सद्गुरु की अज़रबैजान और यूक्रैन की अनोखी यात्रा
यहां इस स्पॉट में, सदगुरु स्वीकार कर रहे हैं कि कभी-कभी उन्हें रिटायरमेंट का विचार आ जाता है और वे यह भी बताते हैं कि क्यों उनका हृदय इन विचारों को निरस्त कर देता है। मध्य एशिया के कॉकासस क्षेत्र में उन्हें सप्तर्षियों में से एक की छाप दिखी, और साथ ही यौगिक संस्कृति से जुड़ी अन्य चीज़ें दिखीं। उनके हाल ही के कार्यक्रमों और यात्राओं के विशेष भागों की तस्वीरें देखिये जिनमें वे अमेरिका में पतझड़ वाले कुम्बरलैंड के पठारी क्षेत्रों से अच्छी धूप वाले कैलिफोर्निया तक और मध्य एशिया में प्रगतिशील अज़रबैजान से संघर्षरत यूक्रैन तक कार्यक्रमों के लिये गये।
टेनेसी में हुए जबरदस्त ‘भाव स्पंदन कार्यक्रम’ में पहले ही ओवरबुकिंग हो चुकी थी, फिर भी कई हज़ार लोग वेटिंग लिस्ट में थे। इस कार्यक्रम के बाद मैं यह सोच रहा था कि मुझे अब ऐसे शानदार कार्यक्रम करने से दूर हट जाना चाहिये, हालाँकि इसमें अधिकांश लोगों को उनकी कल्पना से परे अनुभव होते हैं। पिछले दो सालों में मैं ऐसे कार्यक्रमों में यही सोच कर जा रहा हूँ कि यह अब मेरे लिये अंतिम कार्यक्रम होगा। लेकिन जब लोगों में आए हुए उन अविश्वसनीय बदलावों को देखता हूँ कि लोग कैसे अपने सख्त ढाँचे को तोड़कर एक विशाल जीवन में मिल जाने वाली भव्य ऊर्जा में बदल जाते हैं, तब मेरा हृदय मेरे विचारों को बदल देता है।
पतझड़
पत्तों का गिरना
और मिल जाना मिट्टी में
कुछ और नहीं
है बस वृध्दि उर्वरता की
जो देती है जीवन-दायी पोषण
कीट-पतंगों, पेड़ों, पशुओं- पक्षियों को।
हे मानव, तुम कब सीखोगे
कि जीवन समृद्ध होगा,
बल्कि, हर जीवन को,
वैसा ही होने देने से,
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जैसा वह है।
जो गिरे हुए हैं,
छुएँगे ऊँचाई को
समय आने पर।।
अमेरिका में एक विशाल शाम्भवी कार्यक्रम
इस समय, जब अमेरिका के इस सुंदर कुम्बरलैंड पठारी इलाक़े की वादियाँ, सर्दी के मौसम की अपनी तैयारी में जुटी हैं, यह पतझड़ का रंगीन समय एक शानदार मनोरंजक कार्यक्रम जैसा है। इस भव्यता के बीच अब समय है एसएफओ जाने का जहां अमेरिका में होने वाले सबसे विशाल शाम्भवी कार्यक्रम में 3500 लोग भाग लेने वाले हैं। सत्य की खोज में लगे इन अदभुत लोगों के बीच रहना आनंदमय होगा। इतने बड़े समूह में लोगों का इतना खुश, अनुशासित और फ़ोकस्ड होना वास्तव में असाधारण है। निश्चित रूप से शाम्भवी की अद्भुत प्रकृति एक बहुत बड़ा आकर्षण है। धन्यवाद आदियोगी को और दूसरे ऋषियों को जिन्होंने इस महान संभावना को हज़ारों वर्षों से जीवित रखा है। यह सरल लेकिन शक्तिशाली प्रक्रिया मानव जाति के लिए एक बड़ा गेम चेंजर हो सकती है, यदि यह विश्व के नेताओं को तक पहुँच सके तथा उन्हें बदल सके। हम इसी राह पर चलते रहेंगे...।
