हम अक्सर कुछ आदतों को अच्छी और कुछ को बुरी समझते हैं और अपनी बुरी आदतों से छुटकारे का उपाय सोचते रहते हैं। आज के स्पाॅट में सद्गुरु बुरी आदतों से छुटकारे का रास्ता दिखा रहे हैं और बता रहे हैं कि आदत बुरी या अच्छी नहीं होती।
आदत - अच्छी या बुरी नहीं होती
एक सवाल अकसर सामने आता है, विशेषकर नया साल शुरू होने पर, कि बुरी आदतों से छुटकारा कैसे पाएं? दरअसल, अच्छी आदत या बुरी आदत जैसी कोई चीज नहीं होती, आदतें सारी बुरी होती हैं।
अगर आप नहीं जानते कि किसी पल आपको किस चीज की जरूरत है तो इसकी वजह चेतनता की कमी है।
आदत का मतलब किसी काम को अचेतन तरीके से करना या उस काम का ऑटोमैटिक तरीके से यानी अपने आप होना है। उदाहरण के लिए दांतों को ब्रश करना भी दो तरीके से हो सकता है। एक तो आप इसे सचेतन रूप से कर सकते हैं, जिसका मतलब है कि आप दांत साफ करने में लगने वाला समय और ब्रश घुमाने की गति भी खुद तय करें। यही होना भी चाहिए। या फिर आप इसे अपनी आदत अनुसार तीन मिनट तक घिस सकते हैं। अगर आप सचेत होंगेे तो आप हर दिन उतना ही खाएंगे और सोएंगे, जितना शरीर के लिए जरूरी होगा। दरअसल आप हर काम ही जरूरत अनुसार करेंगे। लेकिन फिलहाल आपकी रोजाना की बहुत सारी गतिविधियां आपकी
आदतों के अनुसार या फिर किसी डाॅक्टरी निर्देश के अनुसार होती हैं, जैसे आपको कब जागना है, कितने बजे सोना जाना है, क्या खाना है और क्या नहीं खाना है। अगर सब कुछ किसी के निर्देश से ही तय हो रहा है तो यह अपने आप में एक तरह की दासता ही है, चाहे आदेश किसी डाॅक्टर का हो या मालिक का। अगर आप नहीं जानते कि किसी पल आपको किस चीज की जरूरत है तो इसकी वजह चेतनता की कमी है।
अचेतन होना आपका अपने प्रति अपराध है
आदतों को अच्छे या बुरे के श्रेणी में बांटना - एक तरह से यह कहना है कि यह अच्छी अचेतनता है और यह बुरी अचेतनता। अगर आप किसी आदत को अच्छी आदत के तौर पर देखते हैं तो यह कुछ ऐसा ही है कि आप अच्छे मायनों में अचेतन हैं, इसका एक तरह से मतलब यह भी है कि आप अच्छे मायनों में मृत हैं।
अगर आप अचेतन हैं तो यह आपका अपने प्रति अपराध है। अगर आप कुछ ऐसा करते हैं जो आपको लगता है कि मेरे चलते आध्यात्मिक है, तो यह मेरे प्रति अपराध है।
जीवंत होने और मृत होने में बुनियादी फर्क यही है - चेतन होना बनाम पूर्णतः अचेतन होना। आंशिक तौर पर अचेतन होने का मतलब है कि आंशिक तौर पर मृत होना। आप अपने भीतर किसी भी तरह की आदत बनने न दें। एकांत वास में जाने या किसी आध्यात्मिक स्थान पर रहने के पीछे बुनियादी सोच यही होती है कि एक ऐसा मददगार माहौल मिल, जहां आप हर चीज सचेतन रूप से कर सकें। आपने रोजमर्रा की जिंदगी जीने के लिए कुछ कोशिश करके कई तरह की आदतों को विकसित कर लिया है। जब आप किसी आध्यात्मिक स्थान पर आते हैं तो आपको चाहिए कि आप अपने शरीर, अपने मन, अपनी भावनाओं और ऊर्जा से जुड़ी जरूरतों पर ध्यान दें। आपको
सचेतन रूप से इस पर गौर करना होगा कि यह जीवन स्वाभाविक रूप से क्या चाहता है। अगर आप अचेतन हैं तो यह आपका अपने प्रति अपराध है। अगर आप कुछ ऐसा करते हैं जो आपको लगता है कि मेरे चलते आध्यात्मिक है, तो यह मेरे प्रति अपराध है। फिर तो बेहतर होगा कि आप उसे करें ही नहीं।
अचेतनता नहीं है, उस पर काम मत करें
अगर आप आदतों से छुटकारा पाना चाहते हैं तो यह मत सोचिए कि आपको अचेतनता से निजात पानी होगी। ‘अ’ का मतलब है किसी चीज़ का अभाव। चेतनता है।
अगर आप सचेत हो गए तो फिर आपको अचेतन आदतों से लड़ने की जरूरत नहीं है। इसलिए आपको बस चेतन होने की दिशा में काम करने की जरूरत है।
