योगम् शरणम् गच्छामि - क्यों लें योग की शरण?
यह समझने की जरुरत है कि इंसान का कल्याण उसके भीतर है और उन्हीं भीतरी पहलुओं को संभालने और सुधारने की तकनीक है योग।
सद्गुरु: अंतरराष्ट्रीय योग दिवस का आयोजन कई मायनों में बेहद महत्वपूूर्ण व प्रभावशाली है। योग को पूरी दुनिया में पहुंचाने की यह प्रधानंमत्री नरेंद्र मोदी की कोशिश है। योग से खुद उनके जीवन में जो बदलाव आया उसे पूरी दुनिया तक पहुुंचाने की उन्होंने कोशिश की। संयुक्त राष्ट्र संघ में 177 देशों ने इस प्रस्ताव का समर्थन किया, जो अपने आप में एक कीर्तिमान है। यह सब अपने आप में एक अविश्वसनीय सी उपलब्धि है, जो प्रधानमंत्री की प्रेरणा और कोशिशों से ही हासिल हो सकी। साथ ही पिछले कुछ दिनों में जिस तरह से इस आयोजन के लिए भारत में हर किसी ने अपनी भूमिका निभाई है, वह भी निश्चित रूप से प्रशंसनीय है। मीडिया ने शानदार काम किया है, कॉरपोरेट सेक्टर ने इसके लिए अपने दरवाजे खोल दिए। आम लोगों के बीच, चाहे वे भारत के हों या दुनिया के दूसरे देशों के, इस आयोजन को लेकर जिस तरह की दिलचस्पी नजर आ रही है, वह गजब की है। ईशा फाउंडेशन के जरिये हम लोगों ने एक लाख से ज्यादा जगहों पर योग का प्रचार प्रसार किया है। कई और संगठनों ने भी इस दिशा में बहुत काम किया है।
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तनाव मुक्त हो जायें
आजकल तनाव और तनाव से पैदा होने वाले रोगों की खूब चर्चा होती है। पहले की पीढिय़ों से तुलना करें तो हम पाएंगे कि आज हम कहीं ज्यादा आराम की स्थिति में हैं। तमाम सुख सुविधाओं के साथ अपना जीवन गुजार रहे हैं। सौ साल पहले इस तरह का ऐशोआराम राजसी लोगों को भी नसीब नहीं होता था। इसके बाद भी हमारी शिकायतें जारी हैं। ऐसा क्यों है? क्योंकि बाहरी दुनिया को ठीक करके आप केवल ऐशोआराम पा सकते हैं, लेकिन अगर आपको वास्तव में शिकायतों से छुटकारा पाना है तो आपको अपने भीतर काम करना पड़ेगा।
अपने भीतर की दुनिया को कैसे व्यवस्थित करना है यह हमें योग विज्ञान सिखाता है। यह इंसानी तंत्र इस धरती का सबसे बड़ा गैजट है। अगर आप नहीं जानते कि इसका उपयोग उच्चतम स्तर तक जाकर कैसे किया जाए, अगर आपके खुद के विचार और भावनाएं ही आपके जीवन में रुकावट पैदा कर रही हैं तो इसका उपयोग आप नहीं कर पाएंगे। हम इस इंसानी तंत्र का तो बेहतर उपयोग कर नहीं पा रहे हैं, लेकिन अपने आसपास की दुनिया, प्रकृति का जमकर दोहन कर रहे हैं। यह स्थिति हमें पर्यावरण संबंधी आपदा की ओर ले जा रही है। इंसान के कल्याण के लिए हमने जो रास्ता अपनाया है, वह विनाशकारी है और यह बात आज हर कोई जानता है। इस पर कोई विवाद ही नहीं है। सबको पता है कि वह विनाशकारी रास्ता है। अगर आप इसी गति से चलते रहे तो पर्यावरण वैज्ञानिकों का कहना है कि बस तीस से पचास साल के भीतर ही कोई बड़ी प्राकृतिक आपदा आ सकती है। यह ध्यान रखिए कि आपदा इस धरती के लिए नहीं होगी, बल्कि मानव जाति के लिए होगी।
सिर्फ आर्थिक खुशहाली काफी नहीं
