उपासना – अपने जीवन में हीरो न बनें, साइड रोल करें
भक्ति मार्ग का एक रूप उपासना कहलाता है। इसका अर्थ है मुख्य न होकर गौण हो जाना। जानते हैं कि ये कैसे आध्यात्मिक विकास में मदद करता है।
आप अपने जीवन में हीरो बनने के बजाए साइड रोल कीजिए। यह तरीका ‘उपासना’ कहलाता है। इसका मतलब हुआ कि आप अपने ही जीवन में, एक तरफ किनारे बैठ गए।
सारी साधनाएं बुनियादी रूप से किसी न किसी रूप में आपको मिटाने के लिए होती हैं। आप अपने व अपने जीवन के बारे में जो कुछ भी कड़वी या मीठी बात जानते हैं, वे सब महज कार्मिक तत्वों की एक बहुत बड़ी पोटली है, वह आपका मूल अस्तित्व नहीं है। मूल अस्तित्व न तो मधुर होता है और न ही कटु। यह उस तरह से है ही नहीं, जिस तरह से आप चीजों को लेकर सोचते हैं। जिस तरह से यह शरीर यहां है, एक पेड़ वहां है, एक पत्थर यहां है, उस अर्थ में यह वहां है ही नहीं। यह वहां एक संभावना के तौर पर है, एक द्वार के रूप में है।
पूरी तरह से खाली होना एक संभावना है
अगर आपका दिमाग पूरी तरह से खाली हो तो आपके लिए हर चीज एक संभावना बन जाती है। आपमें कुछ काबिलियत है तो आप किसी दूसरे की तुलना में स्मार्ट कहलाएंगे, लेकिन आप खुद में निरे मूर्ख होंगे। सिर्फ समाज की वजह से ही आप स्मार्ट नजर आते हैं। तो सामाजिक रूप से तो आप बच जाते हैं, लेकिन अस्तित्व के स्तर पर अगर बात करें तो यह काम नहीं करता।
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मैं जब भी कोई चीज देखना चाहता हूं तो मैं सिर्फ एक ही जगह देखता हूं - अपने भीतर। चूंकि भीतर कुछ नहीं है तो इस स्थिति में हर चीज आपका हिस्सा बन जाती है। अब समस्या है कि खुद को अपने आप से आजाद कैसे रखा जाए। कुछ लोग खुद से ही पूरी तरह भरे हुए होते हैं, जो साफ तौर पर दिखता है।
जीवन में गौण बनने का तरीका
खुद को बड़ा बनाने के बजाए, खुद को मिटाने के लिए कुछ करना हो, तो पहली बात ये जान जाइए कि यह आपके बारे में नहीं है। हालांकि ‘आपके बारे में नहीं’ कहना तो आसान है, लेकिन करना मुश्किल। क्योंकि आप अपनी सोच, भावनाएं, इरादे, रवैए सहित हर चीज के आधार हैं, आप जो कुछ भी करते हैं, आप उसके केंद्र बिंदु होते हैं। सवाल है कि बिना मैं व मेरा के भाव के, आप कोई काम कैसे करें?
तो पहला कदम होगा कि आप अपने जीवन में हीरो बनने के बजाए साइड रोल कीजिए। यह काम आप किसी दूसरे के जीवन के बजाए अपने जीवन में करना है। यह तरीका ‘उपासना’ कहलाता है। इसका मतलब हुआ कि आप अपने ही जीवन में, एक तरफ किनारे बैठ गए। आपको किसी सभा में एक तरफ नहीं बैठना है और न ही किसी बड़े आदमी की उपस्थिति में एक तरफ बैठना है, आपको अपने ही जीवन में प्रमुख नहीं, बल्कि गौण हो जाना है। चूंकि आप अपने आप से मुक्त नहीं हो सकते तो इतना तो कर सकते हैं कि खुद को कम से कम कर सकते हैं। आप कौन हैं, यह महत्वपूर्ण नहीं है। आप सोचेंगे, ‘अरे, यह तो मुझे गुलाम बनाने की कोई योजना लगती है।’ यह सोच आधुनिक दिमाग की उपज है। आपको कोई और गुलाम बनाए, इसका आपको इंतजार नहीं करना चाहिए। आपको खुद ही बन जाना चाहिए।
क्यों लगाते हैं संत अपने नाम के आगे दास?
खैर, लोग एक बिलकुल अलग संदर्भ में खुद को गुलाम बना रहे हैं। मैं देखता हूं कि आधुनिक जीवन में लोगों का घर तीस साल के लिए गिरवी है, कार दस साल के लिए गिरवी है, ऐसी ही और भी चीजें हैं। यह गुलामी ही तो है। इसे गुलामी नहीं कहेंगे तो भला और क्या कहेंगे? अगर आप तीस सालों तक चाहकर भी अपने जीवन की दिशा नहीं बदल सकते तो निश्चित तौर पर यह गुलामी है। भारतीय संस्कृति में एक परंपरा है कि लोग अपने नाम दास यानी गुलाम की तरह रखते हैं- रामदास, कृष्णदास, हरिदास, गुरुदास। शायद इसके जरिए वे कहना चाहते हैं- ‘मैं दास हूं।’ अजीब बात लग रही है न? क्या आप दास बनना चाहेंगे? अगर आप किसी के द्वारा गुलाम बना लिए जाते हैं तो यह एक गंभीर समस्या होगी। लेकिन जब आप खुद को दास कहते हैं तो इसका मतलब है कि आप खुद को एक तरफ रख रहे हैं। खुद को दास कहकर आप लगातार खुद को याद दिला रहे है, ‘मैं राम का दास हूं’। दरअसल, यह तरीका खुद को एक तरफ रखने का है। इसका मतलब हुआ कि आप अपने जीवन में मुख्य भूमिका में नहीं हैं। आप एक सहायक भूमिका में हैं।
क्या इसे करने की कोई खास तरकीब है? बिलकुल यही बात तो मैं आपको बता रहा था। सिर्फ तरकीबें ही आपको वैसा नहीं बनने दे रही। बस यही समझने में कि इसके लिए कोई तरकीब काम नहीं करती, मुझे तीन जन्म लग गए। मैं नहीं चाहता कि आप भी तीन जन्म लें, क्योंकि अगर ऐसा होता है तो आपका और मेरा दोनों का जीवन बेकार हो जाएगा।