क्रोधी शैब्या और कृष्ण : भाग 2

अब तक आपने पढ़ा: शैब्या करावीरपुर के राजा श्रीगला वासुदेव की भतीजी थी। श्रीगला वासुदेव, जो खुद को भगवान समझता था, उसका वध करके कृष्ण ने उसके बेटे सहदेव को राजा बना दिया। सहदेव चुंकि अभी छोटा था, इसलिए कृष्ण उसकी मदद के लिए थोड़े दिनों तक वहीं रूक गए। उधर श्रीगला के वध से शैब्या क्रोध में जल रही थी और कृष्ण से बदले की ताक में थी।
अब आगे: कृष्ण का एक खास मित्र श्वेतकेतु श्रीगला वासुदेव के राज्य में मार्शल आर्ट का गुरु था। गुरु संदीपनी के आश्रम में वह उनका सहपाठी भी रहा था। श्वेतकेतु शैब्या से बहुत प्रेम करता था, लेकिन शैब्या बहुत गुस्सैल स्वभाव की थी, इसलिए वह कभी उसे यह जताने की हिम्मत नहीं कर पाया। इधर कृष्ण के सहायक और वफादार उद्धव, जो हर समय उनके साथ रहते थे, वह भी शैब्या से प्रेम करने लगे।
कृष्ण को जब यह बात पता चली, तो उन्होंने श्वेतकेतु, उद्धव और शैब्या के बीच चल रहे इस नाटक का खूब लुत्फ उठाया। एक तरफ अपने लिए शैब्या की नफरत और उसकी जानलेवा मंशा और दूसरी तरफ शैब्या के लिए उन दोनों का अपना दिल निकाल कर रख देना, कृष्ण ने इन सब बातों का खूब आनंद लिया और आग को हवा देने का काम भी किया। फिर उद्धव ने कृष्ण से अपने दिल की बात कही - 'मैं मर रहा हूं और आपको मजे आ रहे हैं। इस युवती को पाने की मेरी बड़ी इच्छा है। मैं नहीं जानता कि मैं आगे क्या करूंगा, लेकिन मैं यह जानता हूं कि मेरा दोस्त, मेरा भाई भी उससे प्यार करता है, इसलिए मैं उसकी जिंदगी भी बर्बाद नहीं करना चाहता। मैं क्या करूं? अब केवल एक ही रास्ता है कि मैं अपनी जिंदगी ही खत्म कर लूं। मैं न तो अपने दोस्त को दुखी कर सकता हूं और न ही उस स्त्री को भूल सकता हूं।' उद्धव की सारी बात सुनकर कृष्ण बोले - 'तुम जानना चाहोगे कि औरतों के प्रति मेरा रवैया कैसा रहता है? कोई भी महिला जो मेरे लिए किसी भी तरह से मायने रखती हो, उसके लिए मैं सबसे पहले प्रेम की वेदी बनाता हूं। अगर वह बहुत तेज स्वभाव की है, तो उसके प्रति एक अलग रवैया होगा और यदि वह किसी और स्वभाव की है, तो फिर उसे दूसरे तरीके से संभालता हूं। फिर वह मेरी मां, बहन, पत्नी या प्रेमिका कुछ भी बन सकती है। यह उसकी मर्जी है कि वह मुझसे कैसे जुडऩा चाहती है। तुम भी ऐसा ही करो। शैब्या के लिए एक वेदी बना दो। श्वेतकेतु भी ऐसा ही करे और दूसरे व्यक्तियों को भी ऐसा ही करने दो। यह उस पर छोड़ दो कि वह तुमसे कैसा संबंध रखना चाहती है।'
