माटी कहे कुम्हार को.....कबीर की एक काव्य रचना

माटी कहे कुम्हार को, तू क्या रौंदे मोहे।।

एक दिन ऐसा आयेगा, मैं रौंदूँगी तोहे

आये हैं सो जायेंगे, राजा, रंक, फ़क़ीर ।

एक सिंहासन चढ़ चले, एक बंधे जंजीर।।

कबीर के सत्य की अनदेखी

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 सदगुरु : आज कबीर जयंती है। कबीर एक बुनकर थे - वे एक महान दिव्यदर्शी कवि थे जो आज भी अपनी कविताओं के माध्यम से हमारे बीच जीवित हैं। उन्होंने जो काव्य लिखा था, गाया था, वह उनके जीवन का एक बहुत छोटा सा भाग है। अधिकतर समय वे कपड़ा बुनने का काम करते थे। चूंकि आज हमारे पास केवल उनका काव्य है तो लोगों को लगता है कि उन्होंने बस यही काम किया। नहीं, उनका जीवन तो कपड़ा बुनने में लगा था, काव्य करने में नहीं। उनका बुना हुआ कपड़ा आज नहीं है पर उनकी कही हुई कवितायें आज भी जीवित हैं। मुझे नहीं मालूम कि कितनी खो गयी हैं पर जो बची हैं वे फिर भी अविश्वसनीय हैं।

वे अद्भुत मनुष्य थे पर उनके काव्य के अतिरिक्त हम उनके बारे में कुछ नहीं जानते। स्पष्ट है कि वे अत्यंत गहन अनुभव रखने वाले व्यक्ति थे, इसके बारे में कोई प्रश्न ही नहीं है। लेकिन उनका पूरा जीवन, उनकी मृत्यु और उसके बाद भी, उनकी दिव्यदर्शिता, ज्ञान अथवा स्पष्टता की एक नयी दूरदृष्टि जो वे लोगों को देना चाहते थे, उसको लोगों ने महत्व नहीं दिया। वे सब बस इसी विवाद में उलझे रहे कि कबीर हिन्दु थे या मुस्लिम ? लोगों के सामने बस यही मुख्य प्रश्न था। अगर आप को ये मालूम नहीं है तो मैं आप के सामने एक अत्यंत महत्वपूर्ण जानकारी रख रहा हूँ : कोई भी इंसान, एक हिन्दु या मुस्लिम, या जो ऐसे और भी बेकार के झंझट हैं, उनमें से किसी रूप में पैदा नहीं होता। ऐसे ही, कोई भी हिन्दु या मुस्लिम या ऐसा ही कुछ और हो कर नहीं मरता। लेकिन जब तक हम यहाँ पर हैं, तब तक एक बड़ा सामाजिक नाटक चलता रहता है।

अगर आप यहाँ हैं तो इसका अर्थ यही है कि आप के जीवन के लिये हर आवश्यक चीज़ हो रही है नहीं तो आप यहाँ नहीं होते। प्रश्न यह है कि आप इन शक्तियों के साथ लय में हैं या आप इनके विरुद्ध हैं ?

ये सब कुछ जो आप ने बनाया है - आप के विचार कि आप कौन हैं, आप कौन सा धर्म मानते हैं, कौन सी चीज़ आप की है, कौन सी चीज़ आप की नहीं है ? - ये सब असत्य है। जो सत्य है वो बस है, आप को उसके बारे में कुछ नहीं करना। इस सत्य की वजह से ही हम हैं। सत्य वो नहीं है जो आप बोलते हैं। सत्य का अर्थ है वे मूल नियम जो जीवन को बनाते हैं और जिनसे सब कुछ होता है। आप अगर कुछ कर सकते हैं तो बस ये चुन सकते हैं, कि आप सत्य के साथ लय में हैं या आप सत्य के साथ लय में नहीं हैं। आप को सत्य की खोज नहीं करनी है, सत्य का कोई अध्ययन भी नहीं करना है। आप को सत्य को किसी स्वर्ग से नीचे भी नहीं लाना है।

अगर एक पेड़ बढ़ रहा है, खिल रहा है तो ये स्पष्ट ही है कि जीवन देने वाले सभी तत्व वहाँ उपस्थित हैं - यही कारण है कि पेड़ बढ़ रहा है। अगर आप यहाँ हैं तो इसका अर्थ यही है कि आप के जीवन के लिये हर आवश्यक चीज़ हो रही है नहीं तो आप यहाँ नहीं होते। प्रश्न यह है कि आप इन शक्तियों के साथ लय में हैं या आप इनके विरुद्ध हैं ?

