तिब्बत के गुरु मिलारेपा : तंत्र से ज्ञान तक का सफर
मिलरेपा ज्ञान की प्राप्ति के लिए मार्पा के पास गया था, लेकिन सालों तक वहां चाकरी करने के बाद भी उसे कोई दीक्षा नहीं मिली। फिर आखिर ऐसा क्या हुआ कि मार्पा ने मिलरेपा को ही अपना गुरु मान लिया। सद्गुरु यहां मिलरेपा की कहानी और मार्पा से उसके रिश्ते के बारे में बता रहे हैं, जो पहले उनके गुरु बने और उसके बाद शिष्य:
मिलारेपा ज्ञान की प्राप्ति के लिए मार्पा के पास गया था, लेकिन सालों तक वहां चाकरी करने के बाद भी उसे कोई दीक्षा नहीं मिली। फिर आखिर ऐसा क्या हुआ कि मार्पा ने मिलारेपा को ही अपना गुरु मान लिया। सद्गुरु यहां मिलारेपा की कहानी और मार्पा से उसके रिश्ते के बारे में बता रहे हैं, जो पहले उनके गुरु बने और उसके बाद शिष्य:
सद्गुरु : अतीत में एक समय ऐसा भी था, जब तिब्बत देश पूरी तरह अध्यात्म और मानवीय चेतना को समर्पित था। तिब्बत की जमीन पर रोजमर्रा की जिंदगी में आध्यात्मिक और सांसारिक बातें आपस में गुंथी हुई थीं। तिब्बत की संस्कृति में मिलारेपा का नाम अपनी एक अलग पहचान रखता है।
कम उम्र में ही मिलारेपा के सिर से पिता का साया उठ गया था। उसके पिता के पास काफी जमीन-जायदाद और एक घर था। पिता की मुत्यु के बाद मिलारेपा के चाचा ने उसका सब कुछ हड़प लिया और फिर वह उसके, उसकी मां और छोटी बहन के साथ घर के नौकरों जैसा व्यवहार करने लगा। उसने मिलारेपा की पूरी जायदाद हड़प ली, और वह उन लोगों के साथ खराब तरीके से पेश आने लगा। चाचा मिलारेपा के परिवार को कई तरीकों से परेशान करता। मिलारेपा अपने अंदर प्रतिशोध और गुस्से की भावनाओं के साथ बड़ा हुआ और वयस्क होने के साथ ही वह अपना घर छोड़ कर कहीं दूर चला गया। दरअसल, वह अपने चाचा और चाची से उस सारे अपमान और अत्याचार का बदला लेना चाहता था, जो इतने सालों तक उन्होंने उसके और उसके परिवार पर ढाए थे।
मिलारेपा ने तांत्रिक शक्ति का दुरूपयोग किया
इसके लिए उसने तंत्र विद्या सीखी और कुछ तांत्रिक क्रियाओं में महारत भी हासिल की। कइ्र सालों बाद जब वह तंत्र विद्या में महारत हासिल वापस लौटा तो उसे चता चला कि उसकी मां और छोटी बहन चल बसे थे। यह जानकर उसका गुस्सा और भी बढ़ गया। उसने अपने चाचा से बदला लेने का विचार बनाया, लेकिन वह इसके लिए एक सही मौके का इंतजार करना चाहता था। जल्दी ही उसे अपने चाचा के बेटे की शादी के रूप में यह मौका मिल भी गया।
हालांकि शुरू में अपना बदला लेकर मिलारेपा को बहुत खुशी हुई, लेकिन जल्दी ही उसे अपनी करनी पर पछतावा होने लगा। अगर कोई संवेदनशील व्यक्ति किसी चीज का दुरुपयोग करता है तो कुछ समय बाद उसे अपने भीतर से ऐसे ही अपराधबोध महसूस होता है। ऐसा सामाजिक तौर पर जमीर के जागने या फिर नैतिक कारणों से नहीं होता, बल्कि कहीं गहराई में हमारे भीतर ही कुछ हिल जाता है। जिंदगी कुछ इसी तरह से ही बनी है।
