समझें शरीर के सात चक्रों को
ग्रंथों में जो भी लिखा गया है, क्या वो किसी को आत्म-ज्ञान कराने के लिए काफ़ी है? जानते हैं कि ग्रन्थ सिर्फ तब बने जब किसी आत्मज्ञानी ने अपने अनुभव को शब्दों के माध्यम से बांटना चाहा।
सद्गुरु: हमें सात चक्रों और उनसे योग का विकास किस तरह हुआ, इसे एक खास संदर्भ में देखना चाहिए। हमने हमेशा योग को विज्ञान और तकनीक माना है, क्योंकि हम अस्तित्व संबंधी चीजों के साथ काम करते हैं।
योगियों की कही गई बातों से ग्रन्थ बनें हैं
योगिक संस्कृति के बारे में अनोखी चीज यह है कि उसमें किसी तरह का कोई दर्शन या फिलोसोफी नहीं है। दर्शनों का उपहास किया गया है। कुछ लोग यह कहते हुए बहस करने की कोशिश करते हैं, ‘क्या ग्रंथों में आपकी बातों की पुष्टि की गई है? आप जो कुछ जानते हैं, उसका प्रमाण किस ग्रंथ में है?’ अधिकतर लोग यह नहीं समझते कि ग्रंथ उस ज्ञान की उपज हैं जो योगियों और ऋषियों को प्राप्त हुआ। योगी और ऋषि किसी ग्रंथ की उपज नहीं हैं। एक इंसान ने जो ज्ञान हासिल किया और जिसे उसने किसी रूप में बोला, अभिव्यक्त किया या संप्रेषित किया, उस ज्ञान को उसके आस-पास के लोगों ने एक किताब के रूप में लिखित तौर पर रखने और व्यवस्थित करने की कोशिश की। ये ऐसे लोग थे, जिनके पास ज्ञान नहीं था। पुस्तक में इक्का-दुक्का ज्ञान की बातें हो सकती हैं, बाकी सब अज्ञानता है, पवित्र अज्ञानता।
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गौतम और आनंदतीर्थ इसके सबसे अच्छे उदाहरण हैं। हम गौतम के बारे में इतना कुछ इसलिए जानते हैं क्योंकि आनंद ने उनके बारे में लिखा। मेरे बारे में आप जो कुछ जानते हैं, वह सिर्फ यूट्यूब से जानते हैं, जिसे वीडियोग्राफरों ने रिकार्ड किया है। मुझे उन पर भरोसा है क्योंकि वे कैमरा में अपना दिमाग नहीं लगा सकते और अपनी मन मर्जी से उसे रिकार्ड नहीं कर सकते। लेकिन अगर वे उसे लिखते, तो वे अपना दिमाग भी उसमें लगाते। जब लिखने वालों में अधिक आत्मविश्वास आया, तो वे अपने विचार अधिक से अधिक उसमें डालने लगे क्योंकि किसी आत्मज्ञानी व्यक्ति की कही हुई बहुत सारी बातें लोगों को समझ में नहीं आती थीं। इसलिए जो उस व्यक्ति ने कहा, उसे उस तरह व्यवस्थित कर दिया गया, जिस रूप में लोगों को पसंद आता है।
किसी के अनुभव की प्रकृति को कोई दूसरा व्यक्ति ग्रहण नहीं कर सकता, चाहे वह पूर्णिमा के चांद को देखने जितनी सरल चीज हो। जब एक मामूली अनुभव को भी कैद नहीं किया जा सकता, तो आप किसी अद्भुत अनुभव को कैसे कैद कर सकते हैं। आप उसे ग्रहण नहीं कर सकते, इसलिए लोग सिर्फ उसे व्यवस्थित रूप में पेश करते हैं। लोग कहेंगे कि चांद का मतलब है कि वह एक गोल वस्तु है, जिसे देखकर आपको अच्छा लगता है। इसे पढ़कर अलग-अलग लोगों को अलग-अलग चीजें दिखेंगी जो उनकी अपनी चेतनता पर निर्भर होगी। फुटबॉल खिलाड़ी को वहां एक बड़ी गेंद नजर आएगी। भूखे लोगों को मक्खन का गोला नजर आएगा, जैसा कि भारतीय बच्चों को हमेशा बताया गया है।
ब्रह्माण्ड से एकाकार होने के लिए बुद्धि काम नहीं आ सकती
ये सात आयाम कोई दर्शन या फिलोसोफी नहीं, बल्कि एक तरह का वर्गीकरण हैं। मूलभूत रूप से जीवन का कोई भी वर्गीकरण गलत है, लेकिन यह वर्गीकरण समझने में आसानी के कारण किया गया है।
