महाभारत कथा : हस्तिनापुर में मामा शकुनी का आगमन
महाभारत काल के सबसे चालबाज़ किरदारों में से एक हैं मामा शकुनी। आइये जानते हैं कि क्यों वे इतनी नफरत से भरे हुए थे, और वे कैसे हस्तिनापुर महल पहुंचे...
भीष्म ने शकुनी के परिवार को कैद किया
दुर्योधन ने भीम को खत्म करने के लिए षड़यंत्र रचना शुरू किया। इस बीच, उसके मामा शकुनि ने एक सलाहकार की हैसियत से महल में प्रवेश किया। भारत में शकुनि नाम छल का पर्याय बन चुका है। शकुनि गांधारी का भाई था। गांधारी और धृतराष्ट्र के विवाह के बाद, भीष्म को पता चला कि गांधारी एक तरह से एक विधवा है और लोगों में इस बात को लेकर कानाफूसी होने लगी। गांधारी का श्राप मिला हुआ था कि उसका पहले पति की विवाह के तीन माह बाद मृत्यु हो जाएगी, इसलिए उसका विवाह एक बकरे से कराकर उसकी कुर्बानी दे दी गई थी। कुरु वंश को धोखा दिए जाने की बात से भीष्म इतने क्रुद्ध हुए कि उन्होंने गांधारी के पिता और उसके सभी भाइयों को नजरबंद कर दिया। यह एक तरह से मेहमाननवाजी थी – जैसे होटल कैलिफोर्निया में होता है – मेहमान कभी जा नहीं सकते। उस युग का धर्म यह था कि वधू का परिवार उसके ससुराल में पहली बार आने पर तब तक नहीं जा सकता, जब तक उन्हें भोजन मिलता रहे।
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शकुनि – बदले के लिए जीवित
समय के साथ, भोजन की मात्रा कम से कम होती गई। अंत में वह इस सीमा तक पहुंच गई कि गांधारी के परिजनों का वजन कम होने लगा और वे कमजोर होने लगे। जैसे आजकल के लक्जरी होटलों में, आपके सामने ढेर सारे खाने के बर्तन होते हैं, मगर ढक्कन उठाने पर आप थाली में बहुत थोड़ा सा भोजन पाएंगे। उनकी भी ऐसी ही खातिरदारी की गई। कुछ समय बाद, गांधारी के पिता और भाई हड्डियों का ढांचा बन गए। यह स्पष्ट हो गया कि गांधारी के ससुरालवाले उन्हें भूखा मारना चाहते थे। मगर नियम से उन्हें भोजन दिया जा रहा था, इसलिए वे जा नहीं सकते थे, यह उनका धर्म था।
उन्होंने आपस में फैसला किया कि एक को छोड़कर बाकी सब आमरण उपवास करेंगे। वे अपना सारा भोजन शकुनि को दे देते, जो उनमें सबसे अधिक बुद्धिमान था ताकि वह जीवित रहकर इन लोगों से प्रतिशोध ले सके। कहा जाता है कि जब उसके भाई एक-एक करके मर गए, तो उसके पिता ने उसे मृत भाइयों के अंग खाने को कहा, ताकि वह खूब मजबूत बनकर उनका बदला ले सके। पिता के मरने पर उसे अपनी मातृभूमि में उनका कर्मकांड करना पड़ता। उस समय वह यहां से जा सकता था।
शकुनी ने अपने मृत भाइयों के अंग खाए
शकुनि ने वहां बैठकर अपने भाइयों का शरीर खोलकर उनके भीतरी अंग खाए। उसके पिता ने मृत्युशैय्या से उठकर बगल में रखी छड़ी उठाई और शकुनि के टखने पर इतनी जोर से मारा कि उसका टखना टूट गया और वह पीड़ा से कराह उठा। उसने जब वजह पूछी, तो उसके पिता ने कहा, ‘मैंने तुम्हारा टखना इसलिए तोड़ा ताकि तुम हमेशा लंगड़ा कर चलो और कभी न भूलो कि तुम्हें अपने भाई के अंग क्यों खिलाए गए। तुम्हारा एक-एक कदम तुम्हें याद दिलाएगा कि तुम्हें सिर्फ प्रतिशोध लेने के लिए जीवित रहना है।’ पिता की मृत्यु के बाद शकुनि कुरुवंश को नष्ट करने का प्रण करके वहां से गया। वह एक सलाहकार के रूप में लौटा और दुर्योधन ने उसे बुद्धिमान समझकर उसकी बहुत सराहना की और उससे मित्रता कर ली।
अपनी मृत्यु से पहले, शकुनि के पिता ने उससे कहा, ‘मेरे मरने के बाद, मेरी उंगलियों को काटकर उससे पासा बनाना। मैं अपनी तंत्र विद्या से ये तय करूंगा कि हर बार पासा तुम्हारे अनुसार ही अंक लाये। जुए के खेल में तुम्हें कोई नहीं हरा पाएगा। यह एक दिन तुम्हारे काम आएगा।’ इसलिए शकुनि ने अपने पिता की उंगलियां काटकर उनसे पासा बनाया। उसके पास किसी योद्धा का शारीरिक बल नहीं था, लेकिन इन पासों के बल पर वह दुनिया को जीतने का विश्वास रखता था।
शकुनि और दुर्योधन का षड़यंत्र
शकुनि को दुर्योधन में एक साथी मिला, जो नफरत और ईर्ष्या से भरा हुआ था। शकुनि लगातार इन भावनाओं को हवा देता रहा। दुर्योधन स्वयं बहुत धोखेबाज नहीं था, मगर वह गुस्सैल था। वह अक्सर, खास तौर पर अपने पिता के सामने अपने मन की बात बोल देता था। शकुनि ने उसे समझाया, ‘दुर्योधन, भगवान ने इंसान को बोलने की शक्ति जताने के लिए नहीं, बल्कि अपने मन की बात छिपाने के लिए दी है।’ शकुनि की मानसिकता यही थी। वह लगातार दुर्योधन के दिल में नफरत का जहर घोलता रहा ताकि वह नफरत दुर्योधन की नस-नस तक पहुंच जाए। फिर उसने दुर्योधन से कहा, ‘अगर तुम्हारा कोई दुश्मन है, तो उसे चिकोटी काटने, गाली देने या उस पर थूकने का कोई फायदा नहीं है – इससे वह और मजबूत होगा। ऐसा सिर्फ एक मूर्ख ही करेगा। जैसे ही तुम्हें पता चले कि कोई तुम्हारा दुश्मन है, उसे मार डालो।’ फिर दुर्योधन ने उससे पूछा, ‘मैं अपने चचेरे भाई को महल में कैसे मार सकता हूं?’ शकुनि ने उसे कई चालें सुझाईं।