हमें देवी की स्थापन किए हुए लगभग दो साल पूरे होने जा रहे हैं। हमने जनवरी 2010 में जब भैरवी की प्रतिष्ठा की तो उसके बाद फिर पीछे मुड़ने की नौबत ही नहीं आई। उसके बाद तो सब कुछ उत्तेजना और रोमांच से भर उठा और देवी ने अब तक अनगिनत लोगों की जिदंगियों को प्रभावित किया है। फिलहाल भैरवी के चार बडे़ मंदिर पूरी तरह से तैयार हो चुके हैं, जबकि कई छोटे मंदिर और बन रहे हैं। इस तरह से वह लगातार जगह-जगह पहुंच रही हैं। इस मंदिर के स्थापित होने के पहले मुझे शंका थी कि लोग देवी को ध्यानलिंग से ज्यादा तवज्जो देंगे। लेकीन यह मेरा डर नहीं था। अगर आपके घर में कोई छोटा बच्चा आ जाए तो वह घर के बाकी सदस्यों से ज्यादा महत्वपूर्ण हो जाता है। हालांकि यह कोई बुरी बात नहीं है।

बहुत लोगों को ध्यानलिंग की बजाय देवी से ज्यादा अनुभूति होने की सीधी सी वजह है कि देवी शारीरिक रूप से प्रत्यक्ष होती हैं। जबकि ध्यानलिंग सूक्ष्मता से भरा है, इसे अनुभव करने के लिए व्यक्ति में एक खास तरह की ग्रहणशीलता या ग्राह्यता की जरूरत होती है। यह एक पूरी तरह से एक अलग ही आयाम है। देवी शारीरिक रूप से आपके समक्ष हैं- यहां तक कि वह आपके मुंह पर तमाचा मारने में भी सक्षम हैं। अगर वह खूबसूरत अनुभूती भी दे सकती हैं तो वह मुंह पर तमाचा भी जड़ सकती हैं। हां, मैं यह आपको बता दूं कि आपके चेहरे पर पचास उंगलियों के निशान भी पड़ सकते हैं। क्या देवी साक्षात हैं? हां बिलकुल है। क्या वह शारीरिक रूप से साक्षात नजर आती है? बिल्कुल। जहां तक मेरा सवाल है वह सिर्फ मेरे लिए ही नहीं और भी बहुत से लोगों के लिए वे सजीव और जागृत तत्व हैं।

सवाल है कि देवी के दर्शन करने के लिए मुझे क्या करना चाहिए? इसके लिए आपको कुछ नहीं करना है। अगर आप अपने अंदर बहुत अधिक भरे नहीं हैं तो आपको उसकी अनुभूती होगी, जो आप नहीं है। अगर आप बहुत अधिक भरे हैं तो आपको किसी चीज की अनुभूति नहीं होगी। सिर्फ यहीं नहीं, बल्कि कहीं भी नहीं होगा। देवी की साक्षात अनुभूति से बच पाना मुश्‍किल है। अगर आपकी नजर दुरुस्त है और हम बड़े-बड़े अक्षरों में ए, बी, सी लिखें तो आप इसे आसानी से पढ़ पाएंगे। देवी के साथ भी कुछ ऐसा ही है। वह उन लोगो के लिए है, जिन्हें बड़ी भैरवी के अलावा और कुछ नहीं नजर आता, आप इससे बच नहीं सकते। यह बहुत ही साधारण और सरल सी बात है। हालांकि बहुत से ऐसे लोग भी हैं, जिन्हें अपने सांसो के स्पंदन की भी अनुभूति नहीं होती। तो ऐसे लोग, जो अपने सांसों की धक-धक को महसूस नहीं कर सकते, उन्हें भला किसी और चीज की अनुभूति कैसे होगी ?

ऐसे बहुत से लोग हैं, जिन्होंने कभी अपने दिल की धड़कन ही महसूस नहीं की, ऐसे बहुत से लोग हैं, जिन्हें कभी अपनी सांसों के स्पंदन का ही अहसास नहीं हुआ, ऐसे भी तमाम लोग हैं, जिन्होंने कभी पूनम का चांद ही नहीं देखा। अगर आपको मच्छर के काटने का अहसास नहीं होता, अगर आप अपनी सांसों व दिल की धड़कनों को नहीं महसूस कर सकते, अगर आपने यही गौर नहीं किया कि आपके भीतर पहुंचने के बाद खाने का क्या होता है तो आपको देवी का अहसास और अनुभव क्या होगा? तब तो पचास उंगलियों के निशान आपके चेहरे पर बनने ही चाहिए। अगर आप चाहें तो हम भी यह कर सकते हैं। मैं मजाक नहीं कर रहा। मैं यह कर सकता हूं, लेकिन इससे आपको तकलीफ होगी। कुछ लोगों को भैरवी के साथ कुछ चीजों का अनुभव हुआ है, जो अपने आप में काफी हैरान करने वाला है, लेकिन ऐसे लोग शायद इन चीजों के बारे में बात भी नहीं करना चाहेंगे। मैं यह उन पर ही छोड़ देता हूं। पर ऐसी चीजें हुई हैं। लेकिन ज्यादातर लोगों के साथ समस्या यह है कि वे लोग पहले से ही चीजों की कल्पना करने लगते हैं।

