सद्‌गुरुहमारा ये ब्लॉग उस नदी पुनरुद्धार नीति सिफारिश दस्तावेज का अंश है, जिसे सद्‌गुरु ने माननीय प्रधान मंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी को भेंट किया था। दस्तावेज के इस अश में हम नीति सिफारिशों को गहराई से समझ सकते हैं।

प्रस्तावित नीति सिफारिश वास्तव में एक आर्थिक कार्यक्रम है, जिसका इकोलॉजिकल यानी पारिस्थितिकीय परिणाम लाभकारी होगा। यह प्रस्ताव मुख्य रूप से नदी की स्थिति को सुधारेगा और साथ ही नदी के आस-पास बसे किसानों की आय में बढ़ोतरी लाएगा, सामाजिक समावेश को मजबूत करेगा, पर्यावरणीय स्थिरता को आगे बढ़ाएगा, और पर्याप्त पानी तक पहुंच की अंतर-पीढ़ीगत समानता को सुनिश्चित करेगा। यह राष्ट्रीय जल नीति 2012, राष्ट्रीय पर्यावरण नीति 2006, राष्ट्रीय कृषिवानिकी (एग्रो फॉरेस्ट्री) नीति 2014 और किसानों के लिए राष्ट्रीय नीति 2007 के पहलुओं को अपनाते हुए एक ‘जनकेंद्रित’ दृष्टिकोण के साथ एक सुसंगत रूपरेखा प्रदान करता है। यह नीति सरकारी योजनाओं जैसे परंपरागत कृषि विकास योजना ; प्रधान मंत्री कृषि सिंचाई योजना; जलवायु प्रत्यास्थी कृषि पर राष्ट्रीय पहल; स्थायी कृषि पर राष्ट्रीय मिशन; ग्रीन इंडिया मिशन ; स्किल इंडिया मिशन / प्रधान मंत्री कौशल विकास योजना; प्रधानमंत्र ग्रामीण डिजिटल साक्षरता अभियान; मुद्रा योजना; और अन्य योजनाओं के साथ संयोजन को भी प्रोत्साहित करता है।

नीति सिफारिशों का विस्तृत विवरण

हमारी नदियों को दो मोर्चों पर चुनौतियां झेलनी पड़ती हैं - गुणवत्ता के स्तर पर और मात्रा के स्तर पर, जिनको एक साथ ठीक किए जाने की जरूरत है।

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इकोसिस्टम के संचालन को दुरुस्त रखने के लिए भारतीय नदियों को पुनर्जीवित करना बहुत जरूरी है। इससे उनके ऊपर निर्भर बड़े समुदायों को रोजगार सुरक्षा भी मिलती है। इसलिए यह बहुत जरूरी है कि नदी, भारत सरकार द्वारा दी गई नदी की परिभाषा के अनुसार इन दो विशेषताओं को पूरा करती हो: अविरल धारा - अर्थात अबाधित और मुक्त धारा, और निर्मल धारा - अर्थात प्रदूषण मुक्त धारा। प्रदूषण और दोहन के खतरों को कम करते हुए नदियों और उन पर निर्भर समुदायों के पुनर्जीवन के लिए एक हल आगे रखा जाना चाहिए। यह धारणा ‘नदी के लिए जीवन’ और ‘जीवन के लिए नदी’ दोनों की जरूरत के दोहरे विचार में बहुत सारगर्भित रूप में व्यक्त हुई है।

नदी के लिए जीवन: सूखती नदियों में जान फूंकना जरूरी है, ताकि उन्हें गायब होने से बचाया जा सके।

जीवन के लिए नदी: इंसानों और जैवविविधता को अपने जीवन और विकास के लिए, साथ ही जीविका सुरक्षित करने के लिए नदी की जरूरत है।
इसी को देखते हुए, सिफारिशों को मोटे तौर पर चार श्रेणियों में बांटा गया है और उन्हें ब्यौरेवार पेश किया गया है। पढ़ते हैं पहली श्रेणी के सुझाव।