कृष्ण की ऐसी बातें सुनकर उद्धव बोले - 'यह तो बहुत मुश्किल है। अगर मैं ऐसा कर भी लेता हूं, तो भी मैं उसको पा तो नहीं सकता।' इस पर कृष्ण ने कहा, 'तुम्हारे साथ यही समस्या है। वह कोई चीज नहीं है, जिसे तुम पाना चाहते हो। वह कोई ऐसा सामान भी नहीं है, जिस पर तुम अपना कब्जा कर सको। अगर तुम उसके साथ जबरदस्ती करते हो, तो हो सकता है कि तुम केवल उसका शरीर ही पा सको। लेकिन तुम कभी भी एक जीवन का दूसरे जीवन के साथ होने का आनंद नहीं ले पाओगे। तुम असली चीज ही खो दोगे। अगर तुम उसे सडक़ के किनारे जलने वाली आग समझ रहे हो, जो कुछ दिनों के लिए तुम्हें गर्म रख सके, तो यह अधर्म है और गलत भी।
Subscribe
कृष्ण की बात सुनकर उद्धव बोले - 'आप जो कुछ कह रहे हैं, वह काफी मुश्किल है।' कृष्ण ने कहा - 'हां धर्म के साथ जीना मुश्किल है। यह जीवन आसान नहीं है, फिर भी इस जिंदगी को धर्म के साथ जीना बहुत संतोषजनक होता है। सबसे अच्छी बात यह है कि अगर तुम इस तरह का जीवन जीते हो, तो तुम्हें तपिश देने के लिए न जाने कितनी ही अग्नि मिल जाएंगी। तुम हर तरह से इस जीवन का आनंद उठा सकते हो। अगर तुम उस पर काबू पाने की कोशिश करते हो, तो तुम्हें उसके शरीर के अलावा कुछ भी हासिल नहीं होगा।'
लेकिन उद्धव तो एक आसान सा तरीका चाहता थे कि 'उसे उठाओ और ले जाओ।'
उद्धव के साथ सारी रात बात करने के बाद आखिरकार कृष्ण ने उन्हें अपनी तरफ कर लिया और उद्धव ने इंतजार करने का वादा कर दिया। शैब्या से दूर रहने के लिए उद्धव ने संन्यास लेने का निश्चय किया और कृष्ण से कहा, 'मैं हिमालय में बद्रीनाथ जा रहा हूं। न तो मैं अपने दिमाग से उस नारी को निकाल सकता हूं और न ही अपने मित्र को चोट पहुंचाना चाहता हूं, इसलिए मैं यहां से चला जाऊंगा। मुझे ऐसी भौतिकता से भरी जिंदगी नहीं चाहिए और न ही मैं किसी और युवती की तरफ देखना चाहता हूं।'
उनकी ऐसी बातें सुनकर कृष्ण बोले - 'नारी से दूर रहते हुए एक स्वस्थ जिंदगी जीना हर किसी के बस की बात नहीं है। अगर तुम ऐसा कर सकते हो, तो इससे बेहतर तो कुछ हो ही नहीं सकता, ऐसा व्यक्ति एक योगी होता है, सच्चा ब्रह्मचारी होता है। लेकिन अगर कोई व्यक्ति स्त्री से भी दूर रहता है और जीवन से भी किनारा कर लेता है तो यह उसके लिए अच्छा नहीं होता, क्योंकि वह दोनों लोकों से हाथ धो बैठता है। अगर तुम बद्रीनाथ जाओगे, तो भी शैब्या तुम्हारे दिमाग से नहीं जाएगी। वह वहां भी दिन-रात तुम्हारा पीछा करेगी। तुम्हें इसका हल यहीं निकालना होगा और भागने का तो कोई सवाल ही नहीं उठता।'
कृष्ण के इतना समझाने के बाद आखिरकार उद्धव ने कसम खाई कि मैं एक वेदी बनाकर इंतजार करूंगा। वह जो भी चाहती है, वह हो जाए। इस स्त्री को पाने की चाह में मैं अपने दोस्त की पीठ में छुरा भोंकना चाहता था, लेकिन अब मैं यह सुनिश्चित करूंगा कि मैं अपने दोस्त के साथ प्रेममय रिश्ता रखूं। मैं उस स्त्री से दूर रहूंगा, लेकिन उसका इंतजार करूंगा।
अगले अंक में जारी. . .
आगे पढ़िए : तो क्या उद्धव शैब्या को पा सके? किसकी हुई शैब्या – श्वेतकेतु की या उद्धव की? और क्या शैब्या श्रीगला के वध का बदला ले सकी कृष्ण से?