जीवन में निर्णय लेना कठिन क्यों होता है?
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हम अपने जीवन में कई बार खुद को ऐसी स्थिति में पाते हैं, जहां निर्णय लेना मुश्किल हो जाता है। समझ नहीं पाते कि क्या करना ठीक है। आज के स्पॉट में सद्गुरु बता रहे हैं कि आखिर क्यों होता है ऐसा?
लोग नियमित तौर पर, मेरे पास अपने जीवन से जुड़े अहम विषयों पर राय लेने आते हैं, जैसे उनके कैरियर के चुनाव, विवाह, संतान, आध्यात्मिक सक्रियता या फिर उनके तलाक से जुड़े निर्णय आदि। हमें इस जीवन को अस्तित्व के स्तर पर देखना चाहिए। हकीक़त यही है कि आप अकेले ही जन्मे थे - फिर आपने विवाह करने का कठिन निर्णय लिया। उस मामले में, अपनी मूल अवस्था में वापिस जाना एक आसान निर्णय है। चुंकि आपने अपने हर काम के साथ अपनी पहचान को जोड़ ली है, आपने दूसरे इंसान को अपनी संपत्ति मान लिया है, यही वजह है कि आपको यह निर्णय लेने में कठिनाई हो रही है।
निर्णय लेना इतना कठिन भी नहीं है। कठिनाई इसलिए आती है क्योंकि आपकी अपने आसपास की वस्तुओं में बहुत गहरी आसक्ति है। पश्चिमी समाज में, लोगों को यह तय करने में बहुत परेशानी होती है कि विवाह करें या न करें। भले ही वे किसी के साथ वर्षों से रह रहे हों, लेकिन उसी के साथ विवाह करने की प्रतिबद्धता दिखाना, उनके लिए बड़ा संघर्ष बन जाता है। क्योंकि उन्हें उन छोटी ची़जों का साथ छोड़ना होगा, जिनके वे अभ्यस्त हो गए हैं।
तो सवाल यह है कि इस काँटों के घेरे से बाहर कैसे आया जाए? ये काँटे दरअसल महज भ्रम हैं। यह केवल इसलिए हैं कि आपने जीवन के अनेक पहलुओं के रूप में अपनी पहचान बना़ ली है, जिसकी वजह से जिन चीजों को आनंददायक होना चाहिए था, वही आपके लिए कंटक बन गए हैं। आपकी पत्नी, आपका पति, संतान, मित्र और परिवार आदि आपके लिए आनंद के स्त्रोत हैं, जिन्हें आप शायद हमेशा से अपने लिए चाहते थे। वे सब पीड़ा का कारण बन गए हैंए क्योंकि आपने अपनी पहचान उनसे जोड़ ली है।
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जीवन की अर्थहीन यात्रा
करती है निवेदन तुमसे
रहो लालायित हमेशा
आगे बढ़ने के लिए,
क्योंकि रुकना मृत्यु है।
करती है मजबूर
चलने और चलते रहने को।
पर कहां है जाना?
जब सब कुछ यहीं है - मेरे भीतर।
जब समय और स्थान भ्रम हैं - अज्ञानता के
जब मान लेते हैं हम
जीवन की छाया को ही जीवन
तब नापना इस छाया की लम्बाई और चौड़ाई
है घनीभूत करने जैसा
खुद की अज्ञानता को।
नहीं है यह बात कि
जाना कहां है या
कितनी दूर जाना है।
दूर जाना – दर्शाता है
कि डूबा है जीवन पूरी तरह
अज्ञानता में ।
सवाल नहीं है यह भी
कि जाएं या न जाएं।
त्याग कर अस्तित्व-हीन इस यात्रा को
जानोगे तुम - अपने अस्तित्व के आनंद को।