हवाई उड़ानें, अज़रबैजान की राजधानी बाकू जाना, फिर वहाँ से यूक्रैन में कीव, वहां से सिंगापुर और कुआलालंपुर, और फिर वापस दिल्ली – और ये सारी यात्राएँ एक सप्ताह के अंदर। बाकू के इलाक़े में सप्तर्षियों के निशान दिखते हैं। उनके प्रभाव वहाँ अभी भी स्पष्ट दिखते हैं। सबसे बड़ी निशानी के रूप में वहाँ होने वाली तत्वों की पूजा दिखती है। ज्वालाजी मंदिर उस शहर के लिये मुख्य आकर्षण है। लगभग 1100 वर्ष पहले तक भारतीय आध्यात्मिक प्रभाव अपने पूर्ण रूप में यहां पर था। कट्टर और धर्मांध लोगों के आक्रामक रुख ने एक सम्पूर्ण समावेशी आध्यात्मिक प्रक्रिया की सुगंध को मिटा डाला। बीसवीं शताब्दी में सोवियत विस्तारवाद ने धार्मिक अतिवाद को लगभग ठीक कर दिया लेकिन धर्म के ज़रिए सांस्कृतिक बदलाव अभी भी हो रहा है।
ज्वालाजी तो जाना ही है। इस पवित्र स्थान ने चार हज़ार वर्षों से भी पुरानी, भारतीय आध्यात्म एवं योग की परंपरा को जीवित रखा है। इंसान को मरना ही है- इस बात के महत्व को जागरूकता के साथ इससे ज्यादा स्पष्ट नहीं दिखाया जा सकता। संस्कृत मंत्रोच्चारण, सदा से चला आ रहा अग्नि का सांकेतिक महत्व तथा देवनागरी शिलालेख, इस स्थान को भारत की सॉफ़्ट पावर की पहुंच का एक लैंड्मार्क बनाते हैं।
बाकू शहर, पेट्रो-धन के कारण आर्थिक रूप से संपन्न है। वर्तमान प्रशासन ऐसे भवन बना रहा है जो कलात्मक, भव्य और सुरुचिपूर्ण हैं एवं राष्ट्र का गौरव बन रहे हैं। बाकू का प्रतिष्ठित एवं बेहद सुंदर ‘हैदर अलियेव सेंटर’, जो खचाखच भरा हुआ था, दुनिया के बेहतरीन ऑडिटॉरीयम में से एक है। यक़ीन करना मुश्किल है, लेकिन यह छोटा सा देश इन्फ़्रस्ट्रक्चर के मामले में बेहतरीन काम कर रहा है। उन्होंने एक बहुत बढ़िया गोल्फ संस्थान भी बनाया है।
अब मैं यूक्रैन के कीव की ओर जा रहा हूँ। इस भू भाग ने पहले और दूसरे विश्व युद्ध की बहुत मार झेली है, साथ ही क्रांति के कारण हुए एकीकरण का और फिर टूटने के बाद का दर्द भी भोगा है।
हमारे यूक्रैन के स्वयंसेवक जबरदस्त गतिविधियों की परेशानियों में बहुत व्यस्त रहे हैं और सभी कार्यक्रमों में सभागृह पूर्णतः भरे रहे। अदभुत, उत्साह से भरे कार्यक्रम और उसके बाद पुस्तकों पर हस्ताक्षर करने का कार्यक्रम। यूक्रैन के प्रभावशाली लोगों से कुछ मुलाकातों के बाद ‘द इकोनॉमिस्ट’ पत्रिका द्वारा आयोजित ‘सस्टेनेबिलिटी समिट एशिया’ में भाग लेने के लिये सिंगापुर, कुआलालंपुर की ओर जा रहा हूँ। कीव में तापमान शून्य से नीचे था। सिंगापुर में वही अपनी एशिया की गर्माहट मिलेगी।
युद्ध विराम के सौ वर्षों बाद, लोगों में शांति के लिये इच्छा है, विचार है लेकिन अभी शांति की संस्कृति नहीं बन पाई है। लोगों को व्यक्तिगत तौर पर शांतिपूर्ण संभावना में बदले बगैर विश्व शांति सिर्फ सिद्धांत रुप में एक धारणा ही रहेगी। शांति वास्तव में हो इसके लिये आईये, हम सब मिल कर कोशिश करें।