सात चक्रों को सात खंडों के रूप में नहीं देखना चाहिए। जीवन संपूर्णता में घटित होता है। लेकिन बुद्धि को वर्गीकरण की जरूरत पड़ती है। वर्गीकरण के बिना आपकी बुद्धि कुछ भी ग्रहण नहीं सकती। बुद्धि का स्वभाव है चीज़ों को देखने और उन्हें समझने का। देखने और समझने की क्षमता के बिना आपकी बुद्धि एक बेकार की मशीन है।
विवेक इस दुनिया में जीने का बहुत अहम उपकरण है, लेकिन अगर आप ब्रह्मांड को आत्मसात करना चाहते हैं, यानी आप उसे अपना एक हिस्सा बनाना या अपने अंदर विलीन करना चाहते हैं तो यह बिलकुल अच्छी चीज नहीं है। अगर आप विवेक से निर्णय लेते हैं, तो आप किस ग्रह को छोड़ना चाहेंगे? विवेक-शक्ति का मतलब है कि आप क्या चाहते हैं और क्या नहीं, क्या आपको पसंद है, और क्या नहीं पसंद, क्या अच्छा है, क्या बुरा, क्या ऊंचा है, क्या नीचा, क्या भगवान है और क्या शैतान।
आत्मज्ञान तब होता है, जब आप सब कुछ को इस तरह रोशनी में ला देते हैं कि हर चीज आपको एक जैसी लगती है। आप किसी चीज में भेद नहीं करना चाहते। रोशनी और अंधकार आपके लिए एक जैसे अनुभव होते हैं। आपके लिए दोनों में कोई अंतर नहीं होता। आत्मज्ञान का मतलब है कि आप अंदर से प्रकाशित हैं, इसलिए आप कहीं भी अंधकार नहीं देख पाते।
वैराग – सभी रंगों या गुणों से परे
हम एक आयामहीन आयाम की बात कर रहे हैं, मगर बुद्धि के लिए हम वर्गीकरण करते हैं। आपको अपनी कोई स्थिति नहीं बनानी चाहिए, जैसे ‘मैं अनाहत पर जोर देता हूं’ या ‘मैं विशुद्धि पर जोर देता हूं’। जैसे लोग कहते हैं, ‘मैं कॉफी पसंद करता हूं’ या ‘मैं चाय पसंद करता हूं’। या जब वे सुबह उठते हैं, तो कहते हैं, ‘मैं मार्निंग पर्सन हूं।’ इसका मतलब पहचान बनाना नहीं है। अगर आप कुछ खास चीजें करना चाहते हैं, तो आप अलग-अलग गुणों में अंतर कर सकते हैं। लेकिन यदि आप अस्तित्व की प्रकृति को जानना चाहते हैं, तो इसके लिए जो आयाम है, उसे वैराग्य या वैराग कहते हैं। ‘वै’ का अर्थ है परे, और ‘राग’ का अर्थ है रंग। रंग से परे जो चीज है, वह रंगहीन है। अंग्रेजी में ‘कलरलेस’ नकारात्मक अर्थ में लिया जाता है, जैसे जीवनहीन या जीवंतता की कमी, मगर वैराग्य उस अर्थ में रंगहीन नहीं है।
हम रंगहीन को रंग से परे मानते हैं। जिसमें रंग नहीं होता, वह पारदर्शी होता है। पारदर्शिता आपको आर-पार दिखाती है। रंगहीन हवा ही आपका पोषण करती है। मान लीजिए, हवा नीली हो जाए, तो आप देख नहीं पाएंगे। आपको थोड़ी देर के लिए हवा का नीला रंग अच्छा लगेगा, लेकिन उसके बाद आप चाहेंगे कि वह नीला रंग हट जाए और आप फिर से देख सकें। रंगहीन या रंग से परे होने का मतलब साफ दृष्टि रखना है। आपकी दृष्टि रंगों से धुंधली नहीं होती। बहुत सी चीजों को उनके रंग से पहचाना जाता है – जैसे नदियों को, ब्लू नाइल, यैलो रिवर या रेड रिवर। इसका मतलब यह नहीं है कि उसका पानी नीला, पीला या लाल है। वह जिस मिट्टी को ढोती है, वह उसे एक खास रंगत देती है।
अगर आप रंग से परे हैं, तो आप किसी भी जगह अच्छी तरह फिट हो सकते हैं क्योंकि आप खुद रंगहीन, गुणों से परे हैं। अब, नीली पृष्ठभूमि में आप नीले हो जाते हैं, लाल पृष्ठभूमि होती है तो आप लाल हो जाते हैं। आप कहीं भी प्रतिरोध की तरह महसूस नहीं किए जाएंगे। किसी पल वहां जो कुछ भी होगा, आप उसके साथ मिल-जुल जाएंगे। इसलिए हम सात आयामों की बात कर रहे हैं, जो सात रंगों की तरह हैं। रोशनी को अपवर्तित या रिफ्रेक्ट करने में कोई बुराई नहीं है लेकिन अगर आप हर समय अपवर्तित रोशनी में रहेंगे, तो आपकी जीवन दृष्टि विकृत हो जाएगी।
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