अचेनता का मतलब है - चेतनता का न होना। तो आप किसी ऐसी चीज से छुटकारा नहीं पा सकते, जो मौजूद ही न हो। इसे एक उदाहरण से समझते हैं। मान लीजिए कि एक कमरे में पूरी तरह अंधेरा है। उस कमरे से अंधेरे को बाहर निकालना अपने आप में एक पागलपन होगा। अंधेरे से छुटकारा पाने के लिए आपको बस रोशनी करनी होगी। अंधेरे का अपना कोई अस्तित्व नहीं हेाता। यह दरअसल रोशनी की गैरमौजूदगी है। इसी तरह से अचेतनता का अपना कोई अस्तित्व नहीं होता। यह सिर्फ चेतनता की गैर मौजूदगी है। अगर आप सचेत हो गए तो फिर आपको अचेतन आदतों से लड़ने की जरूरत नहीं है। इसलिए आपको बस चेतन होने की दिशा में काम करने की जरूरत है। चेतन होना ही जीवन का सार है। आपको जीवित होने का अहसास सिर्फ इसीलिए होता है क्योंकि आप थोड़ा-बहुत सचेतन हैं।
साधना से अचेतनता के चक्र को तोड़ सकते हैं
ज्यादा चेतन होने के लिए आपको अपनी ऊर्जाओं की तीव्रता को बढ़ाना होगा। और यही हम लोग कर रहे हैं। आपके भौतिक शरीर ने एक जड़ता हासिल कर ली है, इसलिए सुबह हठ योग कराया जाता है।
जब आप चीजों को आदतन करते हैं तो यह आपको आसान लगता है, लेकिन उसमें न तो जागरूकता होती है और न ही विकास।
आपका मन कुछ आदतों के पैटर्न में जकड़ चुका है, इसलिए इनर इंजीनियरिंग कार्यक्रम और कुछ खास तरह के ध्यान अभ्यास कराए जाते हैं। इसी तरह से आपकी ऊर्जा ने भी एक खास तरह का पैटर्न बना लिया है, इसीलिए साधना कराई जाती है। इन सबके पीछे सोच यही है कि अचेतनता के चक्र को तोड़कर चेतन बना जाए। जब आप चेतन होने लगते हैं तो कम से कम शुरू में ऐसा लगता है कि आप एक अनजाने इलाके में हैं, जो काफी मुश्किल लगता है। जब आप चीजों को आदतन करते हैं तो यह आपको आसान लगता है, लेकिन उसमें न तो जागरूकता होती है और न ही विकास।
जेल के जीवन की कार्यकुशलता
आज से करीब 25 साल पहले जब मैं पहली बार कोयंबटूर जेल में एक कार्यक्रम आयोजित करने गया तो मैंने गौर किया कि यह एक ऐसी बनावट और दिनचर्या है, जिसे बहुत सारे लोग अपने जीवन में पाना चाहते हैं।
एक इंसान आराम, सुविधाओं, धनदौलत व दूसरी चीजों की कमी के चलते पीड़ित नहीं होता, सबसे ज्यादा पीड़ा होती है आजादी नहीं मिलने से।
यह एक ऐसी जगह है, जहां कोई हमेशा आपके लिए दरवाजे खोलता व बंद करता है, कोई आपके लिए बत्ती जलाता और बुझाता है, खाना बिल्कुल ठीक समय पर आपके लिए आता है। ज्यादातर लोग अपने जीवन में यही सब तो चाहते हैं- संगठन, एक सुव्यवस्था और कार्यकुशलता। यहां सिर्फ एक ही समस्या है कि ये सब कुछ आप पर जबरदस्ती थोपा गया है, इसलिए लोग कैद में परेशान होते हैं। अगर आप जेल में जाएं तो वहां की हवा में ही एक पीड़ा महसूस होती है। इससे कोई फर्क नहीं पड़ा कि मैं किस जेल में कार्यक्रम आयोजित करने गया, मेरे हर दौरे में एक बार भी ऐसा नहीं हुआ कि मैं आंखों में बिना आंसू लिए जेल से लौटा हूं, क्योंकि जेल के पूरे वातावरण में जितनी पीड़ा होती है, वह असहनीय होती है। एक इंसान आराम, सुविधाओं, धनदौलत व दूसरी चीजों की कमी के चलते पीड़ित नहीं होता, सबसे ज्यादा
पीड़ा होती है आजादी नहीं मिलने से।
कार्यकुशलता नहीं आज़ादी चाहता है इंसान
अपने सामान्य जीवन को जीने, रोज काम पर जाने, ट्रैफिक जाम में फंसने व रोजमर्रा की मुश्किलों से जेल का जीवन कहीं आसान होता है। एक कैदी के रूप में आप सरकारी मेहमान होते हैं।
यह जीवन खुद के विस्तार की आजादी पाने के लिए कोशिश करता है। जब यह आजादी किसी से छीन ली जाती है, तो फिर पूरी तरह से सुव्यवस्थित जीवन होने के बावजूद उसका चेहरा दुखी होकर लटक जाता है।
