हम बचपन से ही खुद को खास बनाने की कोशिश में लग जाते हैं। हम चाहते हैं एक विशिष्ट पहचान बनाना, कुछ ऐसा पाना जो औरों के पास न हो। तो क्या आध्यात्मिकता इस काम में हमारी मदद करेगी?

सद्‌गुरु:

बहुत-से लोगों को आध्यात्मिक मार्ग संघर्ष भरा एक रास्ता लगता है। इसका कारण यह है कि उनकी संस्कृति और उनके सामाजिक परिवेश ने उनको हमेशा खास बनने की शिक्षा दी है। उनकी पूरी जिंदगी इसी कोशिश में खप जाती है।

Subscribe

Get weekly updates on the latest blogs via newsletters right in your mailbox.
 अगर अभी आपकी खुशी की एकमात्र वजह यह है कि जो आपके पास है वह दूसरों के पास नहीं, अगर आपके जीवन की बस यही एक खुशी है, तो हम इसे विकार कहेंगे, खासियत नहीं।
खास होने का मतलब है कि आपके पास वह चीज है, जो दूसरों के पास नहीं है। लेकिन यह खासियत, या विशिष्टता नहीं है, यह खुशहाली और सुख का एक छ्द्म अहसास है। अगर अभी आपकी खुशी की एकमात्र वजह यह है कि जो आपके पास है वह दूसरों के पास नहीं, अगर आपके जीवन की बस यही एक खुशी है, तो हम इसे विकार कहेंगे, खासियत नहीं।

लोग तरह-तरह की चीजों में खुशी पा सकते हैं। एक बार की बात है, दो लोगों को खतरनाक आदिवासी नरभक्षियों ने पकड़ लिया। जब उन्हें वे अपने मुखिया के पास ले गए तो, वहां उनको जिंदा पकाने का फैसला किया गया। दोनों को बड़ी-बड़ी हांडियों में पानी में रख कर चूल्हे पर चढ़ा दिया गया। जब चूल्हे में आग जलाने पर पानी गर्म होने लगा, तो दोनों में से जो बड़ा था, हंसने लगा। छोटे ने कहा, “तुम पागल हो क्या? तुम्हें मालूम है हमारा क्या होने वाला है? तुम हंस क्यों रहे हो?” बड़े ने कहा, “मैंने अभी-अभी उनके सूप में पेशाब कर दी है!” लोग तरह-तरह के विकृत तरीकों से खुशी हासिल करते हैं।

एक दुखता अंगूठा

आध्यात्मिकता का मतलब खास या विशिष्ट बन जाना नहीं है, बल्कि हर चीज में समा कर एक हो जाना है। खास बनने की यह बीमारी लोगों को सिर्फ इसलिए लगी है क्योंकि उन्होंने अपने अस्तित्व के अनूठेपन का मोल नहीं जाना है।

 आध्यात्मिकता का मतलब खास या विशिष्ट बन जाना नहीं है, बल्कि हर चीज में समा कर एक हो जाना है।
सतही ढंग से जीने के बाद अब उनकी पूरी कोशिश खास बनने की होती है। जब तक आपकी यह कोशिश जारी है, आप आध्यात्मिक प्रक्रिया के खिलाफ काम कर रहे हैं। आध्यात्मिकता का पूरा आयाम एक दुखते अंगूठे की तरह अलग तने रहना नहीं, बल्कि अस्तित्व में घुल-मिल कर एक हो जाना है। मन जाने कितनी तरह से खास बनना चाहता है! यही तो अहंकारी मन की प्रकृति है। वह बस तर्क की कसौटी पर ही तुलना कर सकता है। जैसे ही यह तुलना मन में आती है, होड़ शुरू हो जाती है। जैसे ही होड़ या प्रतिस्पर्धा शुरू होती है, जीवन का अहसास गायब हो जाता है, क्योंकि तब जीवन तो बस दूसरों से बेहतर होने की कोशिश बन कर रह जाता है। इसी मूर्खतापूर्ण कोशिश के कारण आज हम इस हास्यास्पद हालत में हैं कि हमें लोगों को उनकी खुद की प्रकृति के बारे में बताना पड़ रहा है। हमें लोगों को उनकी मूल प्रकृति की याद दिलानी पड़ रही है, क्योंकि वे दूसरों को पीछे छोड़ने की होड़ में खुद को खो चुके हैं।

साधारण से असाधारण तक

कुछ समय पहले हमारे योग प्रोग्राम के ब्रोशरों में लिखा होता था – “ऑर्डिनरी टू एक्स्ट्रा ऑर्डिनरी” यानी “साधारण से असाधारण तक।” लोग सोचते थे कि प्रोग्राम में भाग ले कर वे खास बन जाएंगे। वे मुझसे पूछते थे, “सद्‌गुरु, हम विशिष्ट कैसे बनेंगे?” मैं उनसे हमेशा कहा करता था, आप ‘एक्स्ट्रा’ ऑर्डिनरी बनने वाले हैं – यानी अधिक साधारण, और लोगों से भी अधिक साधारण।”

आप खास बनने की जितनी कोशिश करेंगे, सत्य से उतनी ही दूर जाएंगे। खास बनने की इस चाह की वजह से ही इतनी पीड़ा और मानसिक बीमारियों ने हमें घेर रखा है।

  अगर आप खुद के और हरेक इंसान के अनूठेपन को पहचान लेंगे, तो आप न किसी से कम होंगे और न ज्यादा...
इस बात से कि जो आपके पास है वह किसी और के पास नहीं, विकृत खुशी पाने की बजाय अगर आप सच्चाई से हर चीज में घुल-मिल कर एक हो जाने की कोशिश करें, तो यह भीतरी संघर्ष पूरी तरह खत्म हो जाएगा। अगर आप खुद के और हरेक इंसान के अनूठेपन को पहचान लेंगे, तो आप न किसी से कम होंगे और न ज्यादा - असाधारण बन जाना यही तो है।

फोटो: jeffsmallwood