प्रश्न : सद्‌गुरु, क्या आप रोजाना नाद आराधना में शामिल होने की अहमियत के बारे में कुछ बता सकते हैं जिसमें हम गाते हैं या बाउल बजाते हैं, ड्रम बजाते हैं या बस वहां मौजूद रहकर ध्यान करते हैं? सद्‌गुरु: हमने नाद आराधना की यह प्रक्रिया इसलिए शुरू की क्योंकि ध्यानलिंग की ऊर्जा एक ठोस दीवार की तरह बन सकती है। आपमें से बहुत से लोग तीर्थकुंड में डुबकी लगाकर ध्यानलिंग के क्षेत्र में प्रवेश करते हैं, मुझे विश्वास है कि आपमें से कुछ लोग, अगर संवेदनशील होंगे, तो आपने यह महसूस किया होगा कि वह ऊर्जा किसी भौतिक वस्तु की तरह आपसे टकराती है। लिंग के चारों ओर इकट्ठा होने वाली ऊर्जा का क्षेत्र इतना तीव्र है, कि वह एक मजबूत दीवार की तरह हो सकता है। वह इतना तीव्र हो सकता है कि जो लोग उसे भेद पाते हैं, उनके लिए यह बहुत अद्भुत होता है, बाकी लोग भले ही उस दायरे में बैठे हों, मगर उस ऊर्जा की तीव्रता के कारण वह उसके बाहर होते हैं। अगर उसकी तीव्रता थोड़ी कम होती, तो अधिक लोग उस ऊर्जा में प्रवेश कर पाते। https://www.youtube.com/embed/uOXucoatEi0

ध्वनियों का सुरीला होना जरुरी नहीं है

दिन में दो बार हम खास ध्वनियों का प्रयोग करते हुए इस दीवार को तोड़ने की कोशिश करते हैं – जो कभी सुरीली होती हैं, तो कभी बेसुरी। उस संगीत का सुरीलापन सिर्फ वहां बैठे लोगों के लिए सामाजिक तौर पर महत्वपूर्ण होता है। लेकिन चाहे वे ध्वनियां बेसुरी ही क्यों न हों, उनका मक़सद पूरा हो जाता है। क्योंकि उनका मकसद वहां एक ऐसी चीज को अशांत करना है जो लगभग एक ठोस मौजूदगी की तरह खुद को बहुत तीव्रता से प्रकट कर रही है, ताकि वह आने वाले सभी लोगों के लिए कुछ और उपलब्ध हो सके।

 अगर आप आश्रम में हैं और आपके पास कोई महत्वपूर्ण काम नहीं है, तो मैं आपको उस समय वहां होने का सुझाव दूंगा। वरना आप एक कीमती चीज से चूक जाएंगे। 
हम दिन में दो बार उसे थोड़ा सा झकझोरते हैं। आप चिल्ला कर भी ऐसा कर सकते हैं या रसोई के बर्तनों को बजा कर भी ऐसा शोर कर सकते हैं। शर्त यह है कि उसे काफी तीव्रता से किया जाए। उससे सामाजिक उद्देश्य भले ही पूरा न हो, लेकिन आध्यात्मिक मकसद पूरा हो जाएगा। लेकिन हम इसे एक भेंट के तौर पर करते हैं, क्योंकि भेंट की स्थिति में एक इंसान सबसे अधिक ग्रहणशील होता है।

ध्यानलिंग को ध्वनि की भेंट

भारतीय जीवन शैली में हमेशा ऐसा होता है कि जब भी आप मंदिर जाते हैं, आप ज़रूर कोई भेंट चढ़ाते हैं। ऐसा इसलिए नहीं है कि ईश्वर आपका केला या नायिरल खाना चाहता है। अगर आपके पास केला या नारियल नहीं हैं, तो कम से कम एक पत्ता ही भेंट करते हैं। इसके पीछे यह विचार है कि आप भेंट देने के इरादे से वहां जाएं। आप खुद एक भेंट की तरह जाएं। जब आप एक भेंट की तरह जाते हैं, तो आप वहां मौजूद ऊर्जा के प्रति सबसे अधिक ग्रहणशील होते हैं। इसलिए नाद आराधना का समय लोगों के लिए सबसे ग्रहणशील होता है क्योंकि वह भेंट का समय होता है। जो लोग ध्यानलिंग की ऊर्जा का अनुभव नहीं कर पाते, आपको उसमें मुश्किल आ रही हो, तो पक्के तौर पर आपके लिए नाद आराधना का समय वहां जाने के लिए सबसे अच्छा समय है। इसका एक कारण यह है कि हम एक खास तरीके से उसके आस-पास के ढांचे को कमजोर कर रहे हैं। दूसरा कारण यह है कि वह भेंट का समय होता है, जिससे आप अधिक ग्रहणशील अवस्था में होते हैं। अगर आप आश्रम में हैं और आपके पास कोई महत्वपूर्ण काम नहीं है, तो मैं आपको उस समय वहां होने का सुझाव दूंगा। वरना आप एक कीमती चीज से चूक जाएंगे।

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