नदियों के पुनरुद्धार से जुड़े सुझाव

(क) पर्यावरणीय धाराएं: पर्यावरण सुरक्षा कानून, 1986 के तहत हर नदी के लिए समुद्र तट तक पानी का न्यूनतम पर्यावरणीय प्रवाह अनिवार्य बनाया जाना चाहिए, जो नदी के साथ लगते इकोलॉजिकली संवेदनशील क्षेत्र में वनस्पति और जीव-जंतुओं को बनाए रखने के लिए काफी हो।

(ख) इकोलॉजिकली संवेदनशील क्षेत्र: पर्यावरण सुरक्षा कानून, 1986 के तहत नदी से दोनों ओर कम से कम 1 किलोमीटर चौड़ाई वाले इलाके को चिह्नित करके इकोलॉजिकली संवेदनशील क्षेत्र घोषित किया जाना चाहिए और उसे सुरक्षित करने के लिए नियम बनाए जाने चाहिए।

(ग) संतृप्ति मॉडल (सेचुरेशन मॉडल): किसी नदी पर किए गए किसी काम के वांछित परिणाम के लिए, उसे नदी की पूरी लंबाई के साथ लागू करना होगा। उस इलाके के किसानों को भी पुनर्जीवन कार्यक्रम में हिस्सा लेने का अधिकार होना चाहिए और चाहे उनकी जमीन कितनी भी बड़ी या छोटी हो, उन्हें मुआवजा व प्रोत्साहन मिलना चाहिए।

(घ) नर्सरियां स्थापित करते हुए गुणवत्तापूर्ण पौधों (क्वालिटी प्लांटिंग मैटीरियल या क्यूपीएम) का उत्पादन: किसी नदी की पूरी लंबाई के साथ सैंकड़ों किलोमीटर तक इस पैमाने के वृक्षारोपण कार्य के लिए लाखों क्यूपीएम की जरूरत होगी ताकि अधिकतम आर्थिक लाभ मिल सके।

(ङ) बाढ़ के मैदानों को रसायन मुक्त क्षेत्र घोषित करना: भारत सरकार की नदी की परिभाषा के अनुसार, ‘निर्मलधारा’ या प्रदूषणमुक्त धारा, अनिवार्य है। इसलिए उन क्षेत्रों में खेती के लिए रसायनों के इस्तेमाल पर रोक होनी चाहिए ताकि नदी में पानी की गुणवत्ता अच्छी रहे।
(च) नदी भूमि की पहचान, रेखांकन और अधिसूचना: नदी और उसके आस-पास की भूमि से जुड़े हुए इलाके, जो तटवर्ती इकोसिस्टम का एक हिस्सा है, का सीमांकन होना चाहिए। इसके साथ ही नदी का रख रखाव करने वाले किसी भी संस्थान के लिए साफ तौर पर जिम्मेदारियां तय होनी चाहिए, जिससे काम सुचारू तरीके से चल सके।

(छ) नियंत्रक रूपरेखा: प्वाइंट सोर्स (यानी औद्योगिक सीवेज) और नॉन-प्वाइंट सोर्स (यानी खेती अपवाह) से नदी के प्रदूषण को काबू में करने के लिए और बालू के खनन से रिवरबेड के दोहन को रोकने के लिए एक उपयुक्त नियंत्रक रूपरेखा को प्रभावी ढंग से लागू करना चाहिए। दूषित जल के उपचार की तकनीकों को अपनाने पर प्रोत्साहन देते हुए और प्रदूषकों के प्रयोग को बहुत हतोत्साहित करते हुए पहली समस्या का हल हो सकता है। दूसरी समस्या के लिए बिल्डिंग और कंस्ट्रक्शन के नियमों के प्राधिकृत आकार (जैसे कि 3000 स्क्वायर फीट) से बड़े श्रेत्रफल में काम के लिए नदी के बालू के वैकल्पिक साधनों जैसे मैनुफैक्चर्ड सैंड (एम-सैंड) के प्रयोग को अनिवार्य बनाया जा सकता है। यह संबंधित प्राधिकरण द्वारा तय किया जाएगा।

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