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किसी भी चीज की कल्पना मत कीजिए। अनुभव के लिए कल्पना करना ठीक नहीं। अगर आपको लगता है कि कल्पना आपके अनुभवों का विकल्प बन सकती है तो ऐसा सोचना बेवकूफी है। कुछ समय के लिए तो कल्पना आपको सुखद लग सकती है, लेकिन अगर यह नियंत्रण से बाहर हो जाए तो यह आपको पागल भी कर सकती है। अनुभव इससे अलग है। अनुभव जीवन को बदलता है। कल्पना के सहारे आप दो मिनट में स्वर्ग पहुंच कर वापस आ सकते हैं। हालांकि आप उसी जगह पर होते हो, लेकिन कुछ निराश और हताश, क्योंकि आप वापस जो लौट आए। वास्तव में ऐसा होता नहीं है। वास्तविक अनुभव और भौतिक रूप से दर्शन की अनुभूति पूरी तरह से सम्भव है।

तो इसलिए भक्ति है। मात्र भजन गाने या देवी से प्रेम करने से वह दर्शन नहीं देंगी। वह तो हमेश ही आपके साथ हैं। भक्ति के माध्यम से आप अपने आप को दंभहीन करने या अपने अहम को विलीन करने का प्रयास करते हैं। भक्ति में आपकी लीनता के साथ आपका दंभ कम होता जाता है। देवी को इससे कोई सरोकार नहीं कि आप भक्ति करते हैं या नहीं। आपकी भक्ति से देवी को कोई लेना देना नहीं है। आपकी भक्ति का आप ही से सरोकार है। अगर आप भक्ति में पूर्ण रूप से लीन हैं तो आप दंभहीन हैं। अगर आप दंभहीन हैं तो देवी आपके समक्ष वैसे ही साक्षात है, जैसे सुबह की धूप। इस अनुभव के लिए जरूरी है कि आप दंभहीन हों, पूर्ण रूप से रिक्त हों। आप जितने ज्यादा रिक्त होंगे, उतना ज्यादा आप देवी को महसूस कर सकेंगे।

आपकी भक्ति देवी के लिए नहीं है, आपकी भक्ति स्वयं को विलीन करने के लिए है। लेकिन देवी के बिना आप भक्त नहीं हो सकते। आपको भक्त होने के लिए किसी आराध्य की जरूरत होती है, तो वहां आप देवी का उपयोग कर सकते हैं। यह कुछ ऐसा ही है, जैसे जब आप किसी व्यक्ति या चीज के प्रेम में डूबे होते हैं.... आप अगर बादल भी देखेंगे तो उसमें भी आपको भैरवी दिखेंगी। अगर आप पत्थर देखेंगे तो उसमें भी आपको भैरवी के दर्शन होंगे। शिवजी के भक्तों को आप कुछ भी दिखाइए, उसमें उन्हें लिंग के ही दर्शन होते हैं । वह बादल देखो लिंग जैसा दिखता है। आपको  दिखा? आपको दिखा? हो सकता है कि आपको उनकी बातें मूर्खतापूर्ण लगें । एक स्तर पर यह बेवकूफी हो सकती है, लेकिन यह अपने आप में एक अभूतपूर्व यंत्र या उपकरण है। अगर सभी चीजों में सिर्फ उसी के दर्शन होते हैं तो आप अपने आप में रिक्त हो गए हैं।

यह अपने दंभ को खत्म करने का एक जबरदस्त साधन या उपकरण है, क्योंकि आपकी दुनिया अभी सिर्फ अपने तक ही सीमित है। कृपया इसे समझने का प्रयास करें। आपका दुनिया का अनुभव अपने आप तक ही सीमित है। हर चीज में आप अपना ही प्रतिबिंब देखते हैं। जहां तक आपका सवाल है, आपको लगता है कि आपकी वजह से ही दुनिया टिकी है। आपकी वजह से पूरी सृष्टि का अस्तित्व संभव हो पाया है। इस स्थिति में न तो भक्ति हो सकती है और न ही कोई भक्‍ति और बोध संभव है। आप जिस दुनिया को देखते हैं, वह आपकी अपनी परिभाषा या व्याख्या होती है, उसमें आपका प्रतिबिंब होता है। लेकिन जैसा आप सोचते हैं, वैसी न तो यह दुनिया है, न यह सृष्टि और न ही इसका रचयिता या रचनाकार। यह विशालकाय ‘मैं’ को तोड़ने या खत्म करने के लिए.... आपको हर चीज में भैरवी को देखना होगा। कुछ समय बाद सब कुछ वैसा ही हो जाएगा। फिर अगर आप पत्ता भी देखेंगे तो आपको उसमें भैरवी दिखेगी, अगर फूल देखेंगे तो वह भी आपको भैरवी जैसा ही लगेगा। इसे आपको किसी को बताने की जरूरत नही है। बस इसे आप अपने आप में महसूस करें। कुछ समय बाद तो आप यह भी भूल जाएंगे कि आप कौन हैं?

तो यह मूर्खता नहीं है। जो धारणा या विचार काम करता है उसे आप मूर्खता कहेंगे या चतुराई? यह काम करता है, बस इतना ही काफी है। हर साधन या उपकरणों का उपयोग करना चाहिए न कि विश्लेषण। यह विश्लेषण के लिए नहीं, उपयोग के लिए है। अगर आप इसका इस्तेमाल करेंगे तो यह काम करेगा। अगर आप इसका विश्लेषन करेंगे तो आपको लगेगा कि इस में क्या है? अगर ऐसे ही मैंने आपका विश्लेशन किया तो वास्तव में आप में क्या है ? आपमें कुछ भी नहीं मिलेगा। है कि नहीं?

प्रेम व प्रसाद