विश्व जनसंख्या दिवस 2018 : जनसंख्या नियंत्रण पर सद्गुरु के विचार
11 जुलाई को विश्व आबादी दिवस के रूप में मनाया जाता है। इस लेख सद्गुरु बता रहे हैं कि अगर हमें इंसानों की आबादी को नियंत्रित करना है तो किस तरह से अपने परिवार को नियोजित करना और बच्चों के जन्म की जिम्मेदारी लेना एक बहुत ही जरूरी आयाम है।
आज किसान के बच्चों को भरपेट भोजन नसीब नहीं है
20वीं सदी की शुरुआत में दुनिया की कुल आबादी 1.60 अरब थी। लगभग एक सदी बाद आज दुनिया की आबादी 7.30 अरब है। संयुक्त राष्ट्र संघ का अनुमान है कि 2050 तक धरती पर हम इंसानों की आबादी 9.80 अरब होगी। मुझे लगता है कि इसकी वजह बच्चे पैदा करने को लेकर मानवता का गैरजिम्मेदाराना रवैया है। 1947 में देश की आजादी के वक्त भारत की जनसंख्या 33 करोड़ थी। आज हम लोग 1.30 अरब तक जा पहुंचे हैं। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि आप कितनी नीतियां बदलें, कैसी तकनीकें आप लाएं, कितने सारे पेड़ आप लगा लें, लेकिन कोई समाधान तब तक नहीं निकलेगा जब तक कि हम मानव आबादी पर नियंत्रण नहीं रखेंगे।
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या तो हम सचेतन रूप से अपनी आबादी पर नियंत्रण कर लें अथवा प्रकृति इस काम को बेहद क्रूर तरीके से करेगी। हमारे सामने बस यही विकल्प बचा है। विशेषकर, भारत में फिलहाल 1.30 की आबादी को दो वक्त का भोजन मुहैया कराने के लिए हमारी कुल भूमि के 60 प्रतिशत हिस्से पर खेती होती है। हमारे किसान खेती के बेहद पुराने और पूरी तरह से लचर ढांचे के साथ एक अरब से ज्यादा लोगों के लिए भोजन पैदा कर रहे हैं।
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यह अपने आप में बेहद सराहनीय हकीकत है, फिर भी जो इंसान भोजन उगा रहा है, उसे भरपेट भोजन नसीब नहीं। यह कोई सराहनीय हकीकत नहीं है और न ही यह कोई ऐसी चीज है, जिस पर गर्व किया जाए। जो इंसान हम सबके लिए भोजन पैदा कर रहा है, वह चावल और वह गेहूं जो हम आज खाते हैं, उसके अपने बच्चे भरपेट भोजन नहीं कर पाते। इसकी मूल वजह है कि बुनियादी तौर पर हमने यह तय करने की जिम्मेदारी नहीं ली - ‘इतनी जमीन के साथ हम कितनी आबादी का बोझ उठा सकते हैं?’ जाहिर सी बात है कि यह जमीन इंसानी आबादी की अंतहीन बढ़ोतरी को सहारा नहीं दे सकती।
विश्व जनसंख्या दिवस : धरती केवल इंसानों के लिए नहीं है
यह विचार अपने आप में बेहद भद्दा है कि यह धरती केवल इंसानों के लिए है। लोगों के दिमाग में यह बैठा दिया गया है- ‘आपने ईश्वर की छवि है।’ मुझे विश्वास है कि एक कीड़ा भी यही सोचता होगा कि भगवान एक बड़े से कीड़े की तरह दिखता है।
