अर्जुन से सीखें लक्ष्य पाने की तरकीब
हम सब अपने जीवन में कुछ पाना, कुछ बनना चाहते हैं, लेकिन सबको अपना लक्ष्य नहीं मिल पाता है। क्या है कारण, और क्या है उपाय...?
हम सब अपने जीवन में कुछ पाना, कुछ बनना चाहते हैं, लेकिन सबको अपना लक्ष्य नहीं मिल पाता है। क्या है कारण , और क्या है उपाय?
द्रोणाचार्य को धनुर्विद्या का सर्वश्रेष्ठ गुरु माना जाता था। धनुर्विद्या ही क्या, हर तरह के हथियार चलाने के तरीके उन्हें आते थे। कौरव और पांडव उनके शिष्य थे। इन 105 भाइयों में अर्जुन उनके सबसे प्रिय शिष्य थे, और इसीलिए उन्होंने अर्जुन को ही सबसे ज्यादा सिखाया। वह जो कुछ भी जानते थे, वह सब कुछ उन्होंने सिर्फ अर्जुन को बताया। इसके पीछे वजह यह नहीं थी कि द्रोणाचार्य पक्षपात करते थे। इसकी सीधी सी वजह यह थी कि अर्जुन के अलावा किसी और में वे गुण ही नहीं थे,कि उनकी दी गई सारी विद्या को ग्रहण कर पाते।
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एक दिन की बात है। सभी भाई कक्षा में थे। द्रोणाचार्य धनुर्विद्या के बारे में बता रहे थे। व्यावहारिक ज्ञान देने के लिए वह सभी भाइयों को बाहर ले गए। एक पेड़ की सबसे ऊंची शाखा पर उन्होंने एक खिलौने वाला तोता रख दिया। उन्होंने अपने हर शिष्य से कहा कि तोते की गर्दन में एक निशान है। उस निशान पर निशाना लगाओ। धनुष तान लेने के बाद शिष्यों को गुरु के अगले आदेश का इंतजार करना था। उनके 'तीर चलाओ’ कहने पर ही उन्हें तीर चलाना था। गुरु ने उन्हें कुछ मिनटों के लिए इंतजार करते रहने दिया। ज्यादातर लोग एक ही स्थान पर कुछ पल से ज्यादा ध्यान केंद्रित नहीं कर पाते। क्या आपने कभी अपने बारे में इस पर गौर किया है? बहुत से लोग ऐसे होते हैं, जो किसी भी चीज पर अपना ध्यान केंद्रित नहीं कर पाते। खैर, द्रोणाचार्य ने धनुष ताने अपने शिष्यों को कुछ मिनट तक इंतजार करते रहने दिया। धनुष को तानकर रखना और किसी चीज पर ध्यान केंद्रित करना शारीरिक तौर पर थकाऊ काम होता है। कुछ मिनट के बाद द्रोणाचार्य ने एक-एक कर सभी शिष्यों से पूछा कि तुम्हें क्या नजर आ रहा है? शिष्य पेड़ के पत्तों, फल, फूल, पक्षी और यहां तक कि आकाश के बारे में बखान करने लगे। जब अर्जुन की बारी आई, तो द्रोणाचार्य ने वही सवाल दोहराया, 'तुम्हें क्या दिखाई दे रहा है, अर्जुन?’
अर्जुन ने कहा, 'तोते की गर्दन पर बस एक निशान गुरुदेव, और कुछ भी नहीं।’
ऐसे ही लोग कुछ हासिल करते हैं। जो लोग बाकी भाइयों की तरह देखते हैं, वे कहां पहुंचते हैं? कहीं नहीं। अगर कहीं पहुंचते भी हैं, तो वह महज संयोग होता है। उनकी उपलब्धि अपनी खुद की वजह से नहीं होती, बल्कि इस जगत में मौजूद तमाम दूसरी शक्तियां उन्हें आगे ले जाती हैं। लेकिन अर्जुन की उपलब्धि सिर्फ अपनी वजह से होगी, क्योंकि वह जानता है कि वह कहां है। आपको भी अर्जुन की तरह ही होना चाहिए। अपना ध्यान लक्ष्य पर केंद्रित कीजिए। फिर जो होना होगा, हो जाएगा। जो किसी और के साथ होना है, आवश्यक नहीं है कि वह आपके साथ भी हो, लेकिन जो आपके साथ होना है, वह जरूर होगा। इससे कोई इनकार नहीं कर सकता। अगर आप इस बात को लेकर बहुत ज्यादा चिंतित हैं कि किसी और के साथ क्या हो रहा है, तो इससे वक्त बर्बाद होता है, जीवन बर्बाद होता है।