क्या ईशा योग कार्यक्रम निःशुल्क भी सिखाए जाते हैं?
अक्सर ये बात सुनने में आती है कि योग प्रक्रिया को निःशुल्क सिखाया जाना चाहिए। क्या ईशा योग के कार्यक्रम निःशुल्क भी सिखाए जाते है? कार्यक्रमों में डोनेशन लेने का क्या कारण है? जानते हैं।

एम एम कीरवानी: अपने यहां कॉलेजों में दो तरह से दाखिले होते हैं- मेरिट के आधार पर और डोनेशन से। ईशा योग केंद्र में बिना किसी फीस के दाखिले के लिए आप किसी में क्या मेरिट देखते हैं?
सद्गुरु: किसी भी यूनिवर्सिटी में दाखिले के लिए आपमें खास तरह की काबिलियत देखी जाती है। इसी तरह से अगर आप स्कूल में दाखिला लेना चाहते हैं, तो इसके लिए आपमें कुछ अलग तरह की काबिलियत देखी जाती है। बात जब लोगों के शरीर व मन की आती है, तो लोग अलग-अलग तरह से सक्षम होते हैं। लेकिन बात जब हमारे भीतरी आयाम की आती है तो हम सब एक बराबर सक्षम हैं। चूंकि सबके पास काबिलियत है, इसलिए सबको डोनेशन देना पड़ता है। एक समय ऐसा भी था जब मैंने ‘नो डोनेशन’ के सिद्धांत का पालन किया। आज भी हमारे कई कार्यक्रम मुफ्त हैं।
अपनी बात के पक्के नहीं हैं लोग
चूंकि मैं आपके साथ बस गपशप कर रहा हूं तो इसमें से लोग बीच में से उठ कर चले जाएं, तो कोई समस्या नहीं है। लेकिन जब मैं कोई आध्यात्मिक प्रक्रिया आपको दे रहा हूं तो इसमें मुझे अपना जीवन लगाना पड़ता है। केवल मेरी बातों से तो यह नहीं होगा। जो लोग इन कार्यक्रमों में शामिल हो चुके हैं, उनसे पूछिए, उनके लिए यह कितना विस्फोटक था। बिना किसी चीज के यूं ही विस्फोट नहीं हुए। इसमें दम लगता है, प्राण लगते हैं। मैं गैरजिम्मेदार लोगों के लिए अपना जीवन नहीं लगाना चाहता। अफसोस की बात है कि अभी भी ज्यादातर लोगों के लिए यही सच है कि अगर वे कहते हैं कि ‘मैं तीन दिनों के इस कार्यक्रम में आऊंगा’, तो उनकी बातों में वो मजबूती नहीं होती। बीच में अगर उन्हें कोई संदेश मिले तो वे यह कहते देर नहीं लगाएंगें कि सदगुरु मुझे जाना है। इसलिए उन्हें पैसा देने दीजिए, तब वे बीच में नहीं जाएंगे।
पहले दो स्तर के कार्यक्रमों में उन्हें पैसा देना ही पड़ेगा। लेकिन तीसरे स्तर का कार्यक्रम और उसके आगे के एडवांस्ड कार्यक्रमों के लिए कोई फीस नहीं है। दरअसल, तब तक वे परिपक्व हो चुके होते हैं। तब अगर उन्होंने एक बार कह दिया कि वे वहां होंगे तो वे वहां होंगे। इसीलिए दूसरे स्तर के कार्यक्रमों के बाद कोई फी नहीं है।
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