यहाँ सद्‌गुरु जीवन और मृत्यु के मूल स्वभाव के बारे में बताते हुए समझा रहे हैं कि किस तरह ये दोनों एक ही हैं। मृत्यु के परे क्या है, ये जानने के लिये प्रज्ञा की ज़रूरत है, जिसका मतलब है कि किसी चीज़ के बारे में बिना सोचे-विचारे ही हम उसे जानते हैं।

सद्गुरु: : जीवन के बहुत से पहलू हैं। उसमें जन्म है, बचपन है, जवानी है और बुढ़ापा भी। उसमें प्रेम, कोमलता, मिठास और कड़वाहट भी है। सफलता की खुशी है, कुछ पाने का संतोष है, दर्द भी है और आनंद भी। अगर आपने अपने मन को बोध के एक ठीक स्तर पर रखा है तो ये सब बातें आपकी समझ में आ सकती हैं। पर जीवन को समझाने वाला जो सबसे महत्त्वपूर्ण पहलू है -मृत्यु, वो किसी भी मन की पकड़ के बाहर है - चाहे आप अपने आपको कितना ही बुद्धिमान, होशियार या बड़ा बुद्धिजीवी मानते हों। चूंकि हम मरणशील हैं, मरने वाले हैं, इसीलिये जीवन उस तरह से चल रहा है जैसे वो चल रहा है। अगर हम मरने वाले नहीं होते तो न कोई बचपन  होता, न जवानी और न बुढ़ापा। तब हम ये सवाल भी ना उठा पाते कि जन्म क्या होता है?

मृत्यु, जीवन का आधार है। अगर आप मृत्यु को नहीं समझते तो अभी जीवन को नहीं जान सकेंगे, न ही उसे संभाल पायेंगे क्योंकि जीवन और मृत्यु साँस लेने और छोड़ने की तरह हैं। वे बिना अलग हुए, साथ साथ रहते हैं। आध्यात्मिक प्रक्रिया तभी शुरू होती है जब आप मृत्यु का सामना करते हैं - या तो खुद की या फिर किसी ऐसे व्यक्ति की जो आपको प्रिय है और जिसके बिना जीने की बात आप नहीं सोच सकते। जब मृत्यु आ रही हो, या हो गयी हो तब ही अधिकतर लोगों के मन में ये सवाल आता है, "ये सब क्या है, और इसके बाद क्या होगा"? जब तक केवल जीवन ही सत्य लगता है तब तक आपको यह विश्वास नहीं होता कि ये बस ऐसे ही खत्म होने वाला है। जब मृत्यु पास आ जाती है तभी मन ये सोचना शुरू करता है कि कुछ और भी है, जो इससे ज्यादा है। पर मन चाहे कितना भी सोच ले, ये वास्तव में जानता कुछ नहीं है क्योंकि मन सिर्फ उसी डेटा के आधार पर काम करता है जो वो पहले से इकठ्ठा कर चुका है। मन का मृत्यु के साथ कोई वास्ता नहीं पड़ा है तो वो मृत्यु के बारे में नहीं जानता, क्योंकि इसके पास उसके बारे में कोई आधारभूत जानकारी नहीं है - सिर्फ कुछ गप्पबाजी है।

जीवन और मृत्यु जैसी कोई चीज़ नहीं है। न तो जीवन है, न ही मृत्यु - ये बस इन सब चीजों का खेल है।

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आपने ऐसी गप्पें सुनी होंगी कि कैसे जब आप मर जायेंगे तो आप जा कर भगवान की गोद में बैठेंगे। अगर ऐसा है तो आपको आज ही मर जाना चाहिये । अगर आपको ऐसा विशेष अधिकार मिलने वाला हो तो पता नहीं आप इसे टाल क्यों रहे हैं?आपने स्वर्ग और नर्क के बारे में भी गप्पें सुनी होंगी। देवदूतों और बाकी चीजों के बारे में भी गपशप सुनी हैं, पर कोई पक्की जानकारी नहीं है। ये सोचने में समय बर्बाद मत कीजिये कि मृत्यु के बाद क्या होता है, क्योंकि वो आपके मन की सीमा के बाहर की बात है।