मिलारेपा को भी भीतर से किसी चीज ने बुरी तरह से झकझोर कर रख दिया। तब उसने वहीं निश्चय किया कि वह खुद को इस दोश से मुक्त करवा कर ही रहेगा। उसके तर्क भले ही कितने सही हों, लेकिन उसने जीवन के मूलभूत सिद्धांत का दुरुपयोग किया था। यही वजह है कि वह अध्यात्म की शरण में जाना चाहता था। वह कुछ ऐसा करना चाहता था, जिससे वह अपने पाप को इसी जन्म में धो सके। इसलिए वह गुरु की तलाश में निकल पड़ा। वह कई लोगों से मिला, लेकिन सभी ने उसे इसी जन्म में आत्मबोध कराने से साफ मना कर दिया। उनका कहना था कि वे उसे ऐसा कुछ तो सिखा सकते हैं, जो उसके आत्मज्ञान को बढ़ाए। उसे दया, कृपा और प्रेम की राह पर चलना होगा, जिससे वह धीरे-धीरे हर जन्म के साथ बेहतर होता चला जाएगा। लेकिन मिलारेपा को इन सबसे संतुष्टि नहीं मिल रही थी। दरअसल, उसके भीतर अभी तक पश्चाताप, विद्वेश और गुस्से की भावनाएं भरी पड़ी थीं।
अंत में एक व्यक्ति ने उसे मार्पा के बारे में बताया कि वही उसकी मदद कर सकता है। मार्पा के बारे में खास बात यह थी कि वह तीन बार भारत की यात्रा कर चुका थे। वह मशहूर गुरु नरोपा के शिश्य थे और उनसे वह कई तरह की शिक्षा, प्रणालियां और लिखित ज्ञान लेकर उसे तिब्बत की भाशा में अनुवाद भी कर चुके थे। वह भारत के कई तांत्रिक मंत्रों का तिब्बती भाशा में अनुवाद कर चुके थे। यही वजह थी कि सभी लोग उनको जानते थे और उनको ‘अनुवादक’ कहते थे। आखिर इस ज्ञान को लाने वाले भी यही थे।
मिलारेपा अपने गुरु मार्पा से मिले
यह जानकर मिलारेपा मार्पा की खोज में निकल पड़ा। जब वह उस शहर के पास पहुंचा, जहां मार्पा रहता था, तो उसे कुछ बच्चे मिले। उसने उनसे पूछा, ‘वह अनुवादक, मार्पा कहां हैं?’ एक बच्चे ने कहा, ‘मेरे साथ आओ। मैं जानता हूं कि वह कहां हैं।’ बच्चा उसे एक खेत में लेकर गया, जहां मार्पा जमीन जोत रहे थे। मिलारेपा को देखकर मार्पा ने जमीन जोतना बंद कर दिया और उसे देसी बीयर देते हुए कहा, ‘इसे पी लो और फिर जमीन जोतने के काम में लग जाओ।’ मिलारेपा ने बीयर पी और जुताई के काम में लग गया।
कुछ देर बाद मार्पा तो वहां से चला गया, लेकिन वह बच्चा वहीं खड़ा रहा। जब मिलारेपा ने जुताई का काम पूरा कर लिया, तो वह वहीं एक तरफ हैरानी से भरा खड़ा हो गया, क्योंकि उसे पता नहीं था कि अब करना क्या है। वह बच्चा उसके पास आया और बोला, ‘अब तुम अंदर आ सकते हो।’ वह बच्चा उसे मार्पा के घर में ले गया और तब उसे अहसास हुआ कि वह दरअसल, मार्पा का ही बेटा था।
फिर मार्पा ने मिलारेपा से कई तरह की शारीरिक गतिविधियां करवाईं। कुछ देर के बाद मिलारेपा ने झुककर मार्पा से कहा, ‘मैं आपसे धर्म की दीक्षा चाहता हूं। मैं एक ऐसी प्रणाली, ऐसी क्रिया की तलाश में हूं, जो मुझे इसी जन्म में ज्ञानुदय दिलाए और बंधन से छुटकारा दिला दे। मैं अगले जन्म के फेर में नहीं पड़ना चाहता। मैं आपको अपना शरीर, अपना दिमाग और अपनी बोली, सब कुछ अर्पण करता हूं। कपया मुझे खाना, कपड़े और ज्ञान दें।’
