भक्ति या जागरूकता : कौन सा मार्ग चुनें?
इस सृष्टि का नृत्य और नाटक हर पल चल रहा है। अगर आप उसके कर्ता को यानी स्रष्टा को महसूस करना चाहते हैं, तो दो ही तरीके हैं। क्या हैं वे तरीके?
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सद्गुरु : ब्रह्मांड का नृत्य इतना आदर्श और संपूर्ण होता है कि हम नर्तक को ही भूल जाते हैं। मगर नर्तक के बिना कोई नृत्य नहीं हो सकता। हम नर्तक को इसलिए नहीं देख पाते क्योंकि हमारी दृष्टि और हमारा ध्यान बहुत सतही हो गया है।
आपको यह विरोधाभासी लग सकता है। एक तरफ तो मैं आपको नृत्य में डूबने के लिए कह रहा हूं, दूसरी ओर यह कह रहा हूं कि आपको संपूर्ण तीव्रता के साथ इसे देखना चाहिए। जब आप इसे खंडित रूप में, कई टुकड़ों में काट कर देखते हैं, तभी हर चीज विरोधाभासी लगती है।
भक्ति और जागरूकता : सृष्टा को जानने के दो तरीके हैं
जानने का एक तरीका यह है कि आप नृत्य में, उस नाटक में पूरी तरह शामिल हो जाएं। या जानने का दूसरा तरीका यह है कि आप उससे दूरी रखते हुए, नाटक से पूरी तरह अलग-थलग रहते हैं, मगर उसे पूरे ध्यान से देख पाते हैं। आप नाटक और अभिनेता, नृत्य और नर्तक के बीच अंतर को पहचान पाते हैं। दूसरे तरीके में ज्यादा जागरूकता, तीक्ष्णता, तीव्रता और शायद प्रशिक्षण की भी जरूरत पड़ती है, इसलिए नृत्य का हिस्सा बन जाना अधिक आसान है।
एक दिन, शंकरन पिल्लै ने ईशा योग केंद्र जाने का फैसला किया। उसके रुतबे को देखते हुए, उसे पूरा आश्रम घुमाया गया और पहली मंजिल पर ठहराया गया, जहां से आश्रम का सबसे अच्छा नजारा दिखता है। जो व्यक्ति उसे कमरे तक ले गया, उसने पहाड़ों की तरफ इशारा करते हुए कहा, ‘हम आपको इस कमरे में इसलिए ठहरा रहे हैं क्योंकि यहां से सबसे अच्छा नजारा दिखता है।’शंकरन पिल्लै ने पहाड़ की ओर देखा और कहा, ‘हां, जरूर... यहां से सबसे अच्छा नजारा दिखता, अगर पहाड़ बीच में न आता।’ लोग अपने साथ ठीक यही कर रहे हैं – आप समझ ही नहीं पाते कि पहाड़ ही नजारा है। जब आप इस मनोस्थिति में होते हैं, तो आप किसी नाटक का हिस्सा नहीं बन सकते, आप न तो जागरूक होकर सिर्फ उसे देख सकते हैं क्योंकि इसके लिए एक अलग तरह की तटस्थता की जरूरत होती है, न ही आप उसमें कूद कर उसका हिस्सा बन सकते हैं।
भक्ति का पथ तेज़ है
अगर आप लीन हो जाना चाहते हैं और तेजी से आगे बढ़ना चाहते हैं, तो आपको भक्त बन जाना चाहिए। वरना इसमें बहुत समय लगेगा। मगर कोई आपको भक्त बना नहीं सकता। एक अच्छा भक्त बनने की कोई शिक्षा या ट्रेनिंग नहीं होती। किसी खास तरह से खड़े होकर, कुछ खास बातें बोलकर - आप भक्त नहीं बन सकते। जब आप खुद कोई प्रक्रिया बन जाते हैं, जब आप नृत्य का हिस्सा बन जाते हैं और फिर कहीं जब नृत्य का स्रोत आपको छूता है, तो आप कुदरती तौर पर भक्त बन जाते हैं। भक्त बनने का कोई और तरीका नहीं।