कृष्ण का ब्रह्मचर्य और उनकी लीला: एक अन्तर्विरोध
कई लोगों के मन में यह सवाल उठता है कि गोपियों के साथ रास लीला करने के बाद भी कृष्ण को एक ब्रह्मचारी के रूप में क्यों जाना जाता है। क्या यह दोनों बातें आपस में विरोधी हैं? ब्रह्मचर्य शब्द के क्या मायने हैं..?
कई लोगों के मन में यह सवाल उठता है कि गोपियों के साथ रास लीला करने के बाद भी कृष्ण को एक ब्रह्मचारी के रूप में क्यों जाना जाता है। क्या यह दोनों बातें आपस में विरोधी हैं? ब्रह्मचर्य शब्द के क्या मायने हैं..?
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प्रश्न:
सद्गुरु, अक्सर यह सवाल उठता है कि जब कृष्ण इतनी सारी गोपियों के साथ रासलीला करते थे, तो उनके ब्रह्मचर्य पालन करने का क्या मतलब है ? इस बारे में हमें समझाएं।
सद्गुरु:
कृष्ण हमेशा से ब्रह्मचारी थे। ब्रह्मचर्य का अर्थ होता है ब्रह्म या ईश्वर के रास्ते पर चलना। भले ही आप किसी भी संस्कृति या धर्म से ताल्लुक रखते हों, आपको हमेशा यही बताया गया, और आपका विवेक भी आपको यही बताता है, कि अगर ईश्वरीय-सत्ता जैसा कुछ है - तो या तो यह सर्वव्यापी है या फिर वह है ही नहीं। ब्रह्मचर्य का अर्थ है - सबको अपने भीतर समाहित करने का रास्ता।
कृष्ण में शुरू से ही सब कुछ अपने भीतर समाहित कर लेने का गुण था। बालपन में अपनी मां को जब यह दिखाने के लिए उन्होंने मुंह खोला था कि वह मिट्टी नहीं खा रहे हैं (उनकी मां ने उनके मुंह में सारा ब्रह्मांड देखा था) उस समय भी उन्होंने अपने अंदर सब कुछ समाया हुआ था। जब वे गोपियों के साथ नाचते थे, तब भी सब कुछ उनमें ही समाहित था। उनकी और उन गोपियों की यौवनावस्था के कारण कुछ चीजें हुईं, लेकिन उन्होंने इसे कभी अपने सुख के लिए इस्तेमाल नहीं किया। और न ही ऐसे ख्याल उनके मन में कभी आए। उन्होंने कहा भी है - ’मैं हमेशा से ही ब्रह्मचारी हूं और हमेशा सदमार्ग पर ही चला हूं। अब मैंने बस एक औपचारिक कदम उठाया है। अब कुछ भी मुझसे अलग नहीं है। बस परिस्थितियां बदली है।’ कृष्ण स्त्रियों के बड़े रसिक थे, इसे लेकर उनके बारे में कई कहानियां प्रचलित हैं, लेकिन यह सब तब हुआ जब वे सोलह साल से छोटे थे। सोलह साल का होने के बाद वे पूर्ण अनुशासित जीवन जीने लगे। वह जहां भी जाते, स्त्रियां उनके लिए पागल हो उठती थीं, लेकिन उन्होंने कभी भी अपने सुख के लिए किसी स्त्री का फायदा नहीं उठाया, एक बार भी नहीं। इसी को ब्रह्मचारी कहते हैं।