ईश्वर सर्वत्र है, फिर वो पापियों को क्यों नहीं रोकता?
यह सब कहते और मानते भी हैं कि ईश्वर हर प्राणी के भीतर, बल्कि हर कण में है। तो फिर क्या वह दुर्योधन के भीतर नहीं था? क्या वह आज के दुराचारियों के भीतर नहीं है? यदि है तो वह कुछ करता क्यों नहीं?
यह सब कहते और मानते भी हैं कि ईश्वर हर प्राणी के भीतर, बल्कि हर कण में है। तो फिर क्या वह दुर्योधन के भीतर नहीं था? क्या वह आज के दुराचारियों के भीतर नहीं है? यदि है तो वह कुछ करता क्यों नहीं?
प्रश्न:
गीता के तीसरे अध्याय के पांचवें श्लोक में कहा गया है कि कोई भी मनुष्य कर्म किए बिना नहीं रह सकता। जीवन के हर पल हम कर्म करने के लिए बाध्य हैं, चाहे हमें यह पसंद आए या नहीं। यह गुणों के प्रभाव की वजह से होता है। सद्गुरु मैं इसे थोड़े विस्तार से जानना चाहती हूं, क्या आप इसे स्पष्ट करेंगे?
सद्गुरु:
दुनिया में जो कुछ भी हो रहा है, यहां जो भी विशेषताएं हैं, उनकी पहचान तीन गुणों में से किसी एक या तीनों के मिश्रण के रूप में होती है। ये तीन गुण हैं तमस, रजस और सत्व। यहां तक कि भोजन को भी तामसिक, राजसिक और सात्विक की श्रेणी में बांटा गया है।
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ये तीन गुण लगातार खेल खेल रहे हैं। जब तक ये गुण अपना खेल खेलेंगे, तब तक क्रियाकलाप होंगे ही। कृष्ण ने जोर देकर कहा है कि ईश्वरीय तत्व हर चीज और हर इंसान में एक ही अनुपात में मौजूद होता है। आप उसे न तो खत्म कर सकते हैं और न पैदा कर सकते हैं। आप उसका कुछ भी नहीं कर सकते। इसलिए अर्जुन ने सवाल पूछा - आप कहते हैं कि ईश्वर हर जगह मौजूद है। फिर तो वह दुर्योधन के भीतर भी होगा। अगर उसके भीतर ईश्वरीय तत्व है तो फिर वह ऐसे गलत काम क्यों कर रहा है? उसके भीतर का ईश्वर क्या कर रहा है? आप धर्म की स्थापना के लिए अपना जीवन दांव पर लगा रहे हैं, लेकिन उसके भीतर का ईश्वर क्या कर रहा है? कृष्ण हंसे और बोले - ईश्वर निर्गुण है। ईश्वर में कोई गुण नहीं होता।
पूरा जगत इन तीन मूल गुणों के आधार पर ही काम करता है। जैसा मैंने कहा कि जो कुछ भी भौतिक है, वह इन तीन में किसी एक या तीनों गुणों के मिश्रण से जुड़ा हुआ है।
अब ऐसे प्राणी का क्या फायदा जो कर्म ही न कर सके? यह सवाल ऐसे लोगों के मन में हमेशा आता है जो लाचारी में कर्म करते हैं। लोग अपनी पसंद से कर्म नहीं करते। वे विवश हैं कर्म करने के लिए। चाहे जैसे भी करें, लेकिन उन्हें कर्म करना जरूर है। यही वजह है कि कोई दूसरा इंसान अगर कुछ नहीं करता, तो वे यह सवाल पूछेंगे ही कि वो कुछ भी क्यों नहीं कर रहा है? वो यह नहीं समझते कि कुछ न करना आपको गुणों से परे ले जाता है, आप सभी तरह के भावों से दूर हो जाते हैं, जो कि इस उलझन का आधार है।
जो इन तीन गुणों से आगे निकल जाता है, वह पंचतत्वों और उनके छलावों से भी ऊपर उठ जाता है जिसका मतलब है भौतिकता से परे चले जाना। जिसे आप ईश्वर कहते हैं, वह गुणों से परे है इसलिए वह कर्म नहीं कर सकता। ईश्वर इस जगत का बीज है। बीज निष्क्रिय ही होता है। ऐसा नहीं होता कि बीज अचानक छलांग मारे और कुछ कर गुजरे, लेकिन यह बीज ही है जिसकी बदौलत एक पेड़ का अस्तित्व होता है। गुणों का संबंध पेड़ से होता है, बीज से नहीं। जब तक गुणों का खेल जारी है, कर्म अनिवार्य रूप से होगा।