क्या आप बच्चे को आध्यात्मिक बनाना चाहते हैं?
हम कैसे अपने बच्चों का आध्यात्मिकता से परिचय करा सकते हैं? क्या यह किसी शिक्षा या निर्देश के माध्यम से संभव है? या फिर हमें कुछ ऐसा करना चाहिए, कि आध्यात्मिकता अनजाने में ही बच्चों के जीवन का एक हिस्सा बनती चली जाए।
हम में से कई लोग चाहते हैं कि हमारे बच्चे आध्यात्मिकता को अपनाएं। हम कैसे अपने बच्चों का आध्यात्मिकता से परिचय करा सकते हैं? क्या यह किसी शिक्षा या निर्देश के माध्यम से संभव है? या फिर हमें कुछ ऐसा करना चाहिए, कि आध्यात्मिकता अनजाने में ही बच्चों के जीवन का एक हिस्सा बनती चली जाए। सद्गुरु आज हमें बता रहे हैं कि कैसे बच्चों के जीवन में आध्यात्मिकता को लाया जा सकता है...
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अध्यात्म से दूर क्यों रहे हैं लोग
तो कहने का मतलब यह है कि जिस पल आप किसी चीज के साथ आपनी पहचान बना लेते हैं आपकी बुद्धि में विकृति आ जाती है। अगर लोगों में विकृति नहीं आती तो आध्यात्मिकता एक स्वाभाविक चीज होती। फिर यह कोई ऐसी चीज नहीं रहती, जिसे आपको कोई याद दिलाता और सिखाता। यह महसूस करना बड़ा स्वाभाविक है कि जीवन में भौतिकता से भी परे कुछ है और इसे जानना बेहद आसान है। यह बड़ी अजीब सी बात लगती है कि लोगों की एक बड़ी तादाद इस बात को नोटिस ही नहीं कर पाती है। अगर आप दो मिनट के लिए अपनी आंखें बंद कर लें, तो आप महसूस करेंगे कि आप महज एक शरीर ही नहीं हैं, उससे कुछ ज्यादा हैं।
यह सच है कि हर कोई इसे महसूस कर सकता है, लेकिन दुनिया में बहुत कम लोग ही ऐसा कर पाते हैं। इसकी वजह यह है कि बचपन से ही आपके इर्द - गिर्द मौजूद हर शख्स के अपने कुछ निहित स्वार्थ रहे हैं। हर कोई आपको इस बात के लिए प्रेरित कर रहा है कि आपकी पहचान उनके स्वार्थों के साथ हो। आपके माता - पिता, आपके शिक्षक, सब यही चाहते हैं कि आप उनके द्वारा तय किए गए लक्ष्य की ओर चलें और उनकी दी गई शिक्षा को अपनाएं। आपके नेता और दूसरे तमाम लोग आपकी पहचान देश, जाति जैसी दूसरी चीजों के साथ बनाना चाहते हैं, क्योंकि हर किसी का अपना एजेंडा है। मेरे कहने का यह मतलब कतई नहीं है कि इस तरह के जो भी काम किए जा रहे हैं, उनका कोई महत्व या मूल्य नहीं है। उसका महत्व है, लेकिन सिर्फ इसलिए कि वह काम उपयोगी है।आपको उसके साथ पहचान स्थापित करने की जरूरत नहीं है, भले ही वह कितना भी उपयोगी क्यों न हो। जैसे ही आप उस काम के साथ अपनी पहचान बना लेते हैं, आपके भीतर एक तरह की विकृति आने लगती है। जिस इंसान के अंदर विकृति आ गई, वह दूसरों के लिए उपयोगी साबित हो ही नहीं सकता।
जैसे ही आपकी किसी चीज के साथ पहचान बन जाती है, आप दुनिया को लाखों हिस्सों में खंडित करके देखने लगते हैं।चीज़ों को विचार के आधार पर विभाजित करने के बाद, आपका हर काम इस दरार को बढ़ाता है। इससे मानवता की भलाई नहीं होगी।
बच्चों के लिए कैसा माहौल बनाएं?
तो अगर आप किसी बच्चे के लिए ऐसा माहौल बना पाएं - जिसमें वह किसी चीज के साथ खुद की पहचान स्थापित न करे - तो वह खुद ही आध्यात्मिक हो जाएगा। फिर उसे आध्यात्मिकता सिखाने की जरुरत नहीं होगी।
जैसे एक मां अपने बच्चे को ब्रश करना सिखाती है, हम चाहते हैं कि आध्यात्मिक प्रक्रिया भी ठीक वैसे ही बन जाए।एक ऐसी प्रक्रिया जिसे बिना किसी कोशिश के अनजाने में ही बच्चों को सिखा दिया जाए। हमारी संस्कृति में अब से एक या दो पीढ़ी पहले तक ऐसा था। आज भी भारत में धार्मिक शिक्षा किसी एक संस्था के द्वारा नहीं दी जाती है। इस देश का धर्म प्रमुख कोई एक व्यक्ति नहीं है। दुनिया के दूसरे हिस्सों की तरह हमारे यहां धर्म के मामले में लोगों का मार्गदर्शन करने की भूमिका कोई एक शख्स नहीं निभाता। यह हर किसी की जिंदगी का एक हिस्सा है और जो जितना जानता है, वह अपने हिसाब से इसकी शिक्षा देता है।
ईश्वर को लेकर इस संस्कृति में कोई ठोस विचार नहीं है
आध्यात्मिक प्रक्रिया को जीवन का इतना महत्वपूर्ण हिस्सा तो बनाया गया, लेकिन इसे बेलगाम छोड़ दिया गया। इसकी वजह यह रही कि यह प्रक्रिया कभी धर्म की सुनियोजित प्रक्रिया नहीं बन सकी।
अगर आप अपने बच्चे को आध्यात्मिकता के बारे में बताना चाहते हैं तो घर पर उसे इसकी शिक्षा देनी शुरू मत कीजिए। अगर आपने बच्चे को ‘आध्यात्मिक बनो’, ‘ईश्वर को प्रेम करो’, जैसी शिक्षाएं देनी शुरू कर दीं तो आपके बच्चे आपसे नफरत करने लगेंगे। फिर क्या करें? बस अपने जीवन के हर पहलू में जागरूकता लाइए। सौम्यता, शिष्टता, प्रेम और परवाह जैसी बातों को अपनी जिंदगी का हिस्सा बनाइए। वे भी इसका एक हिस्सा बन जाएंगे, क्योंकि ऐसा कोई इंसान नहीं है, जो इन सब चीजों को न चाहता हो। हर कोई चाहता है कि उसके इर्द गिर्द सुखद अहसास बना रहे। आपके बच्चे भी यही चाहते हैं। बस आप ऐसा माहौल पैदा कीजिए, आपके बच्चे इसे आत्मसात कर लेंगे।