इस लेख में सद्‌गुरु भारतीय शास्त्रीय संगीत की दो बड़ी शाखाओं - हिंदुस्तानी और कर्नाटक संगीत के बीच ध्वनि और भावों में अंतर समझाते हुए कहते हैं कि अगर आप अपने भीतरी दरवाजे खोलने को तैयार हैं, तो संगीत आपके अंदर चमत्कारी चीजें कर सकती हैं।


सद्गुरुमानव तंत्र को ध्वनि कैसे प्रभावित करती है इसे समझने और जानने में मेरी गहरी रुचि रही है। मैंने अपनी हर यात्रा में इस पर अध्ययन किया है। ध्वनि को जितनी गहराई के साथ भारतीय संगीत में देखा गया है, उतना दुनिया में कहीं और नहीं देखा गया।

भारतीय शास्त्रीय संगीत की दो मुख्य शाखाएं हैं: दक्षिण का कर्नाटक संगीत और उत्‍तर भारत का हिंदुस्तानी संगीत। हिंदुस्तानी संगीत में ध्वनि का महत्व ज्यादा है, जबकि कर्नाटक संगीत में भावों का। ऐसा नहीं है कि कर्नाटक संगीत के जानकारों को ध्वनि का ज्ञान नहीं है, लेकिन इसमें भाव प्रधान रहता है। हो सकता है पहले ऐसा न हो, लेकिन पिछले चार सौ सालों में कर्नाटक संगीत ज्यादा भाव आधारित हो गया है। ऐसा दक्षिण भारत में चलाए गए भक्ति आंदोलन के कारण हुआ। आज के कर्नाटक संगीत की रचना मुख्य रूप से त्यागराज और पुरंदरा दास जैसे भक्तों द्वारा की गई और इसलिए इसमें इतना ज्यादा भाव लाया गया।

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शास्त्रीय संगीत में गहराई से जुड़े लोग स्वाभाविक रूप से ही ध्यान की अवस्था में रहते हैं। वे संतों जैसे हो जाते हैं!

दूसरी तरफ, हिंदुस्तानी संगीत में भावों से बचकर ध्वनि को उसी तरह इस्तेमाल किया गया, जैसे होना चाहिए। हिंदुस्तानी संगीत के सभी अनुभाग इसके तमाम तरह के इस्तेमाल के तरीकों को दिखाते हैं। अगर आप हिंदुस्तानी संगीत सिर्फ समझना चाहते हैं, पेश करना नहीं, तो भी आपको कम से कम एक से दो सालों की जरूरत होगी। तब ही आप इस लायक बन पाएंगे कि इसकी बारीकियों की सराहना कर सकें! इसमें ध्वनि का ऐसे इस्तेमाल किया गया है कि अगर आप अपने भीतरी दरवाजे खोलने को तैयार हैं, तो आपके साथ चमत्कारी चीजें हो सकते हैं।

ध्वनि का अर्थ क्या है? योग में हम कहते हैं "नाद ब्रह्म",  जिसका मतलब है ध्वनि ही ईश्वर है। ऐसा इसलिए क्योंकि इस अस्तित्व का आधार कंपन है, कंपन ही ध्वनि है। इसे हर इंसान महसूस कर सकता है। अगर आप अपने भीतर एक खास अवस्था में पहुंच जाएं, तो यह पूरा जगत सिर्फ ध्वनि बन जाता है। यह संगीत इसी तरह के अनुभव और समझ से बना है।

अगर आप शास्त्रीय संगीत से जुड़े लोगों को गौर से देखेंगे, तो आपको लगेगा कि वे स्वाभाविक रूप से ही ध्यान की अवस्था में रहते हैं। वे संतों जैसे हो जाते हैं। इसलिए इस संगीत को महज मनोरंजन के तौर पर नहीं, बल्कि एक आध्यात्मिक प्रक्रिया के साधन की तरह देखा गया। रागों का प्रयोग इंसान की समझ और अनुभव को विकसित करने के लिए किया गया।

इस अस्तित्व का आधार कंपन है, कंपन ही ध्वनि है। अगर आप अपने भीतर एक खास अवस्था में पहुंच जाएं, तो यह पूरा जगत सिर्फ ध्वनि बन जाता है। इसे हर इंसान महसूस कर सकता है।

संगीत के क्षेत्र में शुरुआत करने के लिए आपको शास्त्रीय संगीत पर समकालीन प्रकाशनों की मदद लेनी चाहिए। ऐसी किताबें शास्त्रीय संगीत से अनजान लोगों के लिए बनाई गईं हैं ताकि वे भी इस तरह के संगीत की कदर समझ सकें। उदाहरण के लिए "म्यूजिक टुडे" सीरीज में सुबह, दोपहर बाद, शाम और रात के समय गाए जाने वाले रागों का संग्रह है। कई जाने-माने संगीतकारों और कलाकारों के संगीत के संकलनों को भी आप खरीद सकते हैं। इनमें से कई कलाकार तो हमारे यहां योग केंद्र पर भी आ चुके हैं। ईशा योग केंद्र पर साल में दो बार हम संगीत कार्यक्रम का भी आयोजन करते हैं।