सद्गुरु: नदी अभियान मुख्य रूप से एक जागरूकता अभियान था, जिससे हमें लोगों का समर्थन मिल सके और हम नदियों को लेकर देश की नीति बदल सकें। मैंने खुद 30 दिनों में 9300 किलोमीटर तक का सफ़र तय किया। इस दौरान मेरे साथ-साथ नदी अभियान को भी मीडिया में बड़े पैमाने पर प्रकाशित किया गया। मैंने 142 कार्यक्रमों में बात की और 180 से ज्यादा इंटरव्यू दिए।

सिर्फ 30 दिनों में 16.2 करोड़ लोगों ने इसका समर्थन किया। यह विश्व का पहला ऐसा अभियान है, जिसे सिर्फ 30 दिनों में इतने सारे लोगों का समर्थन मिला हो।

इस पूरे अभियान का मकसद, इसे एक राष्ट्रीय आन्दोलन बनाने का था। लेकिन उस वक्त किसी को इस बात का एहसास नहीं था। कुछ लोगों को लगा कि मैं कन्याकुमारी से हिमालय तक केवल घूमने ही जा रहा हूँ। नहीं, इस आन्दोलन का मकसद लोगों में जागरूकता लाना था। सिर्फ 30 दिनों में 16.2 करोड़ लोगों ने इसका समर्थन किया। यह विश्व का पहला ऐसा अभियान है, जिसे सिर्फ 30 दिनों में इतने सारे लोगों का समर्थन मिला हो।

आम लोगों की पुकार

Modi-Sadhguru

लोगों के इतने समर्थन के बाद सरकार भी इसे अनदेखा न कर सकी। हमने केंद्र सरकार को 760 पन्नों की नदी अभियान सिफारिश प्रस्तुत की। मेरे प्रधानमंत्री को सिफारिश नीति देने के लगभग 16 घंटों के बाद उन्होंने उसे देखने के लिए एक विशेष समिति का गठन किया।

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फिर वह नीति आयोग तक पहुंचा, जो देश के लिए योजनाएं बनाता है और उसे ढाई महीने तक वैज्ञानिक परीक्षण के लिए भेजा गया। जब उन्होंने देखा कि ये सभी वैज्ञानिक परीक्षणों में सफल है, तो उन्होंने इस योजना को 29 राज्यों के लिए आधिकारिक सिफारिश बना दिया।

स्वतंत्र भारत में पहले कभी ऐसा नहीं हुआ कि किसी प्राइवेट संस्था का नाम किसी पॉलिसी में आया हो, लेकिन नदी अभियान के साथ ऐसा हुआ क्योंकि उन्होंने हमारे द्वारा किये गए काम की विशालता को देखा।

कानून के साथ समस्या यह है कि इसे इस तरह स्थापित किया गया है, कि नदी राज्य और केंद्र सरकार का संयुक्त मुद्दा है, मतलब केंद्र सरकार सिर्फ सिफारिश दे सकती है लेकिन इसे लागू नहीं कर सकती। इसका निर्णय लेना राज्यों के हाथ में है।

नदी अभियान के दौरान 16 राज्यों में 6 अलग-अलग पार्टियाँ बनी हुई थीं। आज इलेक्शन के बाद हालात कुछ और हैं, लेकिन उस समय 6 पार्टियाँ थीं। ऐसा 30 से 40 सालों में पहली बार हुआ है, जब अलग-अलग तरह के राजनीतिक लोगों की छह अलग-अलग पार्टियों के लोगों ने एक साथ समर्थन दिया हो। मुख्यमंत्री स्वयं इन कार्यक्रमों में शामिल हुए थे। लोकतंत्र में यह बहुत महत्वपूर्ण है। अगर लोगों का भारी समर्थन होगा तो सरकार उसे गंभीरता से लेगी।

नदी अभियान से कावेरी पुकारे तक का सफ़र

कावेरी पुकारे, नदी अभियान से काफी अलग है। नदी अभियान में हमारा मकसद नदियों को लेकर कानून को बदलना था जो हमने हासिल कर लिया है। अब हम ज़मीनी काम की बात कर रहे हैं। महाराष्ट्र के यवतमाल क्षेत्र में हमारा एक और प्रोजेक्ट चल रहा है। दुर्भाग्य से इस क्षेत्र को किसानों की आत्महत्या की राजधानी माना गया है।

यह प्रोजेक्ट वाघाडी नदी पर है। वाघाडी नदी 54 किलोमीटर लम्बी है, और गोदावरी की एक उप-सहायक नदी है। हमने इस प्रोजेक्ट को अपने हाथों में लिया है, जिसे राज्य मंत्रिमंडल ने स्वीकृति दी है और हम सरकार के साथ मिलकर इस पर काम कर रहे हैं। हमारे स्वयंसेवक वहाँ रह रहे हैं, और काम कर रहे हैं।

