बच्चे की देखभाल: कैसे बनाएं प्यार और डंडे के बीच संतुलन?
आज हर मां-बाप अपने बच्चे को ‘ कुछ’ बनाने के लिए परेशान हैं। इसके लिएकिस तरह की परवरिश दें अपने बच्चे को? क्या आप भी परेशान हैं बच्चे की देखभाल को लेकर?
आज हर मां-बाप अपने बच्चे को ‘ कुछ’ बनाने के लिए परेशान हैं। इसके लिए सबसे पहले सवाल उठता है कि आखिर कैसे और किस तरह की परवरिश दें अपने बच्चे को? क्या आप भी परेशान हैं बच्चे की देखभाल को लेकर?
प्रश्न:
मेरा एक चार साल का बेटा है, जिसे मैं बहुत प्यार करती हूं, लेकिन मेरे पति कहते हैं कि मैं उसे लाड़-लाड़ में बिगाड़ रही हूं। वह अकसर कहते हैं कि बच्चों को थोड़ा डांटकर न रखा जाए तो वे बिगड़ जाते हैं।
सद्गुरु:
एक योगी थे, जिनका संबंध कश्मीर के शैव संप्रदाय से था। यह योग के सात परंपराओं में से एक है। यह बहुत शक्तिशाली है, लेकिन चूंकि यह ज्यादातर कश्मीर प्रांत में ही प्रचलित रहा, इसलिए इसका नाम कश्मीर के नाम पर पड़ गया। एक दिन इस योगी ने एक ककून देखा जो थोड़ा चटखा हुआ था। उसके अंदर फंसी तितली लगातार उसके कठोर खोल से बाहर आने के लिए संघर्ष कर रही थी। प्रायः तितलियां 48 घंटों तक उस ककून से बाहर आने की कोशिश करती हैं अगर वह इस दौरान बाहर नहीं निकली तो मर जाएगी। यह देखकर योगी को दया आ गई। उन्होंने नाखून से ककून को खोल दिया और इस तरह तितली बाहर आ गई। तितली बाहर तो आ गई पर उड़ न सकी।
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कई बार बच्चों को दिया गया ज्यादा प्यार उन्हें ऐसा ही बना देता है। ऐसे बच्चे अपने जीवन में उड़ नहीं पाते।
हमें कैसे पता चलेगा कि हम बच्चे की देखभाल के नाम पर उसको बहुत ज्यादा लाड़ प्यार कर रहे हैं, उन्हें बिगाड़ रहे हैं ? इसके लिए कोई एक तय नियम नहीं है जो सब बच्चों पर लागू होता हो। हर बच्चा अलग है, अपने आप में अनूठा है। कुछ माता-पिता अपने बच्चों को ज्यादा ताकतवर बनाने की अपनी महत्वाकांक्षा को पूरा करने के लिए बच्चों को बहुत ज्यादा कठिनाई में डाल देते हैं। ऐसे माता-पिता अपने बच्चों को वो बनता देखना चाहते हैं जो वे खुद नहीं बन पाए। कई बार ऐसा देखा गया है कि कुछ मां बाप बच्चों से उम्मीद लगा बैठते हैं और फिर उन उम्मीदों को पूरा करने की कोशिश में उनके प्रति बहुत ज्यादा कठोर हो जाते हैं। कुछ मां बाप ऐसे भी होते हैं, जो बच्चों को बहुत ज्यादा लाड़ प्यार देते हैं और उन्हें नाकाबिल और निरर्थक बना देते हैं। ऐसे बच्चे अपने जीवन में कभी किसी लक्ष्य को हासिल नहीं कर पाते।
यह एक तरह की भीतरी समझ है। कितना करना है और कितना नहीं, इसके लिए कोई एक लकीर नहीं खींची जा सकती। हर बच्चे को एक अलग तरह के ध्यान, प्यार और सख्ती की आवश्यकता होती है। यह ठीक ऐसे है, जैसे मैं नारियल के बाग में खड़ा हूं और आप मुझसे पूछते हैं कि हर पेड़ को कितना पानी देना है। मैं कहूंगा - कम से कम पचास लीटर, लेकिन घर जाकर अगर आपने अपने गुलाब के पौधे में पचास लीटर पानी दे दिया तो वह मर जाएगा। इसीलिए यह आपको देखना होगा कि आपके घर में किस तरह का पौधा है।
इसका कोई मानक या पैमाना नहीं है। ये पैमाने स्कूलों और घरों में बच्चों के प्रति बहुत निर्दयी साबित हुए हैं और कई तरह से उनके लिए घातक होते हैं।
स्कूल का जीवन ऐसा हो गया है कि बच्चों से उनका बचपन छिन रहा है। अगर आप बच्चों से उनका बचपन छीन लेते हैं तो ऐसे वयस्क पैदा होंगे जो बच्चों की तरह व्यवहार करेंगे। क्या आपने गौर किया है कि आज कितने ही वयस्क किशोरों की तरह व्यवहार करते हैं? उनमें से कई अपना बचपन खोने के कारण बच्चों की तरह बर्ताव करते हैं। ताकि वे अपना बचपन प्रत्यक्ष रूप में न सही, अप्रत्यक्ष रूप में तो जी ही लें। पश्चिमी देशों में तो यह सब आप साफ तौर पर देख सकते हैं।
अगर वास्तव में हम अपने बच्चों का भला चाहते हैं तो सबसे पहले हमें यह देखना होगा कि क्या हम खुद में कुछ बदलाव ला सकते हैं? कहने का मतलब है कि सबसे पहले हमें खुद को बदलना होगा। माता-पिता बनने की चाह रखने वालों को एक साधारण सा प्रयोग करना चाहिए। उन्हें आराम से बैठकर बस अपने बारे में यह सोचना चाहिए कि उनके जीवन में क्या सही नहीं है और वह क्या है जो उनके जीवन के लिये अच्छा साबित हो सकता है, बाहरी दुनिया के बारे में नहीं खुद के बारे में सोचे। वे देखें कि अगले तीन महीने के दौरान वास्तव में वे ऐसा कर सकते हैं या नहीं। इन तीन महीनों के अंदर अगर वे अपने व्यवहार, बोली, आदतों और काम करने के तरीकों में जरा सा भी अंतर ला पाते हैं, तभी वे अपने बच्चों को समझदारी से संभाल पाएंगे। अगर वे ऐसा करने में सफल हुए, तभी वे अच्छे माता-पिता बन पाएंगे। नहीं तो उन्हें किसी और के नासमझी भरे परामर्श या मशविरे का सहारा लेना होगा।
दरअसल, इसमें परामर्श जैसी कोई चीज काम नहीं करती। हर बच्चे की जरूरतें ख़ास तरह की होतीं हैं इसलिए आपको अपने बच्चे की देखभाल के लिए बस उस पर ध्यान देने की आवश्यकता होती है। यह ध्यानपूर्वक देखना होता है कि उस खास बच्चे के लिए क्या करना चाहिए और क्या नहीं। आप हर बच्चे के साथ एक सा व्यवहार नहीं कर सकते, क्योंकि हर बच्चा अपने आप में अनोखा होता है।