भक्ति से आप भौतिक से परे का अनुभव कर सकते हैं
इस ब्लॉग में सद्गुरु भक्ति आंदोलन की ऐसी कविताएँ के बारे में बता रहे हैं, जो काफी चौंकाने वाली हैं। वे बता रह हैं कि ये कविताएँ भौतिक से परे के आयाम की ओर इशारा करती हैं।
इस ब्लॉग में सद्गुरु भक्ति आंदोलन की ऐसी कविताएँ के बारे में बता रहे हैं, जो काफी चौंकाने वाली हैं। वे बता रह हैं कि ये कविताएँ भौतिक से परे के आयाम की ओर इशारा करती हैं।
भौतिक और अभौतिक घुल मिल गए हैं
इंसान के भीतर दो पहलू काम करते हैं। एक है भौतिक पहलू और दूसरा है अभौतिक पहलू। भौतिक हमेशा यह देखता है कि कैसे आश्रय मिले, कैसे अपनी सुरक्षा की जाए, कैसे खुद को बचा कर रखा जाए।
इसलिए घर की खोज, रिश्तों की खोज और अपने इर्द-गिर्द मौजूद दूसरी चीजों की खोज, बात सिर्फ इतनी है कि जो सिर्फ शरीर से जुड़ा मामला होना चाहिए था, वह बाकी पहलुओं तक भी फैल गया। यही बुनियादी कमी है और इसी वजह से लोग आध्यात्मिक प्रक्रिया में संघर्ष करते हैं। एक पल वे आगे बढऩा चाहते हैं, दूसरे ही पल खुद को रोक लेना चाहते हैं। एक पल उन्हें आजादी चाहिए, अगले ही पल वे बंधन चाहने लगते हैं। मानव समाज जो कुछ भी कर रहा है, वह आजादी की खोज में नहीं कर रहा है। वह सब बंधनों की खोज में हो रहा है। अगर बंधन टूटते हैं तो इंसान को सबसे ज्यादा कष्ट होता है। अगर आजादी न छीनी जाए तो वे ज्यादा परेशान नहीं होते, क्योंकि दुर्भाग्य से आज के युग में शरीर के साथ उनकी पहचान, शरीर के स्रोत के साथ उनकी पहचान की तुलना में कहीं ज्यादा मजबूत है।
भक्ति भौतिक से परे ले जाती है
इसलिए भक्ति आंदोलन पहचान को खिसकाने की कोशिश कर रहा है। यह बेहद सक्रिय तरीके से, लगातार, भावनात्मक रूप से एक ऐसे बिंदु तक आपको चार्ज करने की कोशिश कर रहा है, जहां से आपकी पहचान भौतिक शरीर से उस पहलू की ओर खिसक जाए, जो इस शरीर का आधार है या जिसे आप इस जगत का स्रोत या ईश्वर कहते हैं।
मैंने एक कविता लिखी थी - ‘असीम’। 1994 में पहले होलनेस प्रोग्राम के लिए हम सब यहां मौजूद थे। 90 दिनों तक हम साथ-साथ यहां रहे। यह कविता उस जगह बैठकर लिखी गई, जिसे आप आज ईशा के ‘लीनिंग ट्री’ यानी झुके हुए वृक्ष के रूप में जानते हैं। इसे झुका हुआ पेड़ इसलिए कहा जाता है, क्योंकि उस वक्त कुछ हाथियों ने इसे इस तरह झुका दिया था। लोगों ने इसे वापस सीधा करने की पूरी कोशिश की। मैंने कहा, इसे ऐसे ही रहने दीजिए, यह ठीक है। फिर मैं उस झुके पेड़ पर जाकर बैठ गया, क्योंकि वह पेड़ बिल्कुल क्षैतिज हो गया था। दरअसल, बारिश के मौसम में हाथियों ने इसे धक्का देकर झुका दिया था। मैं वहां अकसर जाकर बैठ जाया करता था। उसके बाद से लोगों ने इसे ‘लीनिंग ट्री ऑफ ईशा’ का नाम दे दिया। तो ‘असीम’ नाम की इस कविता को मैंने इसी पेड़ पर बैठकर लिखा था।
नाविक लौट चुका है अपने घर समंदर से
किसान लौट चुका है अपने घर खेतों से
शिकारी लौट चुका है अपने घर पहाडिय़ों से
इस गोधूलि बेला में
मैं निहारता हूं आसमान में घर के लिए
चिडिय़ां भी घर की तलाश में हैं,
घर, घर, घर पर किसके लिए घर?
