दक्षिणायन के आखिरी चरण में करें एक सरल साधना
आज के स्पॉट में, सद्गुरु स्थिरता का महत्व समझाते हुए यह बता रहे हैं कि यह समय इसके लिए सबसे उचित है। इसे अनुभव करने के लिए अगले चार सप्ताह बहुत महत्वपूर्ण हैं। वे हमें एक सरल साधना भी बता रहे हैं।
आज के स्पॉट में, सद्गुरु स्थिरता का महत्व समझाते हुए यह बता रहे हैं कि यह समय इसके लिए सबसे उचित है। इसे अनुभव करने के लिए अगले चार सप्ताह बहुत महत्वपूर्ण हैं। वे हमें एक सरल साधना भी बता रहे हैं।
हमारे जीवन में कुछ हालात ऐसे होते हैं, जिन्हें बदलने के लिए हम कुछ कर सकते हैं। फिर कुछ हालात ऐसे भी होते हैं, जो सिर्फ किसी चीज़ का नतीजा होते हैं।
मैं जहां भी जाता हूं, लोग मुझसे पूछते हैं, ‘सद्गुरु, क्या आप यहां ईशा योग केंद्र खोलेंगे?’ मैं उनसे कहता हूं, ‘मैं रियल इस्टेट वाला आदमी नहीं हूं। मेरा रियल इस्टेट लोगों के दिलोदिमाग में है। हम हर किसी के मन, शरीर और दिल में योग केंद्र स्थापित करना चाहते हैं।’ ईशा योग केंद्र निश्चित रूप से दुनिया में इस तरह से बढ़ रहा है – यह लोगों के दिलोदिमाग में बढ़ रहा है। भौगोलिक स्थान नहीं बल्कि इंसानों को योग का केंद्र बनना चाहिए। इस संदर्भ में यह एक महत्वपूर्ण महीना है क्योंकि खास तौर पर उत्तरी गोलार्ध में एक तरह की जड़ता या निष्क्रियता प्रकृति में और ऊर्जा के काम करने के तरीके में आ जाती है।
इस समय प्रकृति की मदद से स्थिर हुआ जा सकता है
यह चरण शिव के लिए महत्वपूर्ण है। शिव को उनके नृत्य के लिए तो जाना जाता ही है, मगर वे अपनी स्थिरता के लिए अधिक जाने जाते हैं। यह समय उसी स्थिरता में मददगार होता है।
आपको यह स्थिरता अपने परिवार, अपने घर में भी लानी चाहिए। आपके बच्चों सहित जो कुछ भी स्थिरता वाली जगह में विकसित होता है, उसके अंदर बिल्कुल अलग गुण होंगे। स्थिरता और उल्लास अस्तित्व की प्रकृति हैं। यही योग की, सृष्टि की और जिसे हम शिव कहते हैं, उसकी प्रकृति है – स्थिर मगर जबर्दस्त तरीके से जीवंत या स्पंदनशील। एक तरह से आधुनिक विज्ञान भी यह समझने लगा है कि सृष्टि का सबसे जीवंत आयाम शून्यता है। हर इंसान के लिए ऐसा बनना संभव है कि जब आप कहीं बैठें, तो वह स्थान स्थिरता के एक उल्लासमय रूप को प्रदर्शित करे।
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तमिलनाडु की पहाड़ी पर जैन मुनियों की उपस्थिति का अहसास
कई साल पहले, मैं तमिलनाडु के छोटे शहरों और गांवों में कार्यक्रम कर रहा था। उसका अनुभव बहुत बढ़िया था क्योंकि मैं ऐसे लोगों के साथ काम कर रहा था, जिनके अंदर एक खास मात्रा में मासूमियत भी थी और आग भी। हम वेलायुथंपलयम नामक जगह पर पहुंचे। लोगों ने बताया, ‘आपको पहाड़ी के मंदिर में जाना चाहिए।’ मैंने उनसे कहा, ‘तमिलनाडु में कोई पहाड़ी सूनी नहीं है, हर पहाड़ी पर एक छोटा सा मंदिर है। उसे छोड़ देते हैं।’ फिर एक दिन उन्होंने मुझे बताया कि वहाँ एक गुफा भी है जिसमें करीब ढाई हजार साल पहले कुछ जिन या जैन संत रहते थे। इसमें मुझे दिलचस्पी हुई। समय को देखते हुए यह कहा जा सकता है कि वे लोग महावीर के जीवनकाल में उनके शिष्य रहे होंगे।