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हमें यह समझने की जरूरत है - सिर्फ पर्यावरण से जुड़े कारणों से ही नहीं, बल्कि मानवता के लिहाज से भी जरूरी है कि इस धरती का हर प्राणी अपना पूरा जीवन जिए। यहां तक कि एक छोटे से कीड़े का भी अपना पूरा जीवन होता है, उसके जीवन में भी बहुत सारी चीजें घटित होती हैं। सिर्फ इसलिए कि कोई जीव आप से छोटा है या वो आपसे अलग दिखाई देता है, उसे यहां जीने का कोई अधिकार नहीं है, केवल आप ही को जीने का अधिकार है – मनुष्यों का इस तरह से जीवन जीना बहुत ही स्थूल या अशिष्ट है। आज की मानवता मानवता से रहित है। मुझे लगता है कि जब तक इंसानियत ऊपर नहीं उठेगी, तब तक सचेतन तरीके से मानव आबादी पर नियंत्रण जैसी चीज होना मुश्किल है।
विश्व जनसंख्या दिवस : लोगों की आकांक्षाओं को रोक नहीं सकते
इसके लिए सरकारों को नीतियां बनानी होंगी। लेकिन नीतियां ही काफी नहीं होंगी। किसी भी लोकतंत्र में सरकार ऐसी चीजों को जबरदस्ती लागू नहीं कर सकती। ऐसी चीजें केवल तभी काम कर सकती हैं कि अगर समाज में इस बारे में अनिवार्य जागरूकता लाने के लिए प्रचार अभियान चलाए जाएं। लेकिन इसके लिए सरकार में जो लोग बैठे हैं, उन्हें निश्चित तौर पर इस विचार को आगे लाना होगा। इस दिशा में निजी संस्थाएं और एनजीओ बहुत थोड़ा ही योगदान सकते हैं, लेकिन इसके लिए सरकार का कदम जरूरी है।
मानव आबादी पर नियंत्रण किए बिना पर्यावरण, भूमि संरक्षण व जल संरक्षण की बात करने का कोई मतलब नहीं है, क्योंकि आज समाज में विज्ञान और तकनीक के रूप में जिस तरह की शक्ति हमारे पास है, वह हर इंसान को अतिसक्रिय बना रही है। हम मानव गतिविधियों पर रोक नहीं लगा सकते, क्योंकि इससे मानव की आकांक्षाओं पर रोक लगेगी। आप केवल मानव आबादी पर नियंत्रण कर सकते हैं।
विश्व जनसंख्या दिवस : आवश्यक शिक्षा और जागरूकता की जरूरत है
निश्चित रूप से आज पर्यावरण संरक्षण, हरित टेक्नोलॉजी जैसी चीजों की जरूरत है, लेकिन सबसे बुनियादी चीज - आजादी के बाद हमारी आबादी चौगुनी हो चुकी है और हमने इसे लेकर अब तक कुछ नहीं किया और हम अभी भी लगातार बढ़ते जा रहे हैं, आज हमारी सबसे बड़ी समस्या है।
1947 में एक आम हिंदुस्तानी की जीवन प्रत्याशा(औसत आयु) 32 साल थी। आज यह जीवन प्रत्याशा 65 साल से भी ऊपर हो गई है। तो इस तरह से हमने मृत्यु की जिम्मेदारी तो ले ली, लेकिन हमें जन्म की भी जिम्मेदारी लेनी चाहिए थी। आज आपके पास 1.30 अरब लोगों के लिए न तो पर्याप्त बसे हैं, न जमीन, न शौचालय, न मंदिर अथवा यहां तक की पर्याप्त आसमान तक नहीं है।
हम केवल इतना ही कर सकते हैं - क्या हम संसाधनों के हिसाब से अपनी आबादी को संयोजित कर सकते हैं? अगर लोगों के जीवन में आवश्यक शिक्षा और जागरूकता लाई जाए तो यह ऐसी चीज है, जिसे हर इंसान कर सकता है। अगर यह काम कर लिया जाए तो फिर हमें और पेड़ लगाने की जरूरत नहीं होगी। यह धरती खतरे में नहीं है, बल्कि मानवता खतरे में है। यह ऐसी चीज है, जिसे लोगों को समझने की जरूरत है। मुझे उम्मीद है कि हम इस हकीकत को समझें, और वही करें, जिसकी जरूरत है।