सद्‌गुरुइस ब्लॉग में सद्‌गुरु मन के एक आयाम, मानस, के बारे में बता रहे हैं जो हर तरह की यादों का एक विशाल भण्डार है। वे बताते हैं कि मानस में मौजूद स्मृति के आठ प्रकार होते हैं। जानते हैं इन आठ प्रकारों के बारे में...

मन का अगला आयाम मानस कहलाता है। यह शरीर में किसी एक जगह नहीं होता, बल्कि पूरे शरीर में होता है। मानस यादों का एक विशाल भंडार है। आपके दिमाग में जितनी भी और जैसी भी यादें होंगी, आपके शरीर में उससे खरबों गुना ज्यादा यादें होंगी। आपको यह बिल्कुल याद नहीं होगा कि सात पीढ़ी पहले आपके पूर्वज कैसे दिखते थे, लेकिन उनकी नाक फिलहाल आपके चेहरे पर विराजमान है। आज से लाखों साल पहले आपके पूर्वज कैसे दिखते थे, आपके शरीर को अभी तक याद है। निश्चित तौर पर दिमाग में इतनी क्षमता नहीं है।

बुनियादी तौर पर स्मृति के आठ रूप होते हैं। हम इन्हें तात्विक स्मृति, परमाणविक स्मृति, क्रमिक विकास की स्मृति, जेनेटिक स्मृति, कार्मिक स्मृति, स्पष्ट स्मृति, अस्पष्ट स्मृति और संवेदी स्मृति के तौर पर बांटते हैं।

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हर मूल तत्व अपनी स्मृति के अनुसार कार्य करता है

तात्विक स्मृति का मतलब है कि तत्वों की अपनी स्मृति। अगर ऐसा न हो तो वे काम ही नहीं कर पाएंगे। वे अपनी अलग ही स्मृति विकसित कर लेते हैं, ताकि वे एक खास तरह से काम कर पाएं।

मानस एक विशालकाय स्मृतिकोष है, जो बुद्धि को चलाने के लिए लगातार खुराक दे रहा है।
वही पानी हमारे भीतर एक तरीके से काम करता है, एक चींटी में दूसरी तरह से काम करता है, आम के पेड़ में अलग तरीके से काम करता है, नीम के पेड़ में अलग तरीके से व्यवहार करता है। जबकि पानी वही एक सा होता है। तो तत्व अपनी याद्दाश्त को विकसित कर एक खास तरीके से काम करते हैं।

परमाणुओं की अपनी अलग स्मृति होती है। भले ही हर परमाणु में एक जैसे ही तीन सूक्ष्माणु होते हैं, लेकिन अलग-अलग परमाणुओं में वे अलग-अलग तरीके से काम करते हैं। यह परमाणु की स्मृति होती है। वे किसी चीज को कुछ खास तरीके से याद रखते हैं और फिर उस खास गुण को जारी रखते हैं।

कर्मों और संवेदनाओं से जुड़ी यादें

फिर क्रमिक विकास की स्मृति होती है। ऐसा कभी नहीं होता कि आप अपना खाना अगर कुत्ते को दे दें तो वह आपकी तरह बात करने लगे या अगर आप कुत्ते का खाना खा लें तो आप उसकी तरह भौंकने लगें।

अगर आप खुद को स्मृतियों से दूर कर लें, स्मृतियों के उस विशाल कोष से, जिन्हें आप शरीर व मन या मानस कहते हैं तो बुद्धि स्थिर हो जाएगी या पूरी तरह से खाली हो जाएगी।
ऐसी चीजें कभी नहीं होतीं, क्योंकि एक क्रमिक विकास की स्मृति होती है। इसी तरह से एक जेनेटिक स्मृति होती है। अगर आप अमेरिकी खाना खाते हैं, तो आप अमेरिकी नहीं बन जाते।
एक कार्मिक स्मृति होती है, जो आपने गौर किया होगा कि आपकी समझ से परे यह कितने अलग-अलग तरीके से काम करती है। यह अपने ही तरीके से काम करती है। एक संवेदी स्मृति भी होती है। अलग-अलग संवेदी अंग अलग-अलग चीजों को अलग-अलग तरीके से लेते हैं। मान लीजिए किसी जगह कोई घटना घटती है, हो सकता है कि वही एक घटना अलग-अलग संवेदी अंगों द्वारा अलग-अलग ढंग से ली जाए या फिर अलग-अलग लोगों के संवेदी अंगों द्वारा अलग-अलग तरीकों से ली गई हो। उसी के अनुसार स्मृति इकट्ठी होती है और फिर उसी हिसाब से यह मन में चलती है।

इसके अलावा, स्पष्ट स्मृति भी होती है, जिसका मतलब है सचेतन स्मृति, जिससे आप स्पष्टता से शब्दों में कह सकते हैं। फिर अस्पष्ट स्मृति भी होती है। यह स्मृति ऐसी है, जो लगभग रोज कौंधती है, लेकिन आप कभी इसका अंदाजा ही नहीं लगा पाते, क्योंकि यह सचेतन नहीं होती। तो इस तरह से कुल आठ तरह की स्मृतियां होती हैं।

शरीर और विचारों से परे जाने पर बुद्धि स्थिर हो जाएगी

तो मानस एक विशालकाय स्मृतिकोष है, जो बुद्धि को चलाने के लिए लगातार खुराक दे रहा है। अगर आप स्मृति को मिटा देंगे तो बुद्धि भ्रमित हो जाएगी, उसे समझ में ही नहीं आएगा कि वह क्या करे। अगर आपके भीतर कोई भी स्मृति नहीं होगी तो यह एक बेहद महत्वूपर्ण आयाम होगा। अगर आप अपने शरीर व अपने विचार प्रक्रिया की सीमाओं से परे निकल जाएं तो अचानक बुद्धि को समझ नहीं आएगा कि वह क्या करे, यह स्थिर हो जाएगी, क्योंकि बिना स्मृति के यह काम ही नहीं कर सकती। अगर बुद्धि में सभी तरह की स्मृतियों का लगातार प्रवाह बना रहता है तो यह चलती रहती है।
यह कंप्यूटर की तरह है। आप ने उसकी मेमोरी हटा दी तो वह महज एक खाली स्क्रीन भर रह जाएगा। तो अगर आप खुद को स्मृतियों से दूर कर लें, स्मृतियों के उस विशाल कोष से, जिन्हें आप शरीर व मन या मानस कहते हैं तो बुद्धि स्थिर हो जाएगी या पूरी तरह से खाली हो जाएगी।