तारनहार कृष्ण और सुंदरी त्रिवक्रा
कृष्ण छोटी उम्र से ही अनेकों चमत्कार दिखा चुके थे। ऐसा ही एक चमत्कार उन्होंने तब किया, जब बरसों से उनकी बाट जोह रही त्रिवक्रा को उन्होंने नई जिंदगी दीः
कृष्ण छोटी उम्र से ही अनेकों चमत्कार दिखा चुके थे। ऐसा ही एक चमत्कार उन्होंने तब किया, जब बरसों से उनकी बाट जोह रही त्रिवक्रा को उन्होंने नई जिंदगी दीः
कृष्ण और बलराम मथुरा पहुंचे। उन्होंने इतना बड़ा नगर पहले कभी नहीं देखा था, इसलिए वे बहुत उत्सुक होकर सब कुछ देख रहे थे।
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चूंकि कृष्ण और बलराम दोनों वहां के राजा के निमंत्रण पर समारोह में हिस्सा लेने आए थे, इसलिए उन्हें अपने देहाती कपड़े समारोह के लायकनहीं लगे। उन्होंने राजसी वस्त्र बनाने वाले की दुकान का पता लगाया और वहां जाकर दुकानदार से बोले, ’हम यहां राजा के निमंत्रण पर राजकीय समारोह में शामिल होने आए हैं, इसलिए हम कोई सुंदर वस्त्र पहनना चाहते हैं। समारोह के बाद हम उन्हें आपको वापस कर देंगे।’ वह दुकानदार काफी नीच किस्म का व्यक्ति था। उसने इन दोनों को गांव का मूर्ख समझा और सोचा कि इन दोनों की इतनी हिम्मत, कि ये समारोह में जाने के लिए राजसी वस्त्र मांग रहे हैं!
उसने बलराम के सिर पर मुक्का मारने के लिए जैसे ही हाथ उठाया, कृष्ण ने अपने एक ही वार से उसे नीचे पटक दिया। गली के सारे लोग वहां इकट्ठे हो गए। यह शख्स सभी लोगों के साथ बुरा व्यवहार करता था, लेकिन राजा का दर्जी होने के कारण किसी की भी उससे कुछ कहने की हिम्मत नहीं होती थी। हर कोई उससे घृणा करता था लेकिन राजा का खास होने के कारण कोई कुछ नहीं कर पाता था। जैसे ही वहां इकट्ठे हुए लोगों ने देखा कि दो अनजान बालकों ने उस दर्जी को सबक सिखा दिया, वे उन दोनों की जय-जयकार करने लगे।
नतीजा यह हुआ कि इस छोटे से नगर में कृष्ण और बलराम की शौर्यगाथा फैलने लगी।
त्रिवक्रा को लोग कुब्जा भी कहते थे। कुब्जा का अर्थ है बौना। वह वास्तव में बौनी नहीं थी, बल्कि अच्छे कद की महिला थी, लेकिन उसकी कमर झुक गई थी। इसी वजह से वह छोटी लगती थी और उसे शर्मिंदा होना पड़ता था। लोग उसका खूब मजाक बनाते, लेकिन वह किसी को कुछ नहीं कहती थी। अपनी शर्मिंदगी और दुख को छिपाने के लिए वह हमेशा मुस्कुराती रहती थी, और लोगों पर इत्र छिडक़ती रहती थी। इसी तरह से उसकी जिंदगी चल रही थी। वह कभी भी खुद को शीशे में नहीं देखती थी, क्योंकि उसे लगता था कि अगर वह अपने बेढंगे शरीर को देख लेगी तो वह ठीक होने की उम्मीद खो बैठेगी। जब वह अपने घनिष्ट लोगों से बात करती तो उनसे कहती कि एक दिन वसुदेव पुत्र आएंगे और मुझे ठीक कर देंगे। लोग उससे कहते, ’तुम्हारा दिमाग खराब हो गया है। तुम अच्छी तरह जानती हो कि तुम हमेशा के लिए अपंग हो चुकी हो।’ त्रिवक्रा के वैद्य, उसके रिश्तेदार और मित्र भी हमेशा कहते थे कि तुम बेकार का सपना देखना छोड़ दो कि तुम एक दिन ठीक हो जाओगी। तुम्हारी जिंदगी ऐसे ही चलेगी, लेकिन उसे मन में पूरा विश्वास था कि एक दिन वसुदेव पुत्र आएंगे और उसे पूरी तरह ठीक कर देंगे।
त्रिवक्रा ने भी राजा के दर्जी को कृष्ण के वार से जमीन पर गिरते देखा। उसने लोगों से पूछा, ’ये बालक कौन हैं?’ किसी ने कहा, ’ये नंद के पुत्र हैं और गोकुल से आए हैं।’
आगे जारी ...