सद्‌गुरुभारतीय परंपरा में अंतिम संस्कार करने के बाद शव की राख को नदी में बहा देते हैं। क्यों बनाई गई है ऐसी परंपरा? जानते हैं इसके पीछे का विज्ञान

प्रश्न : सद्‌गुरु मृत शरीर का अंतिम संस्कार करने के बाद उसकी राख को हम गंगा या किसी दूसरी नदी में प्रवाहित करते हैं। इसका क्या महत्व है?

सद्‌गुरु : जब आप शरीर को जला देते हैं, तो राख को भेद मिटाने वाली व समता लाने वाली चीज के तौर पर देखा जाता है। जो विभूति आप लगाते हैं, उसका एक पहलू यह है कि जब आप उसे शरीर के एक खास हिस्से पर लगाते हैं तो यह आपके भीतर एक संतुलन लाती है, क्योंकि विभूति का काम समता लाना है। खास किस्म की साधना करने वाले लोग या वे लोग जो विभूति का प्रयोग बेहद तीव्र तरीके से करना चाहते हैं, हमेशा श्मशान से ही राख लेते हैं।

घर पर रखने से राख के आस प्राणी मंडराएगा

श्मशान भूमि की राख - लकड़ी की राख नहीं, शरीर की राख - में एक खास गुण होता है। इसे फैला देने के पीछे एक विचार तो यह है कि अगर ऐसा न किया जाए तो आप इसका करेंगे क्या, किसी पात्र में लेकर घर में रख लेंगे? अगर आप अस्थि कलश घर में रख लेते हैं, तो आप इसको लेकर बेवजह भावुक बने रहेंगे। दूसरी बात यह है कि इस राख में शरीर के गुण मौजूद रहते हैं। अगर श्मशान से आप किसी के शरीर की राख को लें और उस इंसान का डीएनए आपके पास है, तो फॉरेंसिक लैब वाले यह बता देंगे कि यह राख उस शख्स की है, क्योंकि राख में उस इंसान के कुछ खास गुण मौजूद हैं। 

मृत्यु के बाद जीव शरीर को पूर्ण रूप से छोड़ने में 40 दिनों तक समय लेता है। आप चाहे शरीर को जला दें, यह फिर भी शरीर के कुछ तत्वों जैसे राख या अस्थियों, या फिर जो चीज़ें उससे सम्बंधित थीं जैसे कि उसके उपयोग किए गए कपड़ों को ढूँढ़ता है।

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इसीलिये, हिंदु परिवारों में जैसे ही किसी व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है, उसके द्वारा पहने गये कपड़े, ख़ास तौर से वे कपड़े जो शरीर को छूते थे, जैसे कि अंदर के वस्त्र, जला दिए जाते हैं। इसका कारण यही है कि मृत्यु के बाद भी जीव अपने शरीर के तत्वों जैसे पसीने को, गंध को ढूंढता है, क्योंकि अब भी उसे ये अहसास नहीं होता कि यह सब छूट चुका है। तो अगर आप अस्थियों को किसी जगह रख देते हैं तो जीव उसके आसपास मंडराता रह सकता है। इसलिये, अस्थियों को, राख को नदी में विसर्जित कर देते हैं जिससे वे फ़ैल जायें और बह जायें, पानी में विलीन हो जायें। तो फिर ये मिल नहीं सकतीं। हर संभव कोशिश की जाती है, ताकि उस जीव को अहसास हो जाए कि अब सब कुछ ख़त्म हो चुका है।

अघोरी हमेशा युवा मृत शरीर को ढूंढते हैं

अक्सर जब तांत्रिक अपने अनुष्ठान करते हैं, जिसमें वे मरे हुए लोगों को बुलाने की कोशिश करते हैं, तो वे श्मशान की राख का ही प्रयोग करते हैं। इसके लिए वे इंतजार कर रहे होते हैं।

अघोरी हमेशा युवा मृत शरीर को ही ढूंढते हैं और उसपर बैठकर साधना करते हैं, क्योंकि वे मृत शरीर के व्यान प्राण और ऊर्जा का इस्तेमाल करके उसे सक्रिय करना चाहते हैं, जिससे उससे वे अपने काम करा सकें।
अगर किसी जवान इंसान की मौत होती है, तो वे श्मशान में पहुंच जाते हैं और ऐसा व्यवहार करेंगे जैसे वह आपकी मदद के लिए वहां हों। कुछ खास तरह के अनुष्ठान करने के लिए तो वे शरीर को भी चुरा सकते हैं। फिर व्यान-प्राण का इस्तेमाल करके, जो कि शरीर में धीरे-धीरे मंद होता है, वे उस शरीर को सक्रिय कर देते हैं और एक खास तरीके से उस पर सवार हो जाते हैं। वे उस पर बैठकर साधना करना चाहते हैं। क्या आपको पता है इस बारे में? क्या आपने नहीं देखा कि स्वयं शिव भी मृत शरीर पर बैठे हैं और अघोरी के तौर पर साधना कर रहे हैं? अघोरी हमेशा युवा मृत शरीर को ही ढूंढते हैं और उसपर बैठकर साधना करते हैं, क्योंकि वे मृत शरीर के व्यान प्राण और ऊर्जा का इस्तेमाल करके उसे सक्रिय करना चाहते हैं, जिससे उससे वे अपने काम करा सकें। वे इसे अपने वश में कर लेना चाहते हैं।

