विदुर की कहानी - महाभारत में धृतराष्ट्र, पांडू और विदुर का आगमन
विदुर दासी पुत्र थे। इसीलिए वे भीष्म पितामह से युद्ध कला नहीं सीख सकते थे। लेकिन वे बहुत बुद्धिमान और विद्वान युवक थे, और उन्हें शास्त्रों, वेदों और राजनीति का बहुत अच्छा ज्ञान था। उन्हीं की सलाह की वजह से पांडव कारागृह से बच पाए थे। इसी वजह से उनकी नीति, विदुर नीति बहुत महत्वपूर्ण मानी जाती थी।
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पिछले ब्लॉग में आपने पढ़ा कि महर्षि व्यास को कुरु वंश का कुल आगे बढाने के लिए बुलाया गया...आगे पढ़ते हैं महर्षि से उत्पन्न हुई तीन संतानों - धृतराष्ट्र, पांडू और विदुर के बारे में
फिर तय हो गया। सत्यवती ने युवा रानियों को इस बात के लिए मनाने की कोशिश की। उनके इंकार करने पर उसने राजमाता के अधिकार से उन्हें मजबूर किया। उसने व्यास को पहले अम्बिका के पास जाने के लिए कहा। व्यास अम्बिका के महल में गए। वह सीधे जंगल से आए थे – बालों में जटाएं बनी हुई थीं और गहरे काले रंग तथा चपटी नाक के साथ वह काफी भयानक लग रहे थे। उन्हें देखकर अम्बिका ने डर के मारे अपनी आंखें बंद कर लीं। जब उसने गर्भ धारण किया, तब उसकी आंखें बंद थीं, इसलिए बच्चा नेत्रहीन पैदा हुआ।
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सत्यवती एक बार फिर निराश हो गई, वह किसी नेत्रहीन को राजा कैसे बना सकती थी। उसने व्यास से कहा, ‘तुम्हें एक बार फिर अम्बिका के पास जाना चाहिए। उस बार वह तैयार नहीं थी।’ अम्बिका एक बार और वह सब नहीं झेलना चाहती थी।
फिर उसने छोटी रानी अम्बालिका को व्यास के साथ संसर्ग करने पर मजबूर किया। उसे बता दिया गया कि उसे आंखें बंद नहीं करनी हैं। जब उसने व्यास की ओर देखा, तो डर के मारे वह पीली पड़ गई। इसलिए उसके पुत्र पांडु की त्वचा का रंग पीला था – वह वर्णहीन पैदा हुआ। इसके अलावा, वह एक स्वस्थ युवक के रूप में बड़ा हुआ। मगर उन दिनों वर्णहीनता को अशुभ माना जाता था। वह एक महान योद्धा बना, मगर उसे राजा नहीं बनाया जा सकता था। उन दिनों यह माना जाता था कि वर्णहीनता एक बिमारी है और एक बिमार व्यक्ति राजा बनने के योग्य नहीं हो सकता था।
आखिरकार नेत्रहीन राजकुमार को ही राजा बना दिया गया। धृतराष्ट्र सिर्फ नाम का राजा था, सारा राज-काज पांडु के हाथ में था। उसने लड़ाइयां लड़ीं और अपने साम्राज्य को बढ़ाया। धृतराष्ट्र सिर्फ दृष्टि से ही नहीं, हर मामले में अंधा था।
धृतराष्ट्र ने गांधार की राजकुमारी गांधारी से विवाह किया। उसे शादी से पहले बताया नहीं गया था कि उसका भावी पति नेत्रहीन है। वह एक तरह से एक तुच्छ दुल्हन थी क्योंकि उसकी जन्मकुंडली में लिखा गया था कि जो भी उससे विवाह करेगा, वह तीन महीने के अंदर मर जाएगा। इस भविष्यवाणी के कारण, उसके परिवार ने उसका विवाह एक बकरे से करके उस बकरे की बलि दे दी। हालांकि वह एक बकरा था, मगर कानूनी रूप से इसे विवाह माना गया और अब वह एक विधवा थी।
जब गांधारी धृतराष्ट्र से विवाह करके हस्तिनापुर आई और उसे पता चला कि उसका पति नेत्रहीन है, तो उसने एक शपथ ली - ‘अगर मेरा पति दुनिया नहीं देख सकता, तो मैं अपनी आंखों से दुनिया का आनंद नहीं लेना चाहती। जब तक वह नहीं देख सकता, मैं भी नहीं देखूंगी।’ और उसने आंखों पर कपड़े की एक पट्टी बांध ली। उसने अपने पूरे जीवन इस पट्टी को पहन कर रखा और खुद को उस दृष्टि से वंचित रखा, जो उसके पास मौजूद थी। एक का ही अंधा होना काफी बुरा था, और अब वे दोनों अंधे हो चुके थे।
आगे जारी...