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मिलारेपा की बात सुनने के बाद मार्पा ने उसकी ओर देखा और फिर बोले, ‘तुम अपना शरीर, दिमाग और बोली मुझे दे रहे। इसके बदले मैं तुम्हें खाना और रहने की जगह दे सकता हूं। ज्ञान के लिए तुमको किसी और को देखना होगा। या फिर मैं तुमको ज्ञान दे सकता हूं और रहने व खाने का अपना इंतजाम तुमको कहीं और से करना होगा। इच्छा तुम्हारी है।’ वह वास्तव में सौदेबाजी कर रहा था! यह सुनकर मिलारेपा ने कहा, ‘ठीक है, मुझे आपसे ज्ञान चाहिए। मैं अपने खाने और रहने का बंदोबस्त कर लूंगा।’ इतना कह कर वह बाहर भिक्षा मांगने के लिए चला गया।
मिलारेपा एक जोशीला व्यक्ति था और जो भी करता था, उसमें कुछ ज्यादा ही कर बैठता था। वह बाहर भिक्षा मांगने चला गया और वह काफी दूर निकल गया और कई बोरे गेहूं के जमा कर लाया। दरअसल, वह एक ही बार में साल भर का गेहूं जमा कर लेना चाहता था, ताकि वह मार्पा के साथ बैठकर धर्म और ज्ञान की बातें सीख सके। उसने बहुत सारा गेहूं जमा कर लिया, जिसमें से थोड़ा गेहूं बेचकर उसने खाना बनाने के लिए पारंपरिक चार मूठ वाला तांबे का एक बर्तन खरीदा।
गेहूं के भारी बोझ के साथ वह मार्पा के घर वापस आ गया और धड़ाम की आवाज के साथ उसने गेहूं का बोरा नीचे रखा। जब मार्पा ने यह आवाज सुनी, तब वह दोपहर का खाना खा रहा था। वह खाना खाते हुए बीच में से उठकर बाहर आया और बोला, ‘लगता है कि तुम बेहद गुस्से में हो। इस गेहूं के बोरे और बर्तन की आवाज से तुमने पूरे घर को दहला दिया। लगता है कि अपने चाचा के घर की तरह तुम इस घर को भी बर्बाद कर दोगे। बस बहुत हो गया, अब निकल जाओ यहां से।’
मिलारेपा नें तिब्बत में साधना शुरू की
इस पर मिलारेपा गिड़गिड़ाया, ‘आपने मुझसे अपना खाना लाने को कहा था, तो मैं ले आया। लेकिन यह बहुत भारी था, इसलिए रखते समय यह मुझसे संभल नहीं पाया और धम् से बोरा नीचे आ गिरा।’ मार्पा ने कहा, ‘नहीं, तुम्हारे रखने का तरीका सही नहीं था। तुम खाने को इस तरह नहीं फेंक सकते।’ इन सभी बातों का हमेशा ध्यान रखा जाना चाहिए। दो लोगों के बीच का फर्क इसी सम समझ में आता है कि वह कैसे बैठते हैं, कैसे खड़े होते हैं, कैसे चीजों को रखते हैं और बातों को किस तरह लेते हैं। इसलिए मार्पा ने कहा, ‘अब कुछ नहीं हो सकता। तुमने बोरे को ठीक तरीके से न रखकर उसे फेंका, इसलिए तुम्हें यहां से बाहर जाना पड़ेगा। तुम यहां के लिए ठीक नहीं हो। तुम बाहर रहकर ही काम करो, मेरे खेत की जुताई करो और मेरा घर साफ करो।’
कई सालों तक मिलारेपा यही काम करता रहा। वक्त के साथ दूसरे शिश्य आते रहे और उनको कई चीजें सीखने का मौका मिला, लेकिन मिलारेपा को न तो कोई दीक्षा मिली और ना ही कोई सीख। वह सिर्फ खेत और घर में ही मेहनत करता रहा। आठ साल से भी ज्यादा समय तक उसने बिना कोई दीक्षा या सीख लिए वहां काम किया। बाकी सभी एक दिन के लिए वहां आते और कुछ न कुछ दीक्षा लेकर चले जाते, लेकिन उसने मेहनत करते हुए लंबा इंतजार किया।
