सद्‌गुरु: अगर आप अपने मन में झांकें, अपनी नज़र में आपकी जो शख्सियत है अगर आप उसे देखें, तो आम तौर पर आप जिसे आप अपना व्यक्तित्व समझते हैं, वह मुख्य रूप से अलग-अलग स्तरों की कब्ज है। ‘मुझे यह पसंद नहीं है’, ‘मैं यह नहीं सह सकता’, ‘मैं यह नहीं कर सकता’, ‘मुझे सिर्फ यह पसंद है’, मैं वो पसंद नहीं कर सकता’ – ये सब कब्ज के अलग-अलग स्तर हैं। इस कब्ज की वजह क्या है? शरीर की भाषा में कब्ज का मतलब है, किसी नली में रुकावट। यहां पर वह मन और चेतना में रुकावट है, जीवन का मुक्त प्रवाह नहीं हो रहा, वह सीमित हो गया है, क्योंकि जीवन का अनुभव करने की आपकी क्षमता बस आपके शरीर और मन के उपकरणों पर निर्भर है। आपके शरीर या मन का किसी न किसी रूप में रुकावट बनने का मतलब है कि जीवन का अनुभव करने की आपकी क्षमता भी सीमित हो जाती है।

खुद के पैदा किए जख्मों को भरने का तरीका

यह इतने रूपों में होता है, कि आप हैरान हो जाएँगे। आपमें से कई लोग सोचते हैं कि आप उन चीजों से आगे बढ़ गए हैं, लेकिन जब आप दस साल के थे तो आपके मामा ने कुछ कहा, मान लिजिए आपको मूर्ख कहा, अब आप पचास साल के हैं, मगर चालीस साल पहले उन्होंने आपको मूर्ख कहा, यह बात आपको अब भी परेशान करती है। आज भी जब आप उनका चेहरा देखते हैं तो यह बात याद आ जाती है कि उन्होंने मुझे मूर्ख कहा था! यह चलता रहता है। आपका व्यक्तित्व जितना ठोस है, आप उतनी अधिक चोटें और घाव ढोते रहते हैं। और ये कोई शारीरिक ज़ख्म नहीं हैं जो भर जाएंगे क्योंकि ये ज़ख्म आपने खुद पैदा किए हैं - तो ये जीवन के अनुभव के चिह्नों के रूप में ढोए जाते हैं, इसलिए वे भरते नहीं। मुझे यह शख्स पसंद है, वह शख्स नहीं पसंद, मैं इससे प्यार करता हूं, इससे नफरत करता हूं, इस व्यक्ति को सहन नहीं कर सकता – ये सभी चीज़ें इसी वजह से पैदा हुई हैं।

अपने मन की बातों, अपनी भावनात्मक चीजों, शारीरिक चीजों, और सामाजिक चीजों, हर चीज़ को उस तरह स्वीकार कीजिए, जैसी वे हैं। आपको किसी के साथ कुछ नहीं करना है, बस अपने अंदर यह करना है।

अगले चौबीस घंटों में आप यह करके देखिए – इन सभी मामाओं, दोस्तों, दुश्मनों, या किसी और को भी... आपको यह बताने की कोई जरूरत नहीं है कि मैं आपसे प्यार करता हूं, ये जरूरी नहीं है। बस आपको अपने भीतर हर चीज को स्वीकार करने की भावना लानी है। तो, किसी ने कुछ कहा, किसी ने कुछ किया, किसी ने आपके पैर पर पांव रखा, किसी ने आपके सिर पर पांव रख दिया, चौबीस घंटे सिर्फ, सिर्फ चौबीस घंटे हर चीज को पूरी तरह स्वीकार कीजिए। अपने मन की बातों, अपनी भावनात्मक चीजों, शारीरिक चीजों, और सामाजिक चीजों, हर चीज़ को उस तरह स्वीकार कीजिए, जैसी वे हैं। आपको किसी के साथ कुछ नहीं करना है, बस अपने अंदर यह करना है। अगर आप सिर्फ यह करें, तो जीवन एक बड़े स्तर पर घटित होने लगेगा।

Love & Grace

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