अंतर्बोध या इन्टूइशन : क्या बोध की उच्च अवस्था है?
कभी-कभी हम ऐसे लोगों को देखते हैं, जो गणित या किसी अन्य विषय से जुड़े बेहद जटिल प्रश्नों का कुछ ही क्षणों में उत्तर दे देते हैं। इसे इन्टूइशन या फिर अंतर्बोध कहा जाता है। क्या ये चेतना या बोध की कोई उच्च अवस्था है? आइये जानते हैं
बोध या चेतना की उच्च अवस्था नहीं है इन्टूइशन
प्रश्न: क्या आध्यात्मिक रहस्यवाद और अंतर्बोध (इन्टूइशन) का कोई नाता है? क्या अंतर्बोध (इन्टूइशन), बोध का ही एक ऊंचा स्तर है? जो इसका प्रयोग करते हैं, वे दिव्यदर्शी होते हैं या कोई चालबाज होते हैं?
सद्गुरु: अंतर्बोध (इन्टूइशन) हमारी बोधशक्ति का कोई अलग पहलू नहीं है, जैसा कि लोग आम तौर पर बताने की कोशिश करते हैं। अंतर्बोध उसी जवाब तक पहुंचने का एक तीव्र और शीघ्र तरीका है। अपनी जानकारियों का इस्तेमाल कर के कुछ सीढिय़ां लांघ कर आगे बढ़ जाने का तरीका है अंतर्बोध।
कुछ बच्चों में अंतर्बोध या इन्टूइशन होता है
बहुत-से बच्चे अंतर्बोधी होते हैं। खास तौर से ऑटिस्टिक बच्चे, जो आम लोगों की तरह न हो कर मानसिक रूप से कमजोर होते हैं, लेकिन अपने दिमाग के किसी दूसरे पहलू में बहुत अंतर्बोधी होते हैं।
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इसलिए अंतर्बोध, तर्क की सीढिय़ां चढऩे के बजाय, जवाब तक सीधे पहुंचने का एक अलग तरीका है। तार्किक दिमाग पूरी प्रक्रिया से होकर जाता है, पर अंतर्बोधी दिमाग प्रक्रिया को किनारे छोड़ कर वक्तपर जरूरत की जानकारी सीधे उठा लेता है। आप इसके लिए खुद को प्रशिक्षित कर सकते हैं।
प्रश्न: क्या हम अपने दिमाग को इस तरह से ट्रेंड कर सकते हैं कि अपनी रोजमर्रा की जिंदगी में वह अंतर्बोधी हो कर बेहतर और कारगर फैसले ले सके? सद्गुरु, आप किस हद तक अंतर्बोध का इस्तेमाल करते हैं?
सद्गुरु: हम यहां जो आसान-सा योगाभ्यास आपको सिखाते हैं, उससे आपकी तर्कशक्ति और अंतर्बोध दोनों में बढ़ोतरी होती है। क्या मैं तार्किक हूं? हां, मैं हूं।
अंतर्बोध या इन्टूइशन जानकारी के आधार पर काम करता है
परंतु यह समझना जरूरी है कि अगर आपने अपने दिमाग में जानकारी जमा नहीं की है, तो फिर अंतर्बोध किसी काम का नहीं। आपको जानकारी की जरूरत तो पड़ेगी ही। पर इसमें किसी हिसाब-किताब की जरूरत नहीं पड़ेगी। और फिर जानकारी तो हर पल इक्कठी होती ही रहती है; जैसा कि मैंने पहले कहा, पांचों इंद्रियां लगातार जानकारी इक्कठी करती ही रहती हैं।
मेरे पास लोग सिर्फ आध्यात्मिक मकसद से ही नहीं आते। अगर कोई एक इमारत बना रहा है और उसे इंजीनियरिंग को ले कर कोई दिक्कत पेश आ रही है, तो वह भी मेरे पास आता है।
आज अगर मैं गाड़ी चालाऊं, खास तौर से हिमालय क्षेत्र में, तो सडक़ के हर मोड़, हर चट्टान और हर बड़े पेड़ को मैं जानता हूं। जब मैं गाड़ी चलाता हूं, तो मेरे दिमाग में अगले मोड़ की तस्वीर उभरती चली जाती है। बाकी सारे लोग 25-30 किलोमीटर की रफ्तार से जा रहे होते हैं और मैं गाड़ी तेज रफ्तार से दौड़ाता रहता हूं। इस बार मेरी ‘पोर्श’ कार थी और मैं उसको खूब दौड़ा रहा था। लोग सोच रहे थे कि मैं पागल हो गया हूं, लेकिन दरअसल सडक़ के अगले दो-तीन मोड़ मेरे दिमाग में साफ दिखते रहते हैं।
इसलिए जब अभ्यास करके आप अपनी चेतना के साथ जुड़ जाते हैं, तब आपका मन आजाद हो जाता है। आपने आज तक जो कुछ भी सूंघा, चखा, सुना और देखा है, वह सब आपके भीतर है, आपको उन्हें याद करने की जरूरत नहीं है, ये सब बस आपके भीतर जमा है। आप इन सबको आसानी-से बाहर खींच सकते हैं। याद्दाश्त, कुछ याद करने से नहीं जुड़ी है। याद्दाश्त - बस जानकारी वापस खींचने की काबिलियत है, है न?