यह मत सोचिए कि धरती संकट में है। अगर हम इसी तरीके से चलते रहे तो खतरा पूरी मानव जाति पर है। मैं फि र से कहूंगा कि यह समझने की जरुरत है कि इंसान का कल्याण उसके भीतर है और उन्हीं भीतरी पहलुओं को संभालने और सुधारने की तकनीक है योग। आधुनिक इतिहास में ऐसा पहली बार हो रहा है कि कोई राष्ट्रीय नेता इस बारे में कदम उठा रहा है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर लोगों ने यह समझना शुरू कर दिया है कि इंसान का आंतरिक आयाम यानी भीतरी स्वास्थ्य और कल्याण सबसे महत्वपूर्ण चीज है जिसके बारे में सोचा जाना चाहिए।
इसमें कोई शक नहीं कि आर्थिक और दूसरे पहलुओं का भी ध्यान रखना जरूरी है, लेकिन सबसे महत्वपूर्ण यही है कि हम अंदर से कैसे हैं। अगर हमें यह नहीं पता कि अपने कल्याण के लिए भीतर से हमें कैसा होना चाहिए, तो हम बस इस धरती का विनाश ही कर रहे हैं। भारत ने अभी कोई बहुत बड़ी आर्थिक कामयाबी हासिल नहीं की है। हम बस धीरे-धीरे ही आगे बढ़ रहे हैं। हम बस उस रास्ते पर चल रहे हैं, लेकिन जिस तरीके से देश के लोगों को जटिल रोगों ने अपनी चपेट में लिया हुआ है, वह वाकई चिंताजनक बात है। आर्थिक खुशहाली जरूरी नहीं है कि इंसानी खुशहाली भी लाए, बशर्ते लोग आध्यात्मिकता की ओर या अपने भीतर की ओर बढऩा न शुरु कर दें। आर्थिक उन्नति के साथ आंतरिक स्थिरता और संतुलन भी जरूर आना चाहिए, नहीं तो आर्थिक विकास इंसानी खुशहाली में तब्दील नहीं होगा। किसी इंसान या समाज या राष्ट्र को गरीबी से अमीरी की ओर ले जाना एक बेहद मुश्किल यात्रा है। इस कठिन यात्रा के बाद लोगों ने, समाज ने, कई राष्ट्रों ने यह महसूस किया कि इससे उनका कुछ भी भला नहीं हुआ है। उनके अनुभव में जीवन जरा भी नहीं बदला। भारत इस मामले में उदाहरण पेश कर सकता है। हम आर्थिक विकास की दहलीज पर खड़े हैं। इसे पार करने से पहले योग दिवस का होना वाकई बहुत बड़ी बात है। अगर हम अपने बच्चों को योग सिखाएं, अगर हम अपने नौजवानों को योग की ओर ले जाएं, अगर जीवन के हर पहलू में बेहद सामान्य तरीके के योग का प्रवेश हो सके तो जिस आर्थिक संपन्नता की उम्मीद हम अगले पांच से दस सालों के भीतर कर रहे हैं, वह निश्चित रूप से इंसान के सच्चे कल्याण के रूप में रूपांतरित हो जाएगी।
अंतराष्ट्रीय योग दिवस
एक बार दोबारा हम अपने प्रधानमंत्री को बधाई देना चाहते हैं। उन्होंने वाकई शानदार काम किया है। मुझे नहीं पता कि दुनिया के भविष्य के लिए कितने लोग इसके महत्व को समझते हैं, लेकिन लोगों के नजरिये में एक अभूतपूर्व बदलाव तो आ ही चुका है। अब यह सब प्रधानमंत्री के हाथ में नहीं है, अब यह तमाम योग संस्थानों की जिम्मेदारी है कि वे योग की गुणवत्ता को संभालें और इस पूरी धरती पर योग का बड़े पैमाने पर प्रचार प्रसार करें। पक्की बात है कि दिक्कतें होंगी, लेकिन समाधान भी निकलेगा। लोग यह भी कह सकते हैं कि एक दिन योग कर लेने से क्या होगा? अब यह देखना हम सबका काम है कि योग को पूरी आबादी के दैनिक जीवन तक कैसे पहुंचाया जाए। इसका प्रचार प्रसार दुनिया के ज्यादा से ज्यादा लोगों तक हो सके।
तमाम संगठनों, कॉरपोरेट सेक्टर, मीडिया और सरकारी संस्थाओं की कई टीमें इस काम में लगी हैं। हर किसी ने इसे कामयाब और ऐतिहासिक आयोजन बनाने में बहुत मेहनत की है। जो कोई भी इस आयोजन का हिस्सा है, मैं उसे बधाई देना चाहता हूं।