलाता है। इसी तरह, ये मैं हूँ जो अपने मन को चलाता है, मन मुझे नहीं चलाता। पर, आजकल तो ज्यादातर लोगों को उनका मन चलाता है। आपके मन का स्वभाव आपका स्वभाव हो गया है। आपका मन जो कुछ भी उल्टा सीधा करता है, वो आपका गुण कहलाता है। इन भूमिकाओं को उलट देना बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि अगर आपका मन आपके होने के, आपके अस्तित्व के स्वभाव को तय करता है - तो ये एक खराब दुर्घटना है। अगर आप अपने मन के स्वभाव को तय करें तो कुछ अद्भुत होगा।

गणेश चतुर्थी का इतिहास

इस लेख में, सदगुरु हमें वो कहानी बता रहे हैं कि शिव कैसे गणेश का सिर काट देते हैं और (लोकप्रिय मान्यताओं के खिलाफ) उनके शरीर पर हाथी का नहीं बल्कि अपने, गण कहलाये जाने वाले अपने अलौकिक साथियों के नेता का सिर लगा देते हैं।

गणेश चतुर्थी पर खास : सदगुरु एक पारंपरिक भारतीय मिठाई और उसके स्वाद के आनंद के बारे में बता रहे हैं।

सदगुरु: बहुत पहले, जब हम बच्चे थे, हमारे परिवार की परंपराओं का ये एक भाग था, कि इसी दिन परिवार के सभी पुरुष रसोईघर में जा कर कड़बु (गणेश की एक खास प्रिय मिठाई) बनाते थे। इसे कन्नड़ में कड़बु, तेलुगु में कुदुमु और तमिल में मोथागम कहते हैं। मेरे पिताजी चावल के आटे से एक अच्छे से चूहे के आकार का कड़बु बनाते थे। चूहा गणेश की सवारी माना जाता है। अब आप मुझसे ये मत पूछिये कि कोई चूहे पर सवारी कैसे कर सकता है? गणेश करते थे। हमारे लिये तो सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण बात ये थी कि कड़बु का स्वाद बहुत अच्छा होता था, चूहे के आकार में होता था तब भी! हम उसे खा जाते थे क्योंकि उसका स्वाद मजेदार होता था। हम उसे दोनों तरह से बनाते थे - मीठा भी और बहुत मसालेदार भी!

 

गणेश का महत्व ये है कि वे सभी बाधाओं को दूर करने वाले हैं। इसका मतलब ये नहीं कि वे आयेंगे और आपकी सब बाधाओं को ले जायेंगे। गणेश का सिर बड़ा होता है। शिव ने उनका छोटा सिर हटा कर बड़ा सिर लगा दिया था। गणेश को सबसे ज्यादा बुद्धिमान माना जाता है और वे पूरी तरह से संतुलित भी हैं। गणेश का मतलब यही है - अगर आपकी बुद्धि तेज और संतुलित होगी तो आपके जीवन में बाधायें होंगी ही नहीं।

प्रदूषण न फैलाने वाली, प्राकृतिक रूप से बनी गणेश मूर्ति का महत्व

गणेश मूर्ति को प्राकृतिक और जैविक चीजों से बनाना चाहिये। मिट्टी, बाजरे का आटा, हल्दी - अलग अलग चीजों से आप मूर्ति बना सकते हैं। इन्हें प्लास्टिक का नहीं बनाना चाहिये क्योंकि प्लास्टिक पानी में घुलता नहीं। मूर्ति को आग में भी नहीं पकाना चाहिए - किसी बर्तन की तरह बनाना है। मूर्ति पर प्लास्टिक लगे हुए पेंट का इस्तेमाल भी नहीं करना चाहिए क्योंकि ये पानी में नहीं घुलते, सिर्फ प्रदूषित करते हैं और आपको, दूसरों को सिर्फ हानि पहुँचाते हैं।

सबसे महत्वपूर्ण पहलू ये है कि आपको ये स्वतंत्रता दी गयी है कि आप एक भगवान को बनायें और फिर उन्हें विसर्जित भी कर दें। ये एक बड़ा विशेषाधिकार है जो दूसरी कोई संस्कृति आपको नहीं देती। इस विशेषाधिकार का उपयोग आपको जिम्मेदारीपूर्वक करना चाहिये। कृपया सिर्फ घुलने वाली, जैविक सामग्रियों का उपयोग करें जैसे चावल का आटा, बाजरे का आटा, हल्दी या मिट्टी। ये सामान्य रूप से वे सामग्रियाँ हैं जो हमेशा से इस्तेमाल की गयी हैं और इनसे बनी मूर्तियां बहुत अच्छी दिखती हैं। अगर आपको लगता है कि आपको कुछ रंग चाहियें तो कृपया सब्जियों से बने रंगों का उपयोग करें जिनसे बने गणेश सुंदर और आकर्षक होंगे, और पर्यावरण के अनुकूल भी होंगे।

 कृपया ये वीडियो देखें जिसमें सदगुरु गणेश चतुर्थी के बारे में बता रहे हैं।