आप को ऐसा लग सकता है, "अरे, मैं भला जीवन की शक्तियों के विरोध में क्यों होऊंगा" ? लेकिन जिस क्षण आप स्वयं को वह मान लेते हैं जो आप वास्तव में नहीं हैं - तो इसका मतलब आप जीवन की शक्तियों के विरुद्ध हैं। आप को लग सकता है कि आप धार्मिक बन रहे हैं, पर असल में आप बस जकड़े हुए हैं, आप अपने मन से एक नाटक बना रहे हैं और अस्तित्व की सच्चाई को पर्दे के पीछे डाल रहे हैं। आप सृष्टिकर्ता की रचना को पूर्ण रूप से खो रहे हैं, क्योंकि आप की बेवकूफी भरी रचनाओं ने ही आप के दिमाग को उलझा रखा है।

आत्मज्ञान प्राप्ति : अज्ञानता का उत्सव

आप सत्य की ओर तभी आगे बढ़ेंगे जब आप को यह अनुभूति होगी कि आप कुछ भी नहीं जानते। अगर आप को लगता है कि आप जानते हैं तो आप असत्य की ओर बढ़ने लगेंगे। क्योंकि "मैं जानता हूँ" ये सिर्फ एक विचार है, जब कि "मैं नहीं जानता" एक तथ्य है और सच्चाई है। जितनी जल्दी आप ये बात समझ जाएँ वह आपके लिए अच्छा है। आपके जीवन का सबसे बड़ा बोध यही समझना है कि आप नहीं जानते। "मैं नहीं जानता" एक ज़बरदस्त सम्भावना है। जब आप जान जाते हैं कि 'मैं नहीं जानता', तो जानने की इच्छा, उसके लिये तड़प, और जानने की संभावना एक वास्तविकता बन जाती है।

अगर आप किसी चीज़ को मान लेते हैं तो फिर आप खोज नहीं करेंगे। आप तभी सही अर्थों में खोज करेंगे जब आप जानते हैं कि आप नहीं जानते

हमारी संस्कृति में, हमने हमेशा अपनी पहचान अज्ञानता के आधार पर बनाई है क्योंकि हमारा ज्ञान बहुत ही कम है - चाहे हम कितना ही जानते हों - पर हमारा अज्ञान असीमित है। तो अगर आप अपनी पहचान अज्ञानता के साथ जोड़ते हैं तो आप किसी अर्थ में असीमित हो जाते हैं क्योंकि आप जिसके साथ अपने आप को जोड़ते हैं, जिसके आधार पर अपनी पहचान बनाते हैं, उसका ही गुण आप में आ जाता है। एक तरह से आत्मज्ञान तो अज्ञानता का उत्सव है, एक आनंदमय अज्ञानता। अगर आप ज्ञान से जकड़े हुए नहीं हैं तो आप हर चीज़ को वैसी ही देखेंगे जैसी वह है और यही सब कुछ है। जब आप ज्ञान से बंध जाते हैं तो आप किसी चीज़ को वैसी नहीं देखते जैसी वह है और फिर आप हर चीज़ के प्रति पूर्वाग्रह से ग्रस्त हो जाते हैं।

तो कबीर एक आत्मज्ञानी बुनकर थे, एक दिव्यदर्शी थे। दिव्यदर्शिता अतीत के किसी व्यक्ति या कुछ कविताओं से सम्बंधित नहीं होनी चाहिये। दिव्यदर्शिता का अर्थ है कि हर दिन आप जीवन के एक नये आयाम में प्रवेश करते हैं। आप जो नहीं जानते थे ऐसा कुछ नया आज आप के अनुभव में आया है। दिव्यदर्शिता का अर्थ कोई इकट्ठा किया हुआ ज्ञान नहीं है, दिव्यदर्शिता का अर्थ है एक खोज। अगर आप किसी चीज़ को मान लेते हैं तो फिर आप खोज नहीं करेंगे। आप तभी सही अर्थों में खोज करेंगे जब आप जानते हैं कि आप नहीं जानते।