लिंग भैरवी: एक दैवीय यंत्र
ईशा आश्रम में ध्यानलिंग के पास ही स्थित हैं लिंग भैरवी। लोगों के मन में अकसर सवाल उठता है कि आखिर देवी का स्वरुप लिंग भैरवी के रूप में ही क्यों स्थापित किया गया है? आज के स्पॉट में सद्गुरु इस सवाल का जवाब दे रहे हैं और साथ ही बता रहे हैं कि हर चीज के लिए ज्यामिती कितनी महत्वपूर्ण है!
ईशा आश्रम में ध्यानलिंग के पास ही स्थित हैं लिंग भैरवी। लोगों के मन में अकसर सवाल उठता है कि आखिर देवी का स्वरुप लिंग भैरवी के रूप में ही क्यों स्थापित किया गया है? आज के स्पॉट में सद्गुरु इस सवाल का जवाब दे रहे हैं और साथ ही बता रहे हैं कि हर चीज के लिए ज्यामिती कितनी महत्वपूर्ण है!
लोग अकसर मुझसे पूछते हैं, ‘सद्गुरु आपने लिंग भैरवी को ही क्यों चुना, किसी दूसरी देवी को क्यों नही चुना?’ तो मैं बता दूं कि हमने उन्हें चुना नहीं है, बल्कि हमने उन्हें गढ़ा है, उन्हें जन्म दिया है, उन्हें ऐसे प्रतिष्ठित किया है कि वह एक खास तरीके से काम कर सकें। फिर लोग कहेंगे- ‘ओहो सद्गुरु, अगर आपने उन्हें बनाया है तो इसका मतलब है कि वह असली या वास्तविक नहीं हैं!’
ऐसी बहुत सी चीजें हैं, जिन्हें हम बनाते हैं और वो असली होती हैं। हम एक पौधे को रोपते हैं जो पेड़ बन जाता है तो इसका क्या मतलब हुआ कि वह पेड़ वास्तविक नहीं है? आपके माता-पिता ने आपको बनाया तो क्या आप वास्तविक नहीं हैं? यहां तक कि नर्जीव चीजें भी वास्तविक होती हैं।
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अब आपने मोटरसाइकिल जैसी चीज बनाई, तो वह भी तो वास्तविक है। मोटरसाइकिल का इंजन धातु का होता है, लेकिन जब यह चलता है और इसमें जान आती है तो यह ऐसे-ऐसे काम कर जाता है, जो आप नहीं कर सकते। इसी वजह से हम मशीनें बनाते हैं क्योंकि ये वो सब कर सकती हैं, जो आप और हम नहीं कर सकते।
लिंग भैरवी अपने आप में एक यंत्र हैं। यंत्र का मतलब ही मशीन होता है। आप भी अपने आप में एक तरह की मशीन हैं, लेकिन भैरवी को इस तरह से तैयार किया गया है जैसा आप नहीं हो सकते, खास कर जीवन के कुछ विशेष आयामों में। ऐसा इसलिए है क्योंकि उन पर भौतिक शरीर का बोझ नहीं है। न ही उन्हें खुद को पोषित करने की चिंता है। वह अपने आप में अद्भुत हैं। वैसे हर जीवन अपने आप में एक अद्भुत घटना है। एक पेड़ भी अपने आप में एक अद्भुत घटना है- यह हर वक्त काम करता रहता है। वैलिंगिरी पर्वत मोटे तौर पर बेजान चीज है, लेकिन यह पर्वत कई शानदार चीजें कर रहा है। इसी तरह एक महासागर भी देखा जाए तो सिर्फ पानी ही तो है, लेकिन यह भी कई अद्भुत चीजें कर रहा है।
