इंटरनेट पर बच्चे: जानकारी का झूठा एहसास?
आज अधिकतर लोग ये मानते हैं कि हमारी अगली पीढ़ी हमसे बहुत होशियार और तेज हो रही है। लेकिन सद्गुरु ऐसा नहीं मानते, बल्कि उनका कहना है कि हम एक बीमार और कमजोर पीढ़ी का निर्माण कर रहे हैं। आइए जानते हैं कि वो ऐसा क्यों कह रहे हैं -

आज अधिकतर लोग ये मानते हैं कि हमारी अगली पीढ़ी हमसे बहुत होशियार और तेज हो रही है। लेकिन सद्गुरु ऐसा नहीं मानते, बल्कि उनका कहना है कि हम एक बीमार और कमजोर पीढ़ी का निर्माण कर रहे हैं। आइए जानते हैं कि वो ऐसा क्यों कह रहे हैं -
साहिल:
मेरे ख्याल से हमारा दिमाग लगातार विकसित हो रहा है। इस पीढ़ी के बच्चों के पास जबरदस्त तेज दिमाग है। बहुत तेजी से मैसेज टाइप कर सकते हैं। उनकी रफ्तार तेज तो है, लेकिन वे ध्यान एकाग्र नहीं कर सकते हैं। सद्गुरु, क्या उन्हें शांत और स्थिर रहने की शिक्षा देना संभव है?
सद्गुरु:
देखिए, इस बात का कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है कि किसी एक पीढ़ी में मानव का मस्तिष्क तेजी से विकसित हुआ हो। यह केवल नई पीढ़ी के लोगों की मान्यता है कि रासायनिक रूप से यह बहुत तेजी से विकसित हो रहा है और इसीलिए वे लोग इसे धीमा करने के लिए गांजे या अफीम का इस्तेमाल करते हैं।
कोई बच्चा तेजी से मैसेज भेज सकता है, इसलिए वह सुपरफास्ट है, इस बात का कोई मतलब नहीं है। पहले के बच्चे भी बहुत तेज होते थे।
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आपने अपनी पीढ़ी में शायद ही कभी किसी 12 साल के बच्चे को इतना मोटा देखा होगा कि वह सोफे में फिट ही न हो सके। हां अगर उसे कोई बीमारी हो या वह किसी और तरह की परेशानी से जूझ रहा हो तो बात अलग है, वरना आपने किसी बारह-तेरह साल के बच्चे को इतना बेडौल नहीं देखा होगा। इसका मतलब यह है कि वे सारे बच्चे बहुत तेज थे। अगर आप आज किसी नुक्कड़ पर स्कूल की बस का इंतजार करते हुए कुछ बच्चों को देखें तो आप पाएंगे कि दस में से तीन बच्चे शारीरिक रूप से सामान्य नहीं हैं, वे बेडौल हैं। और यह सब उनके तेज होने के कारण नहीं, बल्कि उनकी शारीरिक क्रियाओं की गति धीमी हो जाने की वजह से हुआ है।
बच्चों का बेडौल होना ठीक नहीं है। बढ़़ते हुए बच्चे थोड़े दुबले-पतले होने चाहिए, लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि उनमें पौष्टिक आहार की कमