आज के स्पॉट में सदगुरु अपने किशोरावस्था और जवानी के दिनों की चर्चा करते हुए बता रहे हैं कि कैसे चमेली की खुशबू ने उनके निर्णय को बदल दिया और यह भी बता रहे हैं कि हम उसका इस्तेमाल कैसे करें।
सदगुरु के युवावस्था के दिन
मेरी उम्र उस समय 19 साल की रही होगी, जब मैं भाग जाना चाहता था - अपनी मोटरसाइकिल पर भाग जाना चाहता था। तब तक मैं भारत की सीमाओं को कई बार छू चुका था। मैं जानता था कि अगर मुझे इन सीमाओं को पार करना है तो मुझे इसके लिए कुछ दस्तावेज और पैसों की जरूरत होगी। और तब मैंने बिजनेस शुरू करने की योजना बनाई, ताकि मैं अपने सपने को साकार करने के लिए एक या दो साल में जरूरी पैसे जुटा सकूं और बाहर निकल सकूं।
अगर आप गंध का आनंद जानेंगे तो आप दिव्यदर्शी हो जाएंगे। अगर आप खुद गंध बन जाएं तो इस सृष्टि की रचना का स्रोत बन जाएंगेे।
उस समय मुर्गी पालन का धंधा खूब फल फूल रहा था, इसलिए मैंने भी इसमें हाथ डालने के बारे में तय किया। मैंने कई लोगों से थोड़े-थोड़े पैसे उधार लेकर जमीन का एक छोटा सा टुकड़ा खरीदा। फिर सरकार की बेरोजगार ग्रेजुएट को कर्ज देने की योजना के तहत मैंने बैंक से कर्ज लिया और बेहद कम पैसों में उस जमीन पर निमार्ण काम शुरू किया। मैंने डायनामाइट से कुआं खोदने का तरीका सीखा और मेरा कुआँ पानी से भर गया। उसके बाद मैंने इमारत व ढाँचे सहित बाकी सारी चीजें बनाईं। ये सारे काम सिर्फ दो ही लोगों ने किए, मैं और मेरे साथ एक मजदूर।
कई बार काम करते-करते मेरे हाथ कट-फट जाते थे, उनसे खून निकलने लगता था। बहरहाल, वो मेरे जीवन का एक खूबसूरत दौर था। एक बार जब वह मुर्गी फाॅर्म बन कर तैयार हो गया और हर चीज अपनी जगह पर तय हो गई तो मैं उस वक्त का इंतजार करने लगा कि जब मैं सब कुछ बेचकर मोटरसाइकिल पर कहीं दूर निकल सकूं। अगर मेरा काम सुबह खत्म हो जाता तो फिर सारा दिन मैं एक दूरदराज इलाके में खूबसूरत पेड़ों के साथ अकेले होता था। खाली वक्त में मैं पेड़ों पर बैठ जाता, पास के तालाब या कुंए में तैरने लगता। तब मैंने कविता लिखनी शुरू की, अपने आसपास जो कुछ भी देखता, उस पर कविता लिखता, फिर चाहे वह घास का तिनका हो, कोई टिड्डा हो या कुछ और। मैंने सैकड़ों कविताएं लिखीं।
मैंने डायनामाइट से कुआं खोदने का तरीका सीखा और मेरा कुआँ पानी से भर गया। उसके बाद मैंने इमारत व ढांचा सहित बाकी सारी चीजें बनाईं।
खाली वक्त में कुछ पढ़ता था और खूब ध्यान लगाता था। अच्छा समय था वह। लेकिन उस मुर्गी फाॅर्म की बस एक चीज जो मुझे पसंद नहीं थी, वह थी उसकी बास या गंध। उस गंध से बचने के लिए मैंने तय किया मैं आसपास पूरी जमीन पर चमेली के पौधे लगाउंगा। मुझे लगा कि इससे कुछ और अतिरिक्त आमदनी भी होगी। मेरे फाॅर्म के आसपास ही कुछ कारखाने थे, जो चमेली के फूलों से अर्क निकाल कर उससे तेल निकालते थे। प्रति किलो फूलों की कीमत के हिसाब से मैंने हिसाब लगाया कि कितने महीनों में . मैं अपने जाने के लिए पर्याप्त पैसा जोड़ लूंगा।
चमेली के पौधे लगाने का फैसला
मैंने कुछ एकड़ जमीन में चमेली के पौधे लगाए और उन सभी में खूब फूल खिले। रात में जब मैं बाहर बैठता था तो फूलों से लदे उन पौधों को चांदनी में निहारना अपने आप में एक अविस्मरणीय दृश्य होता था। रात में चमेली के फूल कुछ ऐसे लगते थे जैसे आसमान में छिटके हुए तारें हों और उनकी गहरी हरी पत्तियां और डालियां अंधेरे में खो जाती थीं।
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लेकिन उस मुर्गी फाॅर्म की बस एक चीज जो मुझे पसंद नहीं थी, वह थी उसकी बास या गंध। उस गंध से बचने के लिए मैंने तय किया मैं आसपास पूरी जमीन पर चमेली के पौधे लगाउंगा।
मैं इस दृश्य का खूब आनंद उठाता था, चमेली की गंध मदहोश कर देने वाली थी, इसलिए मैंने उसका एक भी फूल नहीं बेचा। फाॅर्म में चारों तरफ चमेली के पौधे होने की वजह से मैंने इनका नाम ‘चार्म फाॅर्म’ रख दिया। नागों को चमेली बहुत प्रिय होती है। फाॅर्म में मेरे नाग थे, मेरी चमेली थी और मेरा ध्यान था - इन सबके बीच मैं बेहतरीन वक्त बिता रहा था, कई बार तो मैं अपनी मोटरसाइकिल को भी भूल जाता था। चमेली को सूंघना एक बेहतरीन अनुभव होता था।
गंध का स्रोत असल में आप हैं
गंध में एक खूबी होती है। अगर आप सहज रूप से गंध को ऐसेे लेते हैं कि उसका स्रोत फूल न होकर आप हैं तो यह आपके लिए एक नया आयाम खोलती है। फूल गंध नहीं होते, यह आपकी इंद्रियां हैं, जो गंध को रचती हैं। हर कोई गंध का अनुभव एक जैसा नहीं कर सकता। उदाहरण के लिए कुत्ते में गंध का बेहद संवेदनशील भाव होता है, फिर भी अगर वह चमेली को सूंघेगा तो वह मुंह मोड़ लेगा, लेकिन अगर वह मांस को सूंघेगा तो उत्तेजित हो जाएगा।
फूल गंध नहीं होते, यह आपकी इंद्रियां हैं, जो गंध को रचते हैं। हर कोई गंध का अनुभव एक जैसा नहीं कर सकता।
यानी खूबी चमेली में नहीं है। यही वजह है कि योग में हम बाहर की तरफ ज्यादा ध्यान नहीं देते हैं, हम अपने बोध या अनुभूति के साधनों पर ध्यान देते हैं। यह आप हैं, जो बोध या अनुभूति की चीज की गुणवत्ता को तय करते हैं। गंध को महसूस करनाएक ऐसा आयाम है, जिसे लोग कम ही तलाशते हैं। हालांकि इसे समझ पाना और इस पर नियंत्रण आसान है, क्योंकि यह अपेक्षाकृत सरल व सीमित है।
अगर आप बिना कोई फैसले या राय के इंद्रियों की अनुभूति का विशुद्ध अनुभव करना चाहते हैं तो आप एक आसान सा काम कर सकते हैं। आप एक छोटी सी कोशिश कर सकते हैं - चमेली के फूल को सूंघने की। चमेली के फूल की गंध का आनंद नहीं लेना है, बल्कि इसकी गंध का इस्तेमाल सूंघने की अनुभूति का बोध करने के लिए करना है। यह आपको एक ऐसा मौका उपलब्ध कराने के लिए है, जहां आप अनुभव के स्तर पर यह समझ सकें कि कैसे अपने इंद्रियों को खोला जाए।
यह आप हैं, जो बोध या अनुभूति की चीज की गुणवत्ता को तय करते हैं। गंध को महसूस करनाएक ऐसा आयाम है, जिसे लोग कम ही तलाशते हैं।
यह इसलिए है कि आप किसी भी चीज को, अच्छे या बुरे की राय के बिना, देख और महसूस कर सकेें। जो चीज जैसी है, बस वैसी है, न वह अच्छी है, न बुरी है। ज्यादातर मौकों पर आपकी खुशी आपके निर्णय या आपकी
राय से निकलती है। अगर आप किसी चीज को अच्छा मान लेते हैं तो आप उसका आनंद लेते हैं, और अगर आपकी नजर में वह चीज अच्छी नहीं है तो आप उससे दुखी होते हैं। चमेली की अपनी गंध होती है, जो हमारे राय बनाने के लिए नहीं होती। लेकिन आप इस गंध का इस्तेमाल अपने सूंघने की क्षमता के बारे में जागरूक होने के लिए कर सकते हैं।
ध्यान की सरल विधि
देखिए आपको क्या करना है - आप चमेली के फूल को अपने बांये हाथ में अपने अंगूठे और अनामिका अंगूली से पकड़ कर रखें। अब अपनी आंखें बंद कर सहज तौर पर बैठ जाइए। आपका चेहरा थोड़ा ऊपर की ओर उठा होना चाहिए। अब आप अपने दायें अंगूठे से अपनी दांयी नासिका को बंद कर लें और बांयी नासिका से सामान्य तौर पर ली जाने वाली सांस से दस प्रतिशत गहरी सांस लें। अब चमेली के फूल को नाक से छह इंच की दूरी पर रखें।
मेरी उम्र उस समय 19 साल की रही होगी, जब मैं भाग जाना चाहता था - अपनी मोटरसाइकिल पर भाग जाना चाहता था। तब तक मैं भारत की सीमाओं को कई बार छू चुका था।
अगर आप फूल पर गौर करने के लिए तैयार हैं तो आप एक खास दूरी पर से भी उसकी महक को महसूस कर सकते हैं। अगर जरूरत लगे तो इसे थोड़ा पास भी ला सकते हैं। बस इसकी महक को महसूस करें। इस दौरान आप अपनी आंखें बंद रखें और अपने आस-पास की आवाजों पर गौर न करें। इस तरह से आपकी सूंघने की क्षमता बढ़ेगी। आपके सुनने, सूंघने, स्वाद लेने और देखने की क्षमता शारीरिक स्तर पर आपस में जुड़े हुए हैं। एक तरह की इंद्रिय-बोध को बढ़ाने के लिए आपको दूसरी इंद्रियों के बोध को कम करना होगा। इस दौरान आप सिर्फ सूंघने की क्षमता पर ध्यान दीजिए, चमेली की महक पर नहीं। और न ही इसे अच्छे या बुरे के तौर पर देखिए।
गंध की यही प्रकृति होती है। अगर आप सिर्फ गंध की सुंदता को जानेंगे तो आप रूमानी हो उठेंगे। अगर आप गंध की रसायन को जानेंगे तो आप वैज्ञानिक हो जाएंगे। अगर आप गंध का आनंद जानेंगे तो आप दिव्यदर्शी हो जाएंगे। अगर आप खुद गंध बन जाएं तो इस सृष्टि की रचना का स्रोत बन जाएंगेे।
संपादक की टिप्पणी:
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