इसी तरह से कुरदत में तमाम तरह की विशिष्टताएं या अद्भुत चीजें छिपी हुई हैं, इनमें से कुछ को तो खुद कुदरत ने रचा है तो कुछ को इंसान ने बनाया है। अगर हम भी कोई चीज बनाते हैं तो उसकी प्रक्रिया कुदरती प्रक्रिया से कोई बहुत अलग नहीं होती है। दरअसल, इसकी वजह है कि हम जो भी करते हैं, वह कुदरत के नियमों के भीतर रह कर ही करते हैं, न उससे कुछ ज्यादा, न कम। एक आदमी को गुरुत्वाकर्षण एक बंधन लग सकता है, जबकि किसी दूसरे के लिए यही चीज एक बड़ी संभावना बन सकती है। अगर आप फिलहाल बिना पंख के, हवाई जहान या किसी और मशीन के सहारे उड़ना चाहें तो आपको महसूस होगा कि यह गुरुत्वाकर्षण हमें नीचे खींचकर रोके हुए है। लेकिन दूसरी तरफ यही बल इस धरती को टिकाए हुए है और बाकी ग्रहों को आपस में बांधे हुए है। तो हम जो कुछ भी करते हैं, वो सब कुदरत के नियमों के दायरे में ही करते हैं। कुदरत के ये नियम बंधन न होकर एक खास तरह के खेल हैं।
इसी तरह से देवी का अपना एक रूप है, उनका एक अपना अलग ज्यामितीय पैटर्न है और अपना एक अलग गणित है। उनकी अपनी एक अलग ध्वनि भी है। हम लोग संगीत का एक ऐसा वाद्य यंत्र बनाना चाहते हैं, जो ऐसी ध्वनि निकाल सके जो लिंग भैरवी के अनुरूप हो। उनके मंदिर में जो मंत्र और स्तुति होती है, वे उनकी ध्वनि से मेल मिला कर तैयार की गई है, लेकिन ये मंत्र उनकी ज्यामिति के हिसाब से ज्यादा जुड़े हुए हैं। हम जानते हैं कि उनकी ध्वनि क्या है, और हमने एक मिलते-जुलते हल्के साज के साथ उस ध्वनि को मिलाने की कोशिश भी की थी, लेकिन बात नहीं बनी। हालांकि इसे लेकर मैंने कई लोगों के साथ चर्चा की, उनमें से कुछ ने सुझाव दिया कि हम उस ध्वनि को इलेक्ट्रॉनिक उपकरण की मदद से तैयार कर सकते हैं, लेकिन मैं चाहता हूं कि तारों के झंकार से इसकी गूंज मिले।
इस अस्तित्व की हर चीज, हर भौतिक आकृति सिर्फ एक अलग तरह की ज्यामिती है। कोई भी चीज अच्छे से काम कर रही है या नहीं, यह मूल रूप से उस वस्तु की बनावट की ज्यामितीय गुणवत्ता पर निर्भर करता है। हठ योग की प्रक्रिया का पूरा मकसद ही यही है कि आपकी ज्यामिति को इस तरह से सुधारा जाए कि आपकी शरीर रूपी यह मशीन बिना किसी घर्षण या रुकावट के अपने भीतर ठीक तरह से काम कर सके। अगर आपके भीतर कोई रुकावट नहीं है तो फिर आपको कोई समस्या नहीं रहती और न ही तब आप कोई समस्या रहते हैं। लेकिन अगर आपका यहां अस्तित्व ही एक मुद्दा या समस्या है तो फिर चेतना की परम अवस्था तक पहुंचने का सवाल ही कहां उठता है? ऐसे में आपकी चेतनता का विकास ही नहीं हो सकता। केवल जब आपके भीतर की हर चीज सहज होगी, तभी आप किसी दिशा में आगे बढ़ सकते हैं। जब आप खुद कोई समस्या नहीं रह जाते तो आप किसी भी चीज को पाने की कोशिश कर सकते हैं। या फिर आप आंखें बंद करके बैठ जाइए - ये दोनों ही विकल्प आपके पास हैं।
वैसे, अति सक्रियता और निश्चलता एक ही संभावना के दो अलग-अलग पहलू हैं।