हम पहाड़ी पर चढ़े और ऐसी जगह पहुंचे, जहां से एक संकरा सा रास्ता गुफा तक जाता था। वहां के राजा ने उनके लिए चट्टानों से तराश कर बिस्तर बनवाए थे, जहां एक समतल जगह और चट्टान से ही बना हुआ एक छोटा तकिया था। मैं एक बिस्तर पर बैठा, वे सदियों बाद भी उतने ही जीवंत थे, मानो एक दिन पहले वे यहां रहे हों। उस जगह का अच्छा रख-रखाव नहीं था, वहां के युवक मस्ती करने और शराब पीने के लिए वहां आते थे। वहां टूटी बोतलें और कूड़ा बिखरा था और पत्थरों पर नाम खुदे थे कि कौन किससे प्रेम करता है। हमने उस जगह की सफाई की और वहां रात बिताने का फैसला किया। वह एक अद्भुत रात थी, उन्होंने इस तरह के पदचिह्न वहां छोड़े थे। उनका पदचिह्न छोड़ने का कोई इरादा नहीं था, मगर वे जहां भी बैठे या खड़े हुए, वहां कुदरती तौर पर उनके निशान रह गए क्योंकि वे अपने अंदर वैसे ही हो गए थे।
भारत का मतलब यही है। सदियों से जिन लोगों में एक आंतरिक खोज की चाह थी, वे पूर्व की ओर आए। उसकी वजह सिर्फ यह है कि बहुत से महान प्राणियों ने अपनी ऊर्जा यहां छोड़ी। हजारों साल से महान क्षमता व गहनता वाले प्राणियों के होने से इतनी जबरदस्त चीज़ स्थापित हो सकी है। कुछ शानदार तैयार करने के लिए, चाहे वह स्थान हो या इंसान, बहुत मेहनत लगती है। उसे गंदा करने में बस एक दिन लगता है। अब दक्षिणायन का अंतिम चरण है, इसका मतलब है कि साधनापद का आखिरी चरण चल रहा है। यह साल का वह समय है, जब हमें नतीजे के बिना कोशिश करनी चाहिए। बुद्धिमान इंसान यह समझता है कि हमारे जीवन के एक आयाम के लिए मेहनत जरूरी है – हमारे जीवन का दूसरा आयाम नतीजा है। अगर हम शानदार नतीजा चाहते हैं, तो उसके लिए उतनी ही अधिक मेहनत की जरूरत होगी।
सृष्टि, सौर मंडल और हमारा शरीर भी एक मशीन है
इसका मतलब आपके किए गए काम का पुरस्कार मिलना नहीं है। यह इस मशीन की प्रकृति है, जिसे हम सृष्टि कहते हैं। मैं सृष्टि को मशीन इसलिए कहता हूं क्योंकि यह हर हाल में काम करती है। है।
उसे अच्छी तरह रखने का मतलब महज़ फिटनेस नहीं है, यह उसका सिर्फ एक पहलू है। वह बहुत ऊँचे स्तर पर काम करे, इसके लिए उसे अच्छी तरह रखने की ज़रूरत होती है, जिसके लिए क्रमिक विकास की जरूरत होती है। क्रमिक विकास का क्या मतलब है? पुराने खुदाई के स्थानों पर, पुरातत्वविद अक्सर पॉटरी के टुकड़े खोजते हैं। कल्पना कीजिए, जब पहली बार लोगों ने मिट्टी खोद कर उससे बर्तन बनाए होंगे - पहली बार, उनके पास कोई ऐसी चीज थी जिसमें वे पानी भर कर घर ले जा सकते थे। उनके लिए वह कितना शानदार रहा होगा। एक साधारण से बर्तन ने लोगों की जिंदगी बदल दी। वह मानव समाज के विकास में एक मील का पत्थर रहा होगा। आज हम उसी मिट्टी को खोदकर उससे अंतरिक्षयान बना रहे हैं। एक ही संसाधन से हम आज कितनी सारी चीजें कर सकते हैं। यह इंजीनियरिंग का क्रमिक विकास है। इसी तरह, एक ही संसाधन से एक इंसान बहुत सारी चीजें कर सकता है।