एक दिन जब संत्संग चल रहा तो वह चुपके से अंदर आकर सत्संग में बैठ गया। हालांकि उसे यहां नहीं होना चाहिए था। मार्पा वहां आंखें बंद करके बैठा था, इसलिए मिलारेपा को उम्मीद थी कि दूसरे छात्रों के साथ उसको भी कुछ दीक्षा मिल जाएगी। लेकिन बंद आंखों के साथ ही मार्पा ने अपने लोगों को बुलाया और उनके साथ मिलकर मिलारेपा की पिटाई कर दी। उसने उसे उठवा कर वहां से से बाहर फेंक दिया। ऐसा बार-बार होने लगा। मिलारेपा थोड़ा इंतजार करता और जैसे ही सत्संग शुरू होने लगता, वैसे ही वह चुपके से जाकर इस उम्मीद में वहां बैठ जाता कि इस बार तो उसे कुछ न कुछ सीखने को मिल ही जाएगा। इसी तरह 13 साल से ज्यादा का वक्त बीत गया, लेकिन उसे कुछ भी हासिल नहीं हुआ।
आखिर एक दिन उसने मार्पा की पत्नी दमेमा से याचना की। दमेमा मिलारेपा के प्रति एक मां की तरह सहानुभूति रखती थी। उसने कहा, ‘आप मार्पा से कहें कि वह मुझे कुछ सिखाए। कोई एक शिक्षा, थोड़ा सा अध्यात्म। मैं कुछ भी नहीं जानता। मैं इतने सालों से यहां ऐसे ही बैठा हूं।’ दमेमा मान गई और उसने अपनी पति से अच्छे तालमेल के चलते इस बारे में बात की। तब मार्पा ने कहा, ‘ठीक है, लेकिन पहले उसको हमारे बेटे के लिए तीन कोनों वाला एक घर बनाना होगा और यह काम वह अकेला ही करेगा।’ मिलारेपा इस काम में अकेला ही जुट गया। वह दिन-रात करके एक-एक ईंट और एक-एक पत्थर जोड़कर काम करता रहा।
इस काम में उसके सारे शरीर पर घाव हो गए। जिस लहूलुहान हालत में भी वह लगातार काम कर रहा था, वह दमेमा से देखी नहीं गई। उसने मार्पा से कहा, ‘उसे थोड़ा आराम दो। मैं इतने सालों से उसे अपने घर में देखती आ रही हूं और वह मेरे लिए मेरे बेटे की तरह हो चुका है। उसकी यह हालत मैं बर्दाश्त नहीं कर सकती।’ इस पर मार्पा ने कहा, ‘ठीक है। इसे एक महीना आराम करने दो और जब यह ठीक हो जाए, तो उसे वापस काम पर लगा दो।’ दमेमा ने मिलारेपा का ध्यान रखना शुरू कर दिया। उसने उसे दवाइयां और खाना दिया और उसे ठीक कर दिया। इसके बाद मिलारेपा दोबारा काम पर जुट गया।
घर बनाने में उसे दो साल का वक्त लगा। जब यह पूरा हो गया, तो मार्पा ने उसे देखकर कहा कि मेरे बेटे के लिए तीन कोनों वाला घर सही नहीं रहेगा, इसलिए तुम चार कोनों वाला घर बनाओ। मिलारेपा मान गया। वह बोला, ‘ठीक है।
इस तरह कई साल और बीत गए। मिलारेपा अकेला ही काम में जुटा रहा और उस जगह पर इमारतें बनाता रहा। इस बार काम खत्म हो जाने पर मार्पा ने कहा, ‘यह ठीक है, लेकिन अपने बेटे के घर के चारों कोनों में मुझे साठ फीट उंचे बुर्ज चाहिए।’ इस पर मिलारेपा ने घर के चारों कोनों में चार साठ फुट उंचे बुर्ज भी बना दिए।