यह कोई असामान्य बात नहीं है कि वे उस मरे हुए व्यक्ति को चला देते हैं, और ऐसा बार-बार किया जाता है। जब भी उन्हें मनमुताबिक मृत शरीर मिलता है, उनमें से दो या तीन लोग उस पर साधना करते हैं - बड़ी प्रतिस्पर्धा होती है। एक फिल्म में भी ऐसा दिखाया गया है कि शव पर बैठकर साधना करने के लिए उनमें झगड़ा हो रहा है। यह एक अलग ही पहलू है। जब शव को जलाया जाता है तो तंत्र-मंत्र से जुड़े लोग उसकी राख का भी इस्तेमाल करना चाहते हैं। वे वैसे तांत्रिक होते हैं, जिनका झुकाव अध्यात्म की ओर होता है। वे अपने लिए साधना करना चाहते हैं। तंत्र विज्ञान वाले जादू-टोना करना चाहते हैं, इसलिए वे उस प्राणी को वश में कर उसका दुरुपयोग करने के लिए उसकी राख ले लेते हैं।

नदी में बहाने से कोई राख हासिल नहीं कर पाएगा

तो जब आपके किसी प्रिय की मौत होती है तो आप यह सुनिश्चित करना चाहते हैं कि उसकी राख किसी गलत हाथों में न पड़े।

लोग नहीं चाहते कि उनके प्रियजन जादू- टोने का शिकार बनें। इसी कारण राख को नदी में बहा दिया जाता है, क्योंकि एक बार अगर आपने ऐसा कर दिया तो कोई भी राख को हासिल नहीं कर पाएगा।
इसके लिए आप उस राख को या तो किसी नदी में बहा देते हैं या उसे यूं ही फैला देते हैं। कई बार लोग पहाड़ों पर जाकर हवा में उस राख को उड़ा देते हैं, जिससे कोई जरा सी भी राख पाकर उसका दुरपयोग न कर सके। लोग नहीं चाहते कि उनके प्रियजन जादू- टोने का शिकार बनें। इसी कारण राख को नदी में बहा दिया जाता है, क्योंकि एक बार अगर आपने ऐसा कर दिया तो कोई भी राख को हासिल नहीं कर पाएगा। यह फसलों के लिए भी फायदेमंद है, क्योंकि एक समय में ज्यादातर फसलें नदियों के डेल्टा में ही उगाई जाती थीं। राख डेल्टा क्षेत्र को उपजाऊ ही बनाती है। इस तरह यह परंपरा दोनों ही तरीकों से उपयोगी है, हालांकि ज्यादा महत्वपूर्ण यही है कि किसी प्रियजन के शरीर की राख गलत हाथों में न पड़े।

ऋणानुबंध:भौतिक संबंध को तोड़ना

एक और दूसरी बात यह है कि आप जब भी किसी के साथ संबंध रखते हैं, चाहे वह खून का हो या सेक्स का, या अगर आप बस किसी का हाथ भी पकड़ते हैं या किसी के साथ अपने कपड़े बदलते हैं तो भी इन

एक और दूसरी बात यह है कि आप जब भी किसी के साथ संबंध रखते हैं, चाहे वह खून का हो या सेक्स का, या अगर आप बस किसी का हाथ भी पकड़ते हैं या किसी के साथ अपने कपड़े बदलते हैं तो भी इन दो शरीरों में एक तरह का ऋणानुबंध बन जाता है, कुछ ख़ास बातें साझा हो जाती हैं। एक भौतिक समरूपता आ जाती है।

इसलिए जब कोई मर जाता है तो पारंपरिक रूप से आप यह कोशिश करते हैं कि ऋणानुबंध का बनना पूरी तरह से समाप्त कर दें। तो नदी या समुद्र में अस्थियों का विसर्जन कर के आप उन्हें दूर-दूर तक फैला देते हैं जिससे आप का मृत व्यक्ति के साथ कोई ऋणानुबंध न बन जाए। आप को अपना जीवन आगे चलाने के लिये, यह ऋणानुबंध अच्छी तरह से मिटाना ज़रूरी है, वरना जैसे कि आधुनिक समाजों में हो रहा है, ये आप के शरीर और मन पर असर डाल सकता है। यह आप के शरीर और मानसिक ढांचे को कुछ इस तरह कमज़ोर कर देता है कि आप दोनों के बीच जो अच्छी बातें हुईं, सुंदर क्षण आये, उनसे सुख पाने की बजाय, आप उनसे कष्ट पाते हैं। इससे जीवन में कुछ अव्यवस्था, गड़बड़ी भी हो सकती है।

ऐसा न हो, इसके लिये हम भौतिक यादों को नष्ट करने का प्रयत्न करते हैं - मनोवैज्ञानिक यादों, स्मृतियों को नहीं। आप को मनोवैज्ञानिक एवं भावनात्मक यादों को नहीं खोना चाहिये। कोई ऐसे इंसान, जो आप के लिये इतना महत्व रखते थे, आप उन्हें क्यों भूलें? आप को उस सम्बन्ध की सुंदरता को हमेशा याद रखना चाहिये। लेकिन हम भौतिक यादों को नष्ट करना चाहते हैं।