अगर आप बिना किसी हैरानी के, पूरी तरह से सुव्यवस्थित जीवन चाह रहे हैं तो वो जीवन यही है। हर छोटी से छोटी चीज अगर आपके तनाव व दबाव का कारण बनती है व आपके संतुलन को बिगाड़ती है तो जेल का जीवन आदर्श है। वहां हर चीज एक व्यवस्था के तहत होती है और जहां हैरानीभरा कुछ नहीं होता। यहां तक कि अगले सात दिनों के भोजन का मेन्यु भी पहले ही लगा दिया जाता है, जिसका सख्ती से पालन होता है। वे लोग मेन्यु से ज्यादा या कम कुछ भी नहीं देते। सब कुछ योजनानुसार ही होता है। जो लोग एक नियमित, व्यवस्थित व घटनाविहीन जीवन जीना चाहते हैं, उनके लिए जेल एक आदर्श जगह है। लेकिन इंसान सबसे ज्यादा तभी पीड़ित होता है, जब उसे आजादी नहीं मिलती। आदतों का मतलब ही यही है कि आपने अपने लिए एक छोटी सी जेल बना ली है, जिसमें घिरकर आप अंततः पीड़ा ही पाते हैं। हालांकि शुरू में यह कार्यकुशलता की तरह लगता है। कुछ समय बाद यही एक कैद की तरह लगने लगता है। एक जेल कई रूपों में कार्यकुशलता का शिखर होती है। लेकिन यह जीवन कार्यकुशलता को हासिल करने के लिए प्रयासरत नहीं रहता। यह जीवन खुद के
विस्तार की आजादी पाने के लिए कोशिश करता है। जब यह आजादी किसी से छीन ली जाती है, तो फिर पूरी तरह से सुव्यवस्थित जीवन होने के बावजूद उसका चेहरा दुखी होकर लटक जाता है।
जंगल अव्यस्थित होते हुए भी सक्षम है
इस बात से मुझे उस बातचीत की याद आ गई जो अमेरिका के उस जाने-माने मैनेजमेंट एक्सपर्ट के साथ मेरी हुई थी। उनके मैनेजमेंट सिद्धांत कुछ जड़ व कठोर प्रक्रियाओं के आधार पर स्थापित थे।
आदतों से छुटकारा पाने के लिए आपको सचेतन होना होगा। अगर आप ज्यादा सचेत हो गए तो फिर आपके लिए आदत जैसी कोई चीज नहीं होगी। फिर आप वही करेंगे, जो आपके लिए व आपके सामने आए किसी खास पल में बनी परिस्थिति के लिए सही होगा।
कार्यकुशलता बढ़ाने के लिए अंत तक हर चीज सुव्यवस्थित तरीके से तय कर दी गई थी। यह मुझे अपने आप में एक कालकोठरी सा लगा। इसे एक अन्य उदाहरण से भी समझते हैं। एक ऐसा बगीचा है, जो पूरा तरह से संवरा हुआ है और देखने में खूबसूरत भी लगता है, और दूसरी ओर जंगल भी हैं, जो अपने आप में अव्यवस्थित लगते हैं। लेकिन अगर आप संवरे हुए बगीचे की एक महीने देखभाल नहीं करेंगे तो यह बर्बाद हो जाएगा। जबकि जंगल पिछले लाखों लाखों साल से खुद को संभाले हुए हैं। जाहिर सी बात है कि जंगल अपेक्षाकृत ज्यादा सुव्यवस्थित और सक्षम हैं। इसी उदाहरण को हम आगे ले चलते हैं, आत्म-ज्ञान पाने का मतलब इंसान का एक संवरे हुए बगीचे से
जंगल के रूप में रूपांतरित होना है, जहां उसे खुद को टिकाए रहने के लिए किसी बाहरी मदद की जरूरत नहीं होती। किसी को पानी देने, बगीचे को खाद देने, पौधों को छांटने की जरूरत नहीं होती, जहां हर चीज अपने भीतर ही होती है। यह खुद अपने बल पर इसलिए टिकता है, क्योंकि इसमें अव्यवस्था की सक्षमता होती है।
हम किसी चीज को इसलिए अव्यवस्थित या अराजक कहते हैं, क्योंकि यह हमारे तार्किक खांचे में फिट नहीं बैठती, लेकिन इसका यह मतलब नहीं है कि उसमें क्षमता की कमी है। आदत का मतलब है कि आप अपने ही तर्कों के दास हो चुके हैं और कुछ समय बाद यह आॅटोमेटिक व अचेतन पैटर्न बन जाता है। आदतों से छुटकारा पाने के लिए आपको सचेतन होना होगा। अगर आप ज्यादा सचेत हो गए तो फिर आपके लिए आदत जैसी कोई चीज नहीं होगी। फिर आप वही करेंगे, जो आपके लिए व आपके सामने आए किसी खास पल में बनी परिस्थिति के लिए सही होगा। इरादे करने भर से रूपांतरण नहीं होता, यह केवल चेतना आने के बाद ही होता है।