नदी अभियान एक जागरूकता अभियान था जो नदियों को लेकर कानून को बदलने का प्रयास था जबकि वाघाडी नदी एक सक्रिय प्रोजेक्ट है और कावेरी पुकारे दोनों के बीच में कहीं है। कावेरी पुकारे का दायरा वाघाडी से काफी ज्यादा बड़ा है, क्योंकि हम इसे किसानों, सरकार और अपने बीच में लागू करेंगे।

यह तीन स्तरों के प्रोजेक्ट हैं, और हमेशा से यही योजना थी। नदी अभियान से पहले से मेरे दिमाग में यह योजना थी, लेकिन बात ये है कि मैं अपने लोगों को तभी बताना शुरू करता हूँ, जब मुझे अमल करने की संभावना नज़र आती है।

अगर हम 12 सालों में इसे कावेरी घाटी में कर दिखाएं, तो इससे देश और दुनिया के ट्रॉपिकल या उष्णकटिबंधीय हिस्सों में एक बहुत बड़ा बदलाव आएगा।

आज हम ये बहुत अच्छे से जान चुके हैं कि हम कावेरी पुकारे को अमल में ला सकते हैं। हमारे पास एक बोर्ड है जिसमें इसरो के पूर्व अध्यक्ष, वर्ल्ड वाइड फंड फॉर नेचर के सीईओ, सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश, पानी के सबसे बड़े विशेषज्ञ, बायोकॉन के अध्यक्ष तथा किसान-उत्पादक संगठन आन्दोलन के अध्यक्ष शामिल हैं। हमारे पास देश का सबसे विशिष्ट बोर्ड है, और हमारे पास 100 समर्पित कार्यकर्ता हैं जो पूरा समय इस पर काम करते हैं। तो हम इसे अच्छे से साकार कर सकते हैं। लेकिन जब तक सरकार किसानों को प्रोत्साहन राशि नहीं देती तब तक हम इसे साकार नहीं कर सकते। सौभाग्य से कर्नाटक और तमिलनाडू इन दोनों राज्यों की सरकार इसके पक्ष में हैं, क्योंकि जितनी राशि की ज़रूरत है वो काफी कम है। राशि पहले ही अलग-अलग योजनाओं में बाँटी जा चुकी है, उन्हें बस फिर से आवंटित करना होगा।

मूल रूप से, कावेरी पुकारे किसानों के लिए एक आर्थिक और देश के लिए एक पर्यावरण से जुड़ी योजना है। कावेरी बस पहला कदम है। अगर हम 12 सालों में इसे कावेरी घाटी में कर दिखाएं, तो इससे देश में और दुनिया के ट्रॉपिकल या उष्णकटिबंधीय हिस्सों में एक बहुत बड़ा बदलाव आएगा।

एक स्वतंत्रता आंदोलन

नदी अभियान के दौरान मेरा साबरमती आश्रम में जाना हुआ था। दांडी मार्च स्वतंत्रता आंदोलन की एक महत्वपूर्ण योजना थी। आपको क्या लगता है की दांडी मार्च में कितने लोग शामिल थे? केवल 72 लोग। केवल 72 लोगों के सहारे महात्मा गाँधी ने इसे राष्ट्रीय आन्दोलन में परिवर्तित कर दिया हालाँकि उस दौरान न ही आधुनिक तकनीकें थीं और न ही सोशल मीडिया!

उन दिनों एक बाहरी अत्याचारी था। वह साफ़ तौर पर सबका दुश्मन था और हमें पता था कि हमें उसी से लड़ना है। लेकिन अगर हम नदियों की बात करें तो हम ही अत्याचारी हैं। इस तबाही का हम बहुत बड़ा हिस्सा हैं। इसके लिए स्वतंत्रता आन्दोलन से बहुत बड़े आन्दोलन की जरुरत होगी, क्योंकि दुश्मन हमारे अंदर है। इसके लिए हमें ढेर सारी ताकत, ईमानदारी, सच्चाई और प्रभावशाली कार्रवाई चाहिए। क्योंकि अंदर का दुश्मन इतनी आसानी से नहीं बाहर निकलता।

जो कावेरी मैंने 40 साल पहले देखी थी, मैं चाहता हूँ कि 25 सालों में वही स्वच्छ और बेहद शानदार कावेरी हम अपने बच्चों को भेंट कर सकें। अगर हम इसे एक सच्चाई न बनाएँ, तो हमारी पीढ़ी व्यर्थ होगी। मैं नहीं चाहता कि हमारे साथ ऐसा हो।

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