महाभारत कथा : क्यों आकर्षित हुए शांतनु सत्यवती की ओर?
हमनें पिछले ब्लॉग में पढ़ा देवव्रत के जन्म बारे में । आगे पढ़ते हैं कैसे देवव्रत ने एक भीषण प्रतिज्ञा ली और भीष्म पितामह कहलाने लगे…
हमनें पिछले ब्लॉग में पढ़ा देवव्रत के जन्म बारे में । आगे पढ़ते हैं कैसे देवव्रत ने एक भीषण प्रतिज्ञा ली और भीष्म पितामह कहलाने लगे…
ऋषि पाराशर और मत्स्यगंधी
तब तक, मत्स्यगंधी एक सांवली-सलोनी युवती बन चुकी थी। मछुआरों के मुखिया दासा ने उसकी अच्छी देखभाल की थी। वह नाव में लोगों को यमुना नदी पार कराती थी। एक दिन पाराशर ऋषि यमुना नदी के तट पर आए। उन्हें नाव में बैठकर दूसरी ओर जाना था। जब वह नाव में नदी पार कर रहे थे, तो वह इस मछुआरी युवती के प्रति आकर्षित हो गए और वह भी ऋषि की ओर आकृष्ट हो गई।
उसके अंदर हर वक्त यह जद्दोजहद चलती रहती थी कि उसका जुड़वा भाई महल में रहता है और वह मछुआरों के बीच रह रही है। उसने सोचा कि ऋषि के साथ संबंध बनाने पर वह कोई मुकाम हासिल कर सकती है। वे यमुना नदी में एक छोटे द्वीप पर रहने लगे और इस संबंध से एक पुत्र पैदा हुआ। द्वीप पर जन्म होने के कारण उसका नाम द्वैपायन पड़ा। उसका रंग काला था, इसलिए उसे कृष्ण भी कहा गया। बाद में, कृष्ण द्वैपायन वेदव्यास के नाम से प्रसिद्ध हुए, जिन्होंने वेदों का संकलन किया और महाभारत की कथा सुनाई।
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पाराशर अपने पुत्र को लेकर चले गए। जाने से पहले उन्होंने मत्स्यगंधी को यह वरदान दिया कि उसके शरीर से आने वाली मछली की गंध चली जाए और उसके स्थान पर ऐसी दिव्य सुगंध आने लगे, जिसे पहले कभी किसी इंसान ने महसूस न किया हो। उससे ऐसे फूल की गंध आने लगी, जो अलौकिक था। इस अद्भुत सुगंध के कारण उसका नाम बदलकर सत्यवती यानी ‘सत्य के गंध वाली’ रख दिया गया। इसे वजह से वो लोगों को आकृष्ट करने लगी।
शांतनु का सत्यवती से विवाह का निवेदन
एक दिन, शांतनु ने सत्यवती को देखा और उससे प्रेम करने लगे। उन्होंने सत्यवती के पिता के पास जाकर विवाह के लिए उसका हाथ मांगा। जब मछुआरों के मुखिया दासा, जो अपने आप में एक छोटा-मोटा राजा था, ने सम्राट को अपनी दत्तक पुत्री का हाथ मांगते देखा, तो उसे यह सौदा करने का अच्छा मौका नजर आया।
चतुर मछुआरे ने राजा की ओर देखा तो उसे लगा कि वह पूरी तरह प्रेम में डूबे हुए हैं। वह बोला, ‘फिर मेरी बेटी को भूल जाइए।’ शांतनु ने उससे प्रार्थना की। उन्होंने जितनी ज्यादा विनती की, मछुआरे को उतनी ही आशा नजर आने लगी। उसे कांटे में बड़ी मछली फंसती दिख रही थी। वह बोला, ‘यह आपके ऊपर है। अगर आप मेरी बेटी को चाहते हैं तो उसकी संतान को राजा बनाना ही होगा। वरना, खुशी-खुशी अपने महल लौट जाइए।’
शांतनु एक बार फिर निराशा में डूब कर महल चले गए। वह सत्यवती को अपने दिमाग से निकाल नहीं पा रहे थे। उसकी सुगंध ने इस तरह से उन्हें सम्मोहित कर दिया था कि वह एक बार फिर राज्य के मामलों में दिलचस्पी खो बैठे। वह चुपचाप बैठे रहते। देवव्रत ने अपने पिता को देखकर पूछा, ‘राज्य में सब कुछ बहुत अच्छा चल रहा है। फिर आपको कौन सी चीज परेशान कर रही है?’ शांतनु ने बस सिर हिला दिया और शर्म के मारे सिर झुका लिया। वह अपने बेटे को नहीं बता पाए कि बात क्या है?
आज्ञाकारी पुत्र होने के कारण, वह उस सारथी के पास गया, जो शांतनु को शिकार पर ले कर गया था। उसने पूछा, ‘शिकार से लौटने के बाद मेरे पिता पहले जैसे नहीं रह गए हैं। उन्हें क्या हुआ है?’ सारथी ने कहा, ‘मुझे ठीक-ठीक नहीं पता कि क्या हुआ है। मैं उन्हें मछुआरों के मुखिया के पास ले गया था। आपके पिता एक राजा की तरह बड़े जोश और प्यार से उस घर में दाखिल हुए थे। मगर जब वह लौटे, तो वो एक भूत की तरह लग रहे थे।’
देवव्रत की भीष्म प्रतिज्ञा
सच्चाई का पता लगाने देवव्रत खुद वहां गए। दासा ने कहा, ‘राजा मेरी बेटी को चाहते हैं। मैंने बस इतना कहा है कि मेरी बेटी की संतान को ही भविष्य में राजा बनना चाहिए। यह एक मामूली सी शर्त है। बस आप इसके आड़े आ रहे हैं।’ देवव्रत ने कहा, ‘इसमें कोई समस्या नहीं है। मैं वचन देता हूं कि मैं कभी राजा नहीं बनूंगा। सत्यवती के बच्चे ही राजा बनेंगे।’
मछुआरा भोजन करते हुए सावधानी से मछली की हड्डियां निकाल रहा था। उसने ऊपर देखा और बोला, ‘हे युवक, मैं आपकी बातों की तारीफ करता हूं। मगर आप जीवन के बारे में नहीं जानते। विवाह न करने पर भी आपके बच्चे हो सकते हैं।’ फिर देवव्रत ने चरम कदम उठाया, और खुद को नपुंसक बना लिया। उन्होंने प्रतिज्ञा ली: ‘मैं कभी बच्चे पैदा नहीं करूंगा। अब मैं बच्चे पैदा करने के काबिल नहीं हूं। क्या इससे आप संतुष्ट हैं?’ आखिरकार, मछुआरे ने हां कह दी। हर किसी ने कहा, ‘यह सबसे सख्त चीज़ है, जो एक पुरुष खुद के साथ कर सकता है।’ इसलिए लोगों ने उन्हें भीष्म कहा, जिसने बिना किसी के मजबूर किए अपने साथ भीषण सख्ती की। इसके बाद शांतनु ने सत्यवती से विवाह कर लिया।