जानने का एक ही तरीका है और वो प्रज्ञा की मदद से है, जैसा हम इसे भारतीय भाषाओं में कहते हैं। अंग्रेज़ी में हम कहेंगे एवेयरनेस यानि जागरूकता। पर इस शब्द को उसके सामान्य अर्थ में मत लीजिये। अगर आप चेतन हैं, जागरूक हैं तो आपके पास जानने का एक तरीका है, और वह है - बिना उसके बारे में सोच-विचार किये या बिना उसके बारे में कोई जानकारी इकट्ठी किये। अगर आप अपने आसपास के जीवन को ध्यान से देखें, तो आप देखेंगे कि ऐसी बहुत सी चीजें हैं जिनके बारे में बिना सोचे हर प्राणी जानता है। सही बात ये है कि अगर आपको इन बातों के बारे में सोचना पड़ता तो आपको ये भी पता नहीं चलता कि साँस कैसे लें? ये बस होता है, इसमें आपकी कोई बुद्धि नहीं लगी है, ये सृष्टिकर्ता की बुद्धि है। उसने आपको अगर अपने शरीर - जो इतनी जटिल मशीनरी है - का प्रबंधन करने दिया होता तो बहुत बड़ी आफत आ जाती।

बहुत सारी ऐसी चीजें होती हैं जिसमें आपकी सहायता, आपकी समझ, और आपके विचार नहीं लगते। प्रज्ञा विचारों से परे है। प्रज्ञा ही सृष्टि का स्रोत है। अगर आप उस तक पहुँच जाते हैं तो आप जीवन और मृत्यु के बीच की सीमारेखा को पार कर सकते हैं। वास्तव में देखें तो कोई सीमारेखा है ही नहीं - इस समय भी आप जी भी रहे हैं और मर भी रहे हैं। सामाजिक स्तर पर, लोगों की सीमित समझ और उनके सीमित अनुभवों में, कोई आज जीवित हो सकता है और कल मरा हुआ हो सकता है। पर जीवन के संदर्भ में, अस्तित्व की प्रक्रिया के संदर्भ में, जीना और मरना जैसा कुछ है ही नहीं। ये सब बस लीला है - एक खेल।

जब हम कहते हैं कि ये सब एक दिव्य लीला है, तो इसका मतलब ये नहीं है कि दिव्यता दूसरों को कोई तकलीफ दे कर खुश होने वाली शक्ति है, जो आपके जीवन के साथ खेल रही है। हम इसे लीला इसलिये कहते हैं क्योंकि सभी चीजें एक दूसरे के साथ आपस में गुँथी हुई हैं। अस्तित्व में आप बचपन, जवानी, अधेड़ उम्र और बुढ़ापे को अलग-अलग नहीं कर सकते। ये सब एक ही जाल में एक दूसरे से जुड़े हुए हैं। आप जिसे इंसान कहते हैं और आप जिसे ब्रह्मांड कहते हैं, उनको एक दूसरे से अलग नहीं किया जा सकता। आप जिसे परमाणु कहते हैं और जिसे विराट कहते हैं, उनको भी एक दूसरे से अलग नहीं किया जा सकता। इस अर्थ में ये लीला ही है।

पर जब आप दो चीजों के बीच सीमारेखा बना देते हैं तो फिर कोई लीला नहीं रह जाती। आप जब यहाँ बैठे हैं तो साँस लेने, छोड़ने की प्रक्रिया आपके और पेड़ के बीच खेल रही है। आप इसे अलग नहीं कर सकते कि, "मैं अपनी साँस लूँगा, उसे अपनी साँस लेने दो"। बहुत से घरों में ये हो रहा है, "मैं अपना काम कर रहा हूँ, तुम अपना काम करो"। जब आप लीला में रुकावट लाना शुरू कर देते हैं तो जीवन आपके हाथों में से फिसल जायेगा।

