हमारा मन ऐसी स्थिति बना लेता है जैसे मौत होती ही नहीं

एक बार किसी ने गौतम बुद्ध से पूछा, ‘इंसान कितनी देर तक जीवित रहता है?’ गौतम बुद्ध ने जवाब दिया, ‘सिर्फ एक सांस।’ एक बार में एक सांस, बस आपका पूरा जीवन यही है। यह इतना क्षणभंगुर(जल्द ही खत्म होने वाला) है। बस सांस लेना, छोडऩा, लेना-छोडऩा,... अगर अगली सांस नहीं ली तो...?

मृत्यु का सरोकार सिर्फ भौतिक शरीर से होता है। मृत्यु को लेकर डर की वजह है कि आप खुद को बस एक भौतिक शरीर के तौर पर महसूस कर रहे हैं।

हर बार जब आप सांस छोड़ते हैं, तो शरीर को भय रहता है कि कहीं वह अगली सांस नहीं ले पाया तो? अगर अगली सांस लेने में कुछ पल की भी देरी हो जाए तो अचानक शरीर कांप उठता है। आपका हर पहलू किसी न किसी रूप में हर वक्त इसे लेकर जागरूक है, लेकिन मानसिक तौर पर हम लोग ऐसी स्थिति तैयार कर लेते हैं, मानो मृत्यु का कोई वजूद ही नहीं है। ‘मृत्यु’ शब्द ही लोगों में जबरदस्त डर भर देता है। इसकी वजह बस यह है कि मृत्यु के बारे में हम जानते नहीं हैं, उसके बारे में हमने पूरी गलतफहमी पाल रखी है।

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मृत्यु का सरोकार सिर्फ भौतिक शरीर से होता है। मृत्यु को लेकर डर की वजह है कि आप खुद को बस एक भौतिक शरीर के तौर पर महसूस कर रहे हैं। जब मैं भौतिकता की बात कर रहा हूं तो यहां आपकी भावना और विचार भी भौतिक ही हैं, भले ही वे शरीर से थोड़े सूक्ष्म हैं, लेकिन हैं भौतिक ही। आज आपकी भावनाओं और विचारों को मशीन के जरिए मापा जा सकता है, जिसका मतलब हुआ कि उनका एक भौतिक आधार है। तो अगर आपका जीवन का अनुभव सिर्फ भौतिकता तक सीमित है, तो मृत्यु का डर स्वाभाविक है, क्योंकि जब मृत्यु होगी तो अभी आपके पास जो है, वह सब चला जाएगा।

डर को भगाने की बात मत सोचिये

मौत के डर से छुटकारा पाने का तरीका

तो आखिर इस डर से छुटकारा कैसे पाया जाए? अगर आप इस डर को भगाने की कोशिश करेंगे तो यह नहीं जाएगा। अगर आप बहादुर बनेंगे तो भी यह डर नहीं जाएगा। दरसअल, बहादुरी और साहस डर के ही अलग-अलग रूप हैं। अगर भौतिकता से परे का आयाम, इंसान के भीतर एक जीवंत हकीकत बन जाता है, सिर्फ तभी वो डर से मुक्त हो पाता है। भौतिकता हमेशा खतरे में रहती है, क्योंकि भौतिकता का मतलब ही हमेशा सीमित चारदीवारी के भीतर होना होता है। ऐसी कोई भी चीज जो सीमित चारदीवारी के भीतर रहती है, वह हमेशा खतरे में रहती है। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि आप कितने मतबूत और बलशाली हैं, लेकिन आपका भौतिक हिस्सा हमेशा खतरे से घिरा हुआ है। कोई इसे नकार नहीं सकता।

अगर भौतिक से परे कोई आयाम आपके लिए एक जीवंत सत्य बन जाए, तो भय का अस्तित्व नहीं रह जाता।

