विवाह के बाद क्यों घटने लगता है प्रेम?
कभी-कभी देखा जाता है कि कॉलेज के दिनों के प्रेमी जोड़ों का प्रेम विवाह के बाद कम होने लगता है। जानते हैं कि ऐसा क्यों होता है...
कॉलेज के प्रेम सम्बन्ध
जब आप नौजवान थे उन दिनों आपकी आशा-अभिलाषाओं में सबसे प्रमुख स्थान किसका था? प्रेम का, है न? मैंने कालेज-प्रांगणों में कई प्रेमी-युगलों को देखा है। ये जोड़े एक साथ यूँ चहकते-फिरते हुए मिलेंगे मानों एक दूजे के लिए बने हों। नयनों में एक खास चमक होगी, चेहरों पर आनंद और उल्लास का उभार।
जिस शख्स की याद आने-मात्र से चेहरे पर आह्लाद खिल उठता था, अब उसकी निकटता वेदना का पर्याय बन गई होगी। ऐसा क्यों होता है? प्रेम की घनिष्ठता के उन दिनों में जब वे एक-दूसरे को प्राणों से ज्यादा प्यार करते थे, गिला-शिकवा के बिना घंटों बैठकर इंतजार करते थे। भूख-प्यास, धूप-बारिश किसी का बोध नहीं रहता था। समय का बोध भी नहीं। जब सपने साकार हो गए तो वहाँ व्यापार का प्रवेश हो गया। मुहब्बत को पूँजी के रूप में मानकर जिंदगी शुरू करने के थोड़े ही समय बाद ऊबन, दर्द और खीझ का आलम छा जाए तो इसमें कोई आश्चर्य नहीं है।
एक दिन पार्क में शंकरन पिल्लै की एक सुंदर लडक़ी से मुलाकात हो गई। वह बेंच पर बैठी थी। पिल्लै उसके समीप जाकर बैठ गए। जब वह सुंदरी वहाँ से हटने लगी तो शंकरन पिल्लै ने उसके सामने घुटने टेक दिए।
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‘‘जानेमन! मैं तुझे प्राणों से ज्यादा प्यार करता हूँ। तेरे बिना मैं एक पल भी नहीं जी सकता। ‘ना’ कह दोगी तो अभी जान दे दूँगा।’’ शंकरन पिल्लै ने गद्गद होकर प्रणय-निवेदन किया।
शंकरन पिल्लै ने कहा-‘‘हाय, मैंने अपनी पत्नी को वादा किया था कि आज जल्दी घर लौट आऊँगा। उफ, देर हो गई है।’’ ‘‘क्या कहा? पत्नी? अभी तो आप कह रहे थे युग-युगों तक मुझसे प्यार करेंगे। हाय, मैं भी उसे सच मान बैठी।’’ लडक़ी रोने लगी।
‘‘अरी बेवकूफ! मुहब्बत जो है, अलीबाबा की बोल ‘खुल जा सिमसिम’ की तरह अपना उल्लू सीधा करने का एक मंतर है, बस।’’ यों कहकर शंकरन पिल्लै ने उसका परित्याग कर दिया।
शंकरन पिल्लै के सरीखे व्यवहार को क्या हम प्रेम कहकर पुकार सकते हैं? कोई स्त्री और पुरुष बैठकर यदि कुछ बातों का आदान-प्रदान करें, मुँह-जबानी कुछ चीजों के लेन-देन का वादा करें तो बिना लिखत-पढ़त का वह समझौता प्रेम कहा जाएगा?
प्रेम की गहराई को समझना होगा
आपको सामाजिक स्तर पर एक साथी की जरूरत है। वह शारीरिक इच्छा की पूर्ति के लिए हो सकता है, मानसिक संतोष के लिए हो सकता है अथवा आर्थिक सुविधा के लिए हो सकता है।
म्याँमार का एक जवान दूसरे विश्वयुद्ध के बाद फौज से निवृत्त होकर कोई और नौकरी करने चला गया। दरअसल उसने अपनी फौजी सेवा के दौरान दुश्मनों के घमासान हमले का सामना कुल पंद्रह मिनट तक किया होगा। वह उन पंद्रह मिनट की घटना का घंटों तक वर्णन करते रहता - ‘एक तरफ अमेरिका बमबारी कर रहा था, दूसरी तरफ जापानी बम कहर मचा रहा था। जिस दिशा में मुड़ो, बंदूकों की ठाँय-ठाँय, तोपों की गूँज। आसमान पर चिनगारियाँ, उनके बीच में काली कजरारी धुआँ।’ लड़ाई का वर्णन करते नहीं अघाता था।
अगर उससे पूछा जाए, लड़ाई के बाद आपने क्या किया? इसका तुरंत जवाब मिलता-‘‘बिक्री प्रतिनिधि का काम कर रहा हूँ।’’ अगले पच्चीस साल के कार्य-कलाप को एक ही वाक्य में समेट डालता।
उस जवान ने बस पंद्रह मिनट के लिए ही जिंदगी को तीव्रता के साथ जिया था। इस तरह से प्रेम के दीवानें बहुत कम समय के लिए प्रेम को गहराई में जीते हैं। इसीलिए प्रेम करने के दिनों का बयान करते समय आपने देखा होगा, बूढ़ों के चेहरे पर भी एक चमक कौंध उठती है। इस प्रकार के महिमामय प्रेम को आप ‘म्युचुअल बेनिफिट स्कीम’ न समझें। प्रेम व्यापार नहीं है, माया भी नहीं। वास्तव में वह एक उदात्त भावना है।