Subscribe
क्या ईंट और गारे का घर
जो सुरक्षा और सहारा दे?
क्या प्रेम, साहचर्य और आराम का घर?
सहारे और सुरक्षा का घर
या प्रेम और आराम का घर?
मेरे लिए कोई घर नहीं
शंभो ही हैं मेरे एकमात्र घर
वो बेघर हैं और मैं भी बेघर,
बेहद, अनंत, असीम।
निश्चित रूप से मैं भक्त जैसा नहीं नजर आता और न ही मैं वैसा व्यवहार करता हूं। आप पीछे मुडक़र ऐसे भक्तों को देखिए, उनमें से बहुत से राजाओं की तरह रहे। आज बहुत से लोग सोचते हैं कि भक्त का मतलब यह है कि वह हर वक्त रोता रहेगा। नहीं, वे लोग हमेशा राजाओं की तरह रहे हैं, क्योंकि जो भी इंसान ईश्वर को दिल में लेकर चलता है, वह स्वाभाविक रूप से राजाओं की तरह रहेगा, क्योंकि वह तो इस ब्रह्मांड का विजेता है। इस कविता का नाम ‘शम्भो’ है।
उड़ते पंछी, रेंगते कीड़े
हैं सबके अलग अलग रूप
पर इनका है एक ही स्वरूप
भोर का पंछी पोषण पाता है
भोर के कीड़े का जीवन जाता है
क्या हैं ये जीवन के क्रूर नियम?
नहीं, चूक रहे हैं आप जीवन का सौंदर्य
जीवन और मौत का है एक ही मैदान
स्वर्ग और नरक हैं झूठा अभिमान
बर्बाद न करो जीवन, बेकार दौड़ में इंसान
असीम कृपा के ज्ञान पर रखें अपना ध्यान।
खुद को भौतिक मानने पर आप दूसरों से बेहतर होना चाहेंगे
जिस पल आप अपनी पहचान भौतिकता के साथ स्थापित कर लेते हैं, तो आप किसी दूसरे से बेहतर होना चाहते हैं। ऐसा होता ही है। आप इस इच्छा को रोक नहीं सकते। यह भौतिक पहलू का स्वभाव है।
आज हमें पता है कि धरती के भीतर जो प्रतियोगिता चल रही है, धरती के ऊपर होने वाली प्रतियोगिता उसके मुकाबले कुछ भी नहीं। धरती के नीचे हर पौधे की जड़ दूसरे के मुकाबले कहीं ज्यादा रस खींच लेने को आतुर है। कहने का मतलब यही है कि अगर एक बार आपने भौतिकता के साथ अपनी पहचान बना ली तो दूसरों से बेहतर होने की आपकी इच्छा अनिवार्य रूप से होगी ही। इसे दबाने की कोशिश करके आप इसे सुधार सकते हैं, कोशिश कर सकते हैं कि इसे बेहतर अभिव्यक्ति मिले। आप युद्ध के बदले स्वस्थ प्रतियोगिता कर सकते हैं, जहां अगर आप जीतते हैं तो कहा जाता है कि आपके भीतर ‘किलर इंस्टिंक्ट’ है। तो यह वही किलर इंस्टिंक्ट है। किलर इंस्टिंक्ट का अर्थ है कि किसी तरह से आप शिखर पर पहुंचने की कोशिश में लगे हैं।
अलग-अलग अभिव्यक्तियाँ हैं, पर मुद्दा वही है
यह सही या गलत का सवाल नहीं है, यहां सवाल नैतिकता का भी नहीं है। बस बात इतनी है कि एक बार अगर आपने भौतिकता से पहचान स्थापित कर ली तो बेहतर होने की चाह स्वाभाविक है। इसी से हमारा पूरा क्रमिक विकास हुआ है।
यही सब बातें भक्ति काव्य में हमेशा से बताई जाती रही हैं। यह बात समझने में जरा मुश्किल है कि आखिर कोई इंसान अंधे हो जाने, बहरे हो जाने या अपाहिज हो जाने की बात क्यों करता है? ऐसी प्रार्थना करने वाला मूर्ख है कौन? ऐसी बातें आपको मूर्खतापूर्ण लग सकती हैं, लेकिन ऐसा संभव है क्योंकि उस शख्स ने अपनी पहचान को भौतिकता से परे एक ऐसे पहलू की ओर खिसका लिया है, जो भौतिकता का स्रोत है।