मनमोहक माखनचोर कृष्ण
बाल्यकाल से जुड़ी श्रीकृष्ण की ऐसी कई लीलाएं सुनने और पढऩे को मिलती हैं, जिन्हें पढ़कर या सुनकर कोई भी भावविभोर हो जाए। यह उनका जादू ही था कि उनकी शरारतों को देखने और फिर उन्हें क्षमा कर देने को लोग आतुर रहते थे।
बाल्यकाल से जुड़ी कृष्ण की ऐसी कई लीलाएं सुनने और पढऩे को मिलती हैं, जिन्हें पढ़कर या सुनकर कोई भी भावविभोर हो जाए। यह उनका जादू ही था कि उनकी शरारतों को देखने और फिर उन्हें क्षमा कर देने को लोग आतुर रहते थेः
Subscribe
बछड़े, गाय, चरवाहे और ऊपर टंगी मटकियां उनके बालपन से संबंधित हैं। ये सभी ग्रामीण संस्कृति के महत्वपूर्ण हिस्से हैं। आज भी भारत के गांवों में दही और मक्खन ऊंची टंगी मटकियों में ही रखा जाता है, ताकि ये चीजें जानवरों और बच्चों से बची रहें।
कृष्ण यह बात बड़ी मस्ती में कहते थे कि मैंने माखन चुराया। अगर मैं माखन नहीं चुराता तो गांववालों को आनंद ही नहीं आता। कृष्ण और उनके मित्र दूसरे लोगों की छतों की खपरैल खोलकर उनके घर में घुस जाते थे। मटकी ऊंचाई पर टंगी होने के कारण वे एक दूसरे के कंधों पर पैर रखकर उस तक पहुंचते थे। अगर मटकी बहुत ऊंचाई पर होती थी तो वे पत्थर मारकर उसमें छेद कर देते थे। इससे उसमें रखा दही या मक्खन टपकने लगता था, और वे उसके नीचे मुंह खोलकर खड़े हो जाते थे। कभी मटकी पूरी फूट जाती थी, तो वे जमीन से उठाकर ही उसे जल्दी-जल्दी खाना शुरू कर देते थे। वे इस मक्खन या दही को मित्रों के बीच बांट लेते थे, लेकिन फिर भी दही और मक्खन बच जाता था। दरअसल, कुछ ही बहादुर बच्चे होते थे, जो इस काम को अंजाम देते थे। ऐसे में वे बचा हुआ दही या मक्खन बंदरों को खिला दिया करते थे।
आगे जारी ...