मिलारेपा की अब उम्र ढलने लगी थी, इसलिए वह मारपा की पत्नी दमेमा के पास गया और उसके पैरों पर पड़कर गिड़गिड़ाने लगा कि मेरी जिंदगी खत्म होती जा रही है, कृप्या आप कुछ कीजिए। मैंने अभी तक कुछ भी नहीं सीखा है। मै जानता हूं कि मैंने अतीत में बहुत गलत काम किए हैं। मैंने अपनी तांत्रिक विद्या का दुरुपयोग किया है, लेकिन अब तो मैं बहुत पछता चुका हूं। यह सब सुनकर दमेमा को मिलारेपा पर दया आ गई। उसने फौरन मारपा की लिखावट में ही उसके एक शिश्य के नाम पत्र लिखा। ये शिश्य भी दीक्षा दे सकता था। दमेमा ने खत लिखकर उस पर मारपा की मुहर लगा दी और मिलारेपा से कहा कि वह इसे मारपा के उस शिश्य को ले जाकर दे दे।
मिलारेपा उस भिक्षुक के पास गया। भिक्षुक ने उसे दीक्षित तो कर किया, लेकिन मिलारेपा को किसी भी तरह के अनुभव की कोई प्राप्ति नहीं हुई। भिक्षुक हैरान था, क्योंकि जब भी वह किसी को दीक्षित करता था तो उसे कुछ न कुछ अनुभव तो होता ही था, लेकिन इस बार ऐसा नहीं हुआ। ऐसे में उन दोनों ने मारपा के पास जाकर यह पता लगाने का फैसला किया कि आखिर गड़बड़ कहां हो रही है। जब वे दोनों मारपा के घर पहुंचे तो मारपा उन्हें देखकर गुस्से से पागल हो गया और चिल्लाया, ‘मेरी इजाजत के बिना इस आदमी को दीक्षित करने की तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई?’ भिक्षुक ने मारपा को पत्र दिखाते हुए कहा कि मुझे आपका पत्र मिला था। इसे दीक्षा देने के लिए आप ही ने तो निर्देश दिया था। पत्र देखते ही मारपा पूरी बात समझ गया और मिलारेपा से बोला - ‘यह दीक्षा मान्य नहीं है और तुम्हें इन अभ्यासों को नहीं करना चाहिए।’
मिलारेपा का अहम
घोर पश्चाताप के भाव में डूबा मिलारेपा वहां से चला गया। मिलारेपा के वहां से जाते ही मारपा फौरन अपनी पत्नी और भिक्षुक से बोला- ‘इतने सालों में मैंने उसे लायक बनाया था और तुम दोनों ने बेकार की दया दिखाकर मेरी सब मेहनत पर पानी फेर दिया। अब दीक्षा के लिए उसे और इंतजार करना होगा। मिलारेपा में अहम बहुत था। वह लोगों पर अपना अधिकार, अपना वर्चस्व चाहता था, इसलिए वह उन पर अपनी ताकत का इस्तेमाल करता था।’ मिलारेपा में ये सब कमियां तो थीं, लेकिन उसमें जबरदस्त संभावना भी थी। इसलिए मारपा उसको केवल एक साधारण सा ध्यानयोग सिखाकर उसकी विशाल संभावना को बेकार नहीं करना चाहता था। वह उसे कुछ भी सिखाने से पहले पूरी तरह से शुद्ध कर देना चाहता था।
उधर मिलारेपा मारपा के घर से निकलने के बाद आत्महत्या करने की सोचने लगा। उसे ढ़ूंढकर वापस लाने के लिए मारपा ने तुरंत किसी को भेजा। मिलारेपा वापस आया तो मारपा ने उससे कहा, ‘अतीत में तुमने जो कुछ भी किया है, उसके बोझ से निजात पाने के लिए मैं तुम्हें कुछ तरीके बता रहा था, लेकिन तुम बेवजह ज्यादा वक्त लगा रहे हो। अगर तुम मेरे कहे अनुसार चले होते तो यह बोझ कब का खत्म हो गया होता। तुम सबकुछ करते हो, लेकिन निकलने के लिए चोरी के रास्ते को, बुजदिली के रास्ते को अपना लेते हो। सिर्फ इस वजह से सालों से तुम खुद सब कुछ टालते आ रहे हो। लेकिन अब तुम्हें सही मायने में, अपने अंतर में पछतावा हो रहा है। यहां तक कि तुम इसके लिए जान भी देने को तैयार हो। मुझे लगता है, अब तुम योग्य हो गए हो।’
