क्या मन हमें तर्कों के पार ले जा सकता है?
हमारे मन के तर्क और वितर्क अतीत पर आधारित होते हैं और इसलिए इनका अपना एक गुण होता है। अपने खुद के गुण की वजह से वे सच्चाई को ठीक से पेश नहीं कर पाते। क्या ऐसे में हम अपने मन का इस्तेमाल करके, सच्चाई को ठीक वैसे देख सकते हैं, जैसी वो है?
हमारे मन के तर्क और वितर्क अतीत पर आधारित होते हैं और इसलिए इनका अपना एक गुण होता है। अपने खुद के गुण की वजह से वे सच्चाई को ठीक से पेश नहीं कर पाते। क्या ऐसे में हम अपने मन का इस्तेमाल करके, सच्चाई को ठीक वैसे देख सकते हैं, जैसी वो है?
दर्पण की खूबी यह है कि उसका अपना कोई चेहरा नहीं होता। तर्क का अपना एक चेहरा होता है। एक बार अगर मन तर्कों के दोहरेपन से परे चला जाए तो यह दर्पण की तरह हो जाता है।
मन का संबंध हमेशा अतीत से होता है, अतीत की उन चीजों से जो आपके भीतर इकठ्ठी हो गईं हैं। यह वर्तमान पल के बारे में नहीं सोचता। जब मैं मन कहता हूं, तो मैं तार्किक मन की बात कर रहा हूं, किसी इंसान की बुद्धि की नहीं, प्रज्ञा की नहीं।
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अगर आप प्रकृति के स्वभाव को समझना चाहते हैं, तो आपको इस काबिल बनना होगा या कम से कम बनने की कोशिश करनी होगी - कि आप तार्किक मन की सीमाओं से परे जाकर देख सकें। केवल तभी आप जीवन की प्रकृति को अच्छी तरह से समझ सकते हैं। अगर ऐसा नहीं हुआ तो यह एक लंबी, उबाऊ और संघर्ष-भरी यात्रा होगी, जिसके अंत में किसी मंजिल की प्राप्ति नहीं होगी। इससे आप किसी नतीजे पर नहीं पहुंच सकते। इससे समस्या और ज्यादा जटिल ही होगी। तार्किक दिमाग एक बुनियादी यंत्र है, जिसकी मदद से आप सब कुछ करने की कोशिश कर रहे हैं। लेकिन असल में वह बस इस जगत के दोहरेपन को संभालने के काबिल है। एक प्राणी के तौर पर अगर आपके अंदर दोहरापन आ गया तो आप हमेशा संघर्ष ही करते रहेंगे। जिन चीजों को आप अलग-अलग हिस्सों में बांट देते हैं, आप चाहे जो कर लें, उन्हें फिर से साथ नहीं ला सकते।
तार्किक दिमाग एक ऐसी चीज है, जिसने इस जगत के बारे में आपकी समझ को लाखों हिस्सों में बांट रखा है, और अब वह उन सभी हिस्सों को एक साथ लाने की कोशिश कर रहा है। ऐसा कभी नहीं होने वाला।
बुद्धिमान व्यक्ति ने कहा, “मुझे समझ नहीं आया कि आप कहना क्या चाहते हैं।”
एसॉप बोले, “अगर आप अपने धनुष को लगातार तानकर रखेंगे, तो कुछ समय बाद उसकी शक्ति और तीव्रता कम होने लगेगी और वह एक बेहतर धनुष नहीं रह जाएगा। अगर आप धनुष की तीव्रता और शक्ति को बनाए रखना चाहते हैं तो आपको कभी-कभी उसकी रस्सी को उतारकर भी रखना होगा। तभी वह जरूरत के वक्त आपका साथ दे पाएगा। बस मैं यही कर रहा हूं और यही है ध्यान - खुद के तनाव को ढीला करना।”
हर तर्क एक खास किस्म के तनाव को जन्म देता है। अगर तर्क है, तो वाद-विवाद की गुंजाइश होगी। आप जितने तार्किक होते जाएंगे, आप अपने जीवन की हर चीज को लेकर उतने ही विवाद-प्रिय होते जाएंगे।
तो एक बार अगर मन तर्कों के दोहरेपन से परे चला जाए तो यह दर्पण की तरह हो जाता है। फिर यह पूरी सृष्टि को अपने में समा सकता है, इस सृष्टि को भी और सृष्टा को भी। मूल रूप से सभी आध्यात्मिक साधनाओं का मकसद तार्किक मन से परे जाना है। आध्यात्मिक साधना का मतलब, आप जो हैं उससे अलग आपको कुछ और बना देना नहीं है। यह आपको वही रखती है, जो आप हैं। इसका मकसद उन झूठे चेहरों को मिटाना है, जो आपने अपने लिए बना रखें है। ऐसा करने से मन एक दर्पण का काम करने लगता है, जो हर चीज को बिना किसी तोड़-मरोड़ के उसी तरह दिखाता है, जैसी वह है।