ये चांद के जीव
इस हफ्ते के स्पाट में पेश है सद्गुरु की एक पेंटिंग, कविता और स्त्रीत्व की शक्ति के ऊपर उनकी एक प्रेरणा प्रदान करने वाली लेख। सद्गुरु लिखते हैं "ये चांद के जीव, हैं कितने मधुर खुमार में ये, मेरे अंदर का सूरज....
ये चांद के जीव
हैं कितने मधुर खुमार में ये
मेरे अंदर का सूरज
नहीं है इनके लिए एकमात्र वरदान
ये हैं चांद के जीव
चांद की कोख में सुख पाने
और पलने बढ़ने के लिए
निहायत जरूरी है सूरज का हर रोज मरना
चांद से बिखरी सलोनी रोशनी में ही
तो नजर आता है रात का सूरज
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ज्ञात सृष्टि का स्रोत वो सूरज
है जन्मता चांद की शीतलता में
चांद के इस बेतुके बावलेपन में
कितना भरोसा है विधाता को
उसने कोख से उसे धन्य किया
और स्तन भी दिये पिलाने के लिये
वो बहुत जल्दी ही फूले और खिले
तभी जगत जानेगा इस कोख के पोषण को
केवल तभी इसकी उपज वाकई कारगर होगी
तब उत्सव में उमगेंगे
ये चांद के जीव
कुछ साल पहले जब मैं महिलाओं के लिए स्पंदा हॉल में भाव स्पंदन कार्यक्रम आयोजित कर रहा था, तो एक पल ऐसा आया जब मुझे स्त्रीत्व के विलक्षणता का अनुभव हुआ। एक जबर्दस्त स्त्रियोचित शक्ति उस वक्त वातावरण में इतनी साफ झलक रही थी कि मेरा खुद का शरीर और ऊर्जाएं काफी कुछ स्त्रियों जैसी हो गईं। यह मेरे लिए कोई नई बात नहीं थी, लेकिन उस दिन इस चीज का अहसास मुझे पूरी भव्यता में हुआ। हालांकि आधार एक ही है, पर जो बुनियादी स्त्रियोचित गुण हैं, वो कितने अलग और विलक्षण होते हैं। उस दिन यह वास्तविकता शानदार तरीके से प्रकट हुई। मैंने लगातार स्त्रियोचित अमृत का सेवन करता रहा। मैंने अपनी नजरें और ध्यान पूरी तरह से उस आयोजन पर टिकाए रखीं और इन शब्दों को अपने नोटपैड पर तेजी से लिखता गया।
आज जिस तरह से हमने स्त्रियों को दूसरे दर्जे का जीव बना दिया है, वह इस सृष्टि की खूबसूरती के प्रति भारी अपराध है। आक्रामक सांस्कृतिक और धार्मिक रवैया इसके लिए प्रमुख रूप से जिम्मेदार हैं। दूसरों से बेहतर और बड़ा होने की क्षुद्र मानसिकता ने एक ऐसा नजरिया पैदा किया है जो पुरुषों को श्रेष्ठ बनाता है। स्त्री के दैहिक रूप को ही अंतिम मानकर चलने का घटियापन ही स्त्रियोचित गुण के संहार की मुख्य वजह है। हमने दुनिया की नारियों को अपनी जरूरत की वजह से नहीं मारा, पर धर्म, आधुनिक विज्ञान और अब कॉरपोरेट संस्कृति स्त्रीत्व की हत्या करने के काम में सक्रिय हैं। तकनीक ने महिलाओं के आगे बढ़ने के मार्ग को सुगम बना दिया है। इसकी वजह से महिलाओं को सभी के जैसे बराबर मौके मिल रहे हैं, लेकिन ये मौके उन क्षेत्रों में ही हैं, जो मर्दों के माने जाते हैं। महिलाओं को मानवीय समाज में उचित जगह तभी मिल सकती है, जब हम यह पहचानने और अनुभव करने लगेंगे कि जीवन का मतलब शारीरिक और दैहिक पहलू के अलावा भी बहुत कुछ है।
मैं इस विषय को निरंतर जारी रख सकता हूं। यहां तक कि ज्यादा से ज्यादा फायदा लेने के लिए भाव स्पंदन को महिलाओं और पुरुषों के लिए अलग-अलग आयोजित किया जा सकता है। सफल आयोजन के मुद्दों को लेकर स्त्री पुरुष दोनों के साथ-साथ आयोजन की योजना बनाई गई थी। अभी मिले जुले आयोजन ठीक तरह से चल रहे हैं, लेकिन अगर हम इन आयोजनों को और बेहतर बनाना चाहते हैं तो ये आयोजन स्त्रियों और पुरुषों दोनों के लिए अलग-अलग किए जाने चाहिए। सम्यमा में ऐसी कोई बात नहीं होती कि कौन स्त्री है और कौन पुरुष, पर एक खास तरह के गुण के पोषण के लिए भाव स्पंदन एक जबर्दस्त संभावना है। मेरे लिए और इस पूरी दुनिया के लिए वाकई में जो इनका महत्व रहा हैं, इसके लिए इस चांद के जीव को मैं प्रणाम करता हूं।