जानें साधारण से असाधारण बनने की तरकीब
हम बचपन से ही खुद को खास बनाने की कोशिश में लग जाते हैं। हम चाहते हैं एक विशिष्ट पहचान बनाना, कुछ ऐसा पाना जो औरों के पास न हो। तो क्या आध्यात्मिकता इस काम में हमारी मदद करेगी?
हम बचपन से ही खुद को खास बनाने की कोशिश में लग जाते हैं। हम चाहते हैं एक विशिष्ट पहचान बनाना, कुछ ऐसा पाना जो औरों के पास न हो। तो क्या आध्यात्मिकता इस काम में हमारी मदद करेगी?
सद्गुरु:
बहुत-से लोगों को आध्यात्मिक मार्ग संघर्ष भरा एक रास्ता लगता है। इसका कारण यह है कि उनकी संस्कृति और उनके सामाजिक परिवेश ने उनको हमेशा खास बनने की शिक्षा दी है। उनकी पूरी जिंदगी इसी कोशिश में खप जाती है।
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लोग तरह-तरह की चीजों में खुशी पा सकते हैं। एक बार की बात है, दो लोगों को खतरनाक आदिवासी नरभक्षियों ने पकड़ लिया। जब उन्हें वे अपने मुखिया के पास ले गए तो, वहां उनको जिंदा पकाने का फैसला किया गया। दोनों को बड़ी-बड़ी हांडियों में पानी में रख कर चूल्हे पर चढ़ा दिया गया। जब चूल्हे में आग जलाने पर पानी गर्म होने लगा, तो दोनों में से जो बड़ा था, हंसने लगा। छोटे ने कहा, “तुम पागल हो क्या? तुम्हें मालूम है हमारा क्या होने वाला है? तुम हंस क्यों रहे हो?” बड़े ने कहा, “मैंने अभी-अभी उनके सूप में पेशाब कर दी है!” लोग तरह-तरह के विकृत तरीकों से खुशी हासिल करते हैं।
एक दुखता अंगूठा
आध्यात्मिकता का मतलब खास या विशिष्ट बन जाना नहीं है, बल्कि हर चीज में समा कर एक हो जाना है। खास बनने की यह बीमारी लोगों को सिर्फ इसलिए लगी है क्योंकि उन्होंने अपने अस्तित्व के अनूठेपन का मोल नहीं जाना है।
साधारण से असाधारण तक
कुछ समय पहले हमारे योग प्रोग्राम के ब्रोशरों में लिखा होता था – “ऑर्डिनरी टू एक्स्ट्रा ऑर्डिनरी” यानी “साधारण से असाधारण तक।” लोग सोचते थे कि प्रोग्राम में भाग ले कर वे खास बन जाएंगे। वे मुझसे पूछते थे, “सद्गुरु, हम विशिष्ट कैसे बनेंगे?” मैं उनसे हमेशा कहा करता था, आप ‘एक्स्ट्रा’ ऑर्डिनरी बनने वाले हैं – यानी अधिक साधारण, और लोगों से भी अधिक साधारण।”
आप खास बनने की जितनी कोशिश करेंगे, सत्य से उतनी ही दूर जाएंगे। खास बनने की इस चाह की वजह से ही इतनी पीड़ा और मानसिक बीमारियों ने हमें घेर रखा है।