नदियों में जल नहीं, जीवन बहता है
हमने कभी नदियों को जल के भंडार की तरह नहीं देखा, न ही उन्हें सिर्फ भौगोलिक इकाई की तरह देखा। हमने उन्हें जीवन का निर्माण करने वाले तत्व की तरह देखा।
इस संस्कृति में, हमने नदियों को सिर्फ जल के भंडार के रूप में नहीं देखा। हमने उन्हें जीवनदायी देवी-देवताओं के रूप में देखा। तर्क की सीमाओं में बंधे विचारशील मन को यह बात मूर्खतापूर्ण लग सकती है। ‘नदी तो सिर्फ नदी है, वह देवी कैसे हो सकती है?’ अगर ऐसे व्यक्ति को आप किसी कमरे में तीन दिन तक बिना पानी के बंद कर दें और फिर उसे एक गिलास पानी दिखाएं, तो वह उसके आगे सिर झुका देगा – नदी के सामने नहीं, मात्र एक गिलास पानी के आगे। क्योंकि पानी, हवा, भोजन और जिस धरती पर हम चलते हैं, ये सब महज उपभोग की वस्तुएं नहीं हैं, ये सब जीवन का निर्माण करने वाले पदार्थ हैं।
इस संस्कृति में हमने कभी किसी अनजान देवताओं की पूजा नहीं की। भारत में कभी ईश्वर ऊपर आसमान में नहीं रहा है। हम जिन देवताओं की पूजा करते हैं, वे ऐसे लोग हैं, जो कभी न कभी इस धरती पर मौजूद थे। चाहे वह शिव हों, राम हों या कृष्ण - वे उन सभी परेशानियों और मुश्किलों से गुजरे, जिनसे ज्यादातर इंसान गुजरते हैं। हम उनकी पूजा इसलिए करते हैं, क्योंकि उनके हालात चाहे जो भी रहे हों, चाहे उन्हें जीवन में कैसी भी चुनौतियों का सामना क्यों न करना पड़ा हो, वे अपनी भीतरी प्रकृति से कभी नहीं भटके। कई बार उन्हें सफलता नहीं मिली, उन्होंने कोई चामत्कारिक उपलब्धि हासिल नहीं की, वास्तव में देखें तो वे अपने जीवन में विफल रहे। मगर एक इंसान को अपने अंदर जैसा होना चाहिए, उसकी प्रकृति से वे नहीं भटके।
एक नदी भी एक तरह से ऐसी ही होती है। चाहे कैसे भी लोग उसे छुएं, बहने की प्रकृति के कारण वह हमेशा शुद्ध रहती है और बहती रहती है। तो हमने कभी नदियों को जल के भंडार की तरह नहीं देखा, न ही उन्हें सिर्फ भौगोलिक इकाई की तरह देखा। हमने उन्हें जीवन का निर्माण करने वाले तत्व की तरह देखा, क्योंकि हमारे शरीर का बहत्तर फीसदी हिस्सा जल है। पृथ्वी का भी सत्तर फीसदी से अधिक हिस्सा पानी है। जब भी हम जीवन की खोज करते हैं, तो सबसे पहले एक बूंद पानी ढूंढ़ते हैं।
आज की दुनिया में हम इस तरह से स्वास्थ्य सुविधाएं बना रहे हैं मानो हम सब गंभीर रूप से बीमार पडऩे के इंतजार में हैं। अगर आपको तत्वों का संतुलन आता, तो ऐसा नहीं होता। सभी पर तो नहीं, लेकिन जल और वायु पर अधिकार करना बहुत आसान है, क्योंकि इन दो तत्वों तक पहुंचना बहुत आसान है। अगर आप इन दोनों को अच्छी तरह संभालें और जिन चीजों का आप उपभोग कर रहे हैं, थोड़ा उनके प्रति सजग रहें, तो आप कभी डॉक्टर के पास नहीं जाएंगे।
आज के तथाकथित आधुनिक जीवन में, जीवन को बनाने वाले तत्वों के लिए कोई श्रद्धा-भाव नहीं रह गया है। हम जीवन का निर्माण करने वाली वस्तुओं के साथ ठीक बर्ताव नहीं करते, और उम्मीद करते हैं कि वह हमारे भीतर अच्छा बर्ताव करें। ऐसा नहीं होता। अब आधुनिक विज्ञान भी मानता है कि जल के साथ आप जैसा बर्ताव करेंगे, वह आपके भीतर वैसा ही बर्ताव करेगा। हमें उसके साथ सही तरह से पेश आना सीखना चाहिए। अगर हम स्वस्थ, खुशहाल और कामयाब होना चाहते हैं, तो यह बहुत महत्वपूर्ण है कि आपके भीतर के तत्व इसमें सहयोग करें। अगर वे सहयोग नहीं करते, तो कुछ भी कारगर नहीं होगा। हमारी बीमारियां दो तरह की होती हैं ‐ संक्रामक और दीर्घकालिक जिसे आप ‘क्रॉनिक डीज़ीस’ कहते हैं। संक्रामक बीमारियां एक तरह से बाहरी हमले की तरह होती हैं, जिसमें बाहर से जीवाणु हमारे शरीर में घुसते हैं और हमें परेशान करते हैं। इसके लिए हमें डॉक्टर की जरूरत होती है। मगर सत्तर फीसदी से अधिक बीमारियां हम खुद अपने शरीर के अंदर पैदा करते हैं। इसकी वजह मूल रूप से अपने अंदर और बाहर मौजूद तत्वों के साथ पेश आने का हमारा तरीका है। जल के भीतर अगर आप कुछ खास तरीके से रहें तो सभी क्रॉनिक बीमारियां दूर हो जाती हैं। इस संस्कृति में हम हमेशा से यह बात जानते थे। लोग एक बूंद जल के लिए मंदिरों में क्यों खड़े रहते हैं? क्योंकि उस पानी में चैतन्य की याद्दाश्त होती है। अगर देवता शक्तिशाली है, और उस जल ने देवता को स्पर्श किया है, तो उसमें चैतन्य की याद्दाश्त आ जाती है। आप चाहते हैं कि वह याद्दाश्त आपके शरीर में आ जाए।
जो जल आप पीते हैं, उसे ठीक करने के लिए आप एक आसान सी चीज कर सकते हैं। मुझे पता है कि आजकल हर कोई प्लास्टिक की बोतलों से पानी पीता है। अगर आप जल को किसी धातु के बर्तन में, खास तौर पर तांबे या तांबा मिश्रित बर्तन में रखें, तो उसकी प्रकृति बदल जाएगी। रोज पीने के लिए आप तांबे के बर्तन में पानी रखें और हर दिन उसके पास एक दीया जलाकर एक फूल रखें, तो आपके अंदर जल का बर्ताव पूरी तरह बदल जाएगा। साथ ही, उसे पीने से पहले आप सिर्फ एक पल के लिए उसके प्रति श्रद्धा और आभार का भाव मन में लाएं, क्योंकि इस वस्तु से आपका जीवन बन रहा है। कोई ऊपरवाला नहीं, यह पदार्थ हर पल आपका जीवन बना रहा है और आप उसके साथ जैसा बर्ताव करते हैं, वह बहुत महत्वपूर्ण है।
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