भक्ति और साधना से शरीर की क्षमता बढ़ाना जरुरी है
हम इस इंसानी तंत्र से क्या कर सकते हैं, उसकी इंजीनियरिंग को विकसित करना ही साधना और योग का मकसद है। इसीलिए हमने अपने बुनियादी कार्यक्रम को इनर इंजीनियरिंग का नाम दिया है।
अगर आप उन लोगों के जीवन को देखें, जिन्होंने दुनिया में कामयाबी पाई है – चाहे वे कारोबारी रहे हों, संगीतकार, कलाकार या कुछ और – वे सिर्फ भाग्यशाली नहीं थे। उन्होंने इसे संभव करने के लिए काफी मेहनत की। जब हर कोई सो रहा होता था, तो वे जागे होते थे और कुछ कर रहे होते थे। जब बाकी हर कोई मामूली खुशियों से संतुष्ट था, वे काम कर रहे थे। अगर आपको लगता है कि आप मेहनत कर रहे हैं, मगर कुछ नहीं हो रहा है, तो आप जो प्राणी हैं, उसे विकसित करने की जरूरत है। क्रमिक विकास हर स्तर पर होता है। जो एक इंसान के रूप में पर्याप्त रूप से विकसित है, उसे बाहरी आयाम पर काम करना शुरू करना चाहिए। जो नहीं है, उसे अपनी आंतरिकता पर काम करना चाहिए। इस मशीन को उस हद तक विकसित होना चाहिए कि इसका काम लोगों को चामत्कारिक लगे।
मशीन का विकास महत्वपूर्ण है। इस मशीन को उस बिंदु तक विकसित होना चाहिए, जहां यह बड़ी मशीन का एक हिस्सा न रह जाए, यह खुद मशीन बन जाए। जिसे हम शिव कहते हैं, वह मशीन का एक हिस्सा नहीं है, यह मशीन का मूल है। यह अस्तित्व का मूल स्रोत है। यही विकास की वह अवस्था है, जिसके लिए एक योगी प्रयास करता है – थोड़ा और चमकीला हिस्सा बनना नहीं, बल्कि मशीन की गहराई तक जाते रहना जब तक कि एक दिन वही मशीन का मूल स्रोत न बन जाए। धरती पर निष्क्रियता की यह अवधि बहुत अच्छी है – इसमें आप अनायास स्थिर हो सकते हैं।
21 दिसम्बर तक करें एक सरल साधना
यह आपके जीवन में स्थिरता लाने का समय है। आप दिन भर में आम तौर पर जितने शब्द बोलते हैं, अभी से इक्कीस दिसंबर को संक्रांति तक, उसका सिर्फ पचास फीसदी बोलने का ध्यान रखें। यह वाकशुद्धि है। इससे बोली में शुद्धता आएगी। यह किसी और के लिए नहीं है। आपके लिए यह बहुत महत्वपूर्ण है कि आपके मुंह से क्या निकल रहा है। यह किसी उत्सर्जन परीक्षा या गाड़ी के एमिशन टेस्ट की तरह है। अगर आप एक ही क्रिया करते समय आम तौर पर इस्तेमाल किए जाने वाले शब्दों का सिर्फ पचास फीसदी इस्तेमाल करेंगे, तो आपके अंदर स्थिरता आने लगेगी। यह सचेतन मौन है। पूर्ण मौन अलग तरीके से होना चाहिए, उचित साधना के साथ। सिर्फ सभी शब्दों को रोक लेना और कुछ न करना, शांति नहीं लाएगा क्योंकि जो शोर वैसे बाहर आता, वह ऊपर दिमाग में चला जाएगा। हो सकता है आप अनुभव से इसे जानते हों।
आप जो कहना चाहते हैं, उसके लिए पूरी चेतनता में आम तौर पर इस्तेमाल होने वाले शब्दों का पचास फीसदी इस्तेमाल करते हुए वाक्य बनाएं। इस महीने आपको यह जरूर करना चाहिए। पचास फीसदी शब्द, मगर उतनी ही क्रिया।