मिलारेपा को डाकिनी देवी के दर्शन हुए
मारपा ने मिलारेपा को दीक्षा दे दी और उसे एक अस्थाई कारागार में कैद कर दिया। यह कारागार कुछ खास तरह का होता है। इसमें एक आदमी को बैठाकर उसके चारों तरफ दीवार बनाकर उसे बंद कर दिया जाता है। उसमें हवा आने-जाने की व्यवस्था रहती हैै, लेकिन उसमें से रोशनी नहीं आती।
तांत्रिक तकनीक से काम करने के लिए हर चक्र के लिए एक देवी की रचना की गई थी। इस स्त्री स्वरूप की प्राण-प्रतिश्ठा करके उसे जीवंत बनाया जाता था और अपने काम सिद्ध करने के लिए उसे बुलाया भी जा सकता था। तांत्रिक पथ पर इन ताकतों की मदद के बिना कोई इंसान कुछ सार्थक काम भी नहीं कर पाता है। डाकिनी मिलारेपा के सपने में आई और बोली- ‘मारपा ने तुम्हें अपनी शिक्षा तो दे दी है लेकिन उसने एक अहम पहलू छोड़ दिया है, जिसके बारे में खुद उसे ही नहीं पता है। जाओ और उसी से जानने की कोशिश करो। उससे पूछो कि वह जानता है कि नहीं।’ मिलारेपा कैद की दीवार तोड़कर फौरन मारपा के पास पहुंचा। मारपा ने उसे देखकर पूछा कि मैंने अभी तीन दिन पहले ही तुम्हें बंद किया था। तुम बाहर कैसे आ गए? मिलारेपा ने उसे डाकिनी के बारे में सारी बात बताते हुए कहा कि मैं नहीं जानता कि यह सच है या मेरा वहम, लेकिन ऐसा हुआ जरूर है। बस इसीलिए मुझे यह सब जानने के लिए आपके पास आना पड़ा।
मारपा के गुरु नारोपा
यह सुनते ही मारपा ने मिलारेपा के सामने सिर झुका दिया और कहा, ‘मेरे पास भी यह ज्ञान नहीं है। चलो, भारत चलते हैं। वहां मैं अपने गुरु से यह बात पूछूंगा।’ दोनों नारोपा से मिलने के लिए भारत आए। नारोपा से मिलकर मारपा ने उन्हें बताया कि डाकिनी सपने में आई थी और उसने कहा कि हमें यह खास शिक्षा नहीं मिली है। नारोपा ने ध्यान से मारपा को देखा और कहा- ‘यह घटना तुम्हारे साथ तो नहीं घट सकती है। तुम्हें यह सब कैसे पता?’ मारपा ने जवाब दिया- ‘यह घटना मेरे साथ नहीं हुई है, बल्कि मेरे एक शिष्य के साथ घटी है। यह सुनते ही नारोपा तिब्बत की ओर मुड़े और अपना सिर झुका दिया। उन्होंने कहा - ‘अंधकार में डूबे उत्तर में आखिरकार एक छोटा सा प्रकाश चमका है।’ फिर उसने मिलारेपा और मारपा दोनों को बुलाकर उन्हें जीवन में संपूर्ण ज्ञान प्राप्त करने की पूरी शिक्षा दी।
जब वे वापस लौटे तो मारपा जो पहले गुरु के रूप में मिलारेपा से जुड़ा था, अब उसके शिष्य की तरह हो गया। तिब्बती संस्कृति में मिलारेपा एक चमकती हुई रोशनी बन गया। उसने एक लंबा जीवन जिया और अपने ज्ञान को दूसर लोगों तक पहुंचाया। तिब्बती संस्कृति में पिछले कई सौ सालों के दौरान जो भी बड़ी चीजें हुई हैं, उनका आधार मिलारेपा द्वारा ही तैयार किया गया था।