जीवन और मृत्यु का स्वभाव क्या है, ये जानने के लिये सभी तरह की चीजें की गयी हैं। पर आप इसके बारे में सोच कर या प्रयोग कर के इसको समझ नहीं सकते। सिर्फ अनुभव से ही आप इसे समझ सकते हैं। जब भी लोग मृत्यु और 'मृत्यु के बाद क्या होता है' के बारे में मुझसे सवाल करते हैं तो मैं उन्हें याद दिलाता हूँ कि इसे अनुभव से जानना ही सबसे अच्छा है। मेरा मतलब ये नहीं है कि उन्हें मर जाना चाहिये। मेरा कहना ये है कि आपको अपने अंदर के जीवन के बारे में जानना चाहिये। आप अगर सिर्फ अपने शरीर का अनुभव कर रहे हैं तो मैं चाहे कुछ भी कहूँ, आप उलटा ही समझेंगे। अगर आपके जीवन का अनुभव केवल आपके मानसिक और शारीरिक ढाँचे तक ही सीमित है तो आप इस आयाम तक नहीं पहुँच सकते। मृत्यु और उसके बाद जो कुछ भी है, वो कोई ऐसे रहस्य नहीं हैं जो किसी स्वर्ग या नर्क में छिपे हुए हैं - वे यहीं पर हैं, अभी हैं। बात बस ये है कि अधिकतर मनुष्य इस ओर पर्याप्त ध्यान नहीं देते क्योंकि वे बाकी चीजों के साथ बहुत व्यस्त रहते हैं।

उनके लिये उनका पेशा, उनका कारोबार उनके जीवन से भी ज्यादा महत्वपूर्ण है। उनके लिये उनका प्यार संबंध उनके जीवन से भी ज्यादा महत्वपूर्ण है। उनके पड़ोस के किसी व्यक्ति के साथ उनकी छोटी सी समस्या उनके जीवन से भी ज्यादा महत्वपूर्ण है। वे कैसे कपड़े पहनते हैं ये उनके जीवन से बहुत ज्यादा महत्वपूर्ण है। ये सिर्फ कुछ ही उदाहरण हैं। चूंकि जीवन के बारे में आपके विचार गलत हैं, तो जीवन आपसे दूर ही रहता है। पर वास्तव में जीवन आपसे दूर नहीं होता, आप उससे बच-बच कर रहते हैं। जीवन आपको टालने की, आपसे दूर जाने की कोशिश नहीं करता, आप ही उससे दूर रहते हैं।

आपके जीवन के कड़वे, दर्द-भरे अनुभव आपको जीवन की वजह से नहीं हुए थे। वे अपने मन और शरीर को संभालने की आपकी अयोग्यता की वजह से हुए थे। जीवन ने कभी आपको कोई दर्द या पीड़ा नहीं दी है। ये सिर्फ आपके मन और शरीर के कारण हुए हैं। आप जानते ही नहीं कि अपने शारीरिक और मानसिक ढाँचे को कैसे संभालें? आपको कुदरत ने दो अद्भुत साधन दिये हैं पर आपने उनको बिगाड़ दिया है। आपके सभी दुख और पीड़ायें बस आप ही की वजह से हैं। जीवन की वजह से नहीं।

प्रज्ञा, समझ का वो आयाम है जो आप को जीवन, उसके स्वभाव और उसके स्रोत तक की पहुँच देता है। ये अलग-अलग चीजें नहीं हैं। ये बस अलग-अलग नाम हैं जो हम जीवन को देते हैं। वहाँ कोई स्रोत नहीं है और कोई अभिव्यक्ति भी नहीं है - ये सब एक ही हैं। जीवन और मृत्यु जैसी कोई चीज़ ही नहीं है - ये बस इन सब चीजों की लीला है। आप इन पर एक खेल खेल सकते हैं और फिर एक दिन रुक सकते हैं। जीवन खेलता है और रुक जाता है, खेलता है और रुक जाता है। पर मूल रूप से, जीवन कोई खास गतिविधि नहीं है, कोई खास घटना नहीं है। ये एक अद्भुत बात है - जो बस है। जीवन सृष्टिरचना की पृष्ठभूमि है। यह सृष्टि का स्रोत है।