अगर आप अपनी जिंदगी में पीछे मुड़कर देखें तो आपने खुद को शिक्षित किया, आपने एक नौकरी की, आपकी शादी हुई, आपने यह सब इसलिए किया, क्योंकि आप एक तरह की सुरक्षा चाहते थे। सुरक्षा की यह आवश्यकता डर की वजह से पैदा हुई। दरअसल इसकी वजह है कि आप अपनी जिंदगी को भौतिकता के सीमित संदर्भों में (शरीर से जुड़ी चीज़ों से जोड़कर) देख रहे हैं।

अगर भौतिक से परे कोई आयाम आपके लिए एक जीवंत सत्य बन जाए, तो भय का अस्तित्व नहीं रह जाता। डर कोई ऐसी चीज नहीं है, जिसे आप जीत लें, बात बस इतनी है कि आप इसे अपने भीतर पैदा करना बंद कर देते हैं। क्योंकि अगर आप उस डर को जीत भी लेंगे तो भी आप उसे अपने भीतर फिर पैदा कर सकते हैं। लेकिन अगर आपने अपने भीतर डर पैदा करना ही बंद कर दिया तो यह पूरा नाटक ही खत्म हो जाएगा। आध्यात्मिक होने का मतलब बस इतना ही है कि जीवन के आपके अनुभव भौतिकता(शरीर और मन) की सीमा से परे चले जाते हैं। लेकिन भौतिकता की इस सीमा को तोड़ने के बजाए, उसकी वजहों पर काम करने के बजाए लोग अपना मन बहलाकर डर पर काबू पाने की कोशिश करते हैं, लेकिन इस कोशिश से कुछ हासिल नहीं होता।

मौत हर पल घटित होती रहती है

मानव मन की सबसे बड़ी त्रासदी यह है कि यह मृत्यु के खिलाफ है, क्योंकि जैसे ही आप मौत को नकारते हैं, आप जीवन को भी नकार देते हैं। हम हर पल जो यहां जीते हैं, उस पूरी प्रक्रिया को या तो हम ‘जीवन’ के रूप में देख सकते हैं या फिर इस प्रक्रिया को ‘मृत्यु’ का नाम दे सकते हैं। मृत्यु कोई ऐसी चीज नहीं है जो आपके साथ घटित होने वाली है। मृत्यु कोई भविष्य नहीं है, जिस पल आप पैदा हुए, तभी आपकी आधी मृत्यु हो गई। आपका सांस लेना जीवन है और सांस छोड़ना मृत्यु। आज जिसे आप जिंदगी के तौर पर देखते हैं, वह आपके लिए तब शुरू हुई, जब आप एक बच्चे के रूप में पैदा हुए और आपने पहली बार सांस भरी। और अगर आप अपने जीवन पर नजर डालें तो अपने जीवन के सबसे अंत में आप क्या करने वाले हैं? हो सकता है कि आप कहें, ‘मैं ईश्वर के बारे में सोचूंगा।’ नहीं, जीवन के आखिरी क्षण में आप एक सांस छोड़ेंगे।

मृत्यु कोई भविष्य नहीं है, जिस पल आप पैदा हुए, तभी आपकी आधी मृत्यु हो गई। आपका सांस लेना जीवन है और सांस छोड़ना मृत्यु।

जीवन को एक तनाव की जरूरत होती है, नहीं तो आप इसे चालू रख ही नहीं सकते। जबकि मृत्यु एक परम विश्राम है। अगर आप एक बड़ी सांस छोड़ें और बड़ी सांस भरें और फिर गौर करें कि आपका शरीर और मन कैसा है तो आप पाएंगे कि सांस छोड़ना ज्यादा आराम देता है। जब भी आप तनाव में होते हैं, जब हालात आपमें बहुत ज्यादा तनाव भरने लगते हैं तो शरीर की स्वाभाविक प्रक्रिया होती है कि वह सांस छोड़ना चाहता है। यह आपको थोड़ा तनाव रहित करता है। जीवन की इस प्रक्रिया में अगर आप मृत्यु के विश्राम के बारे में जान लें, तो फिर जीवन पूरी तरह से एक सहज प्रक्रिया बन जाता है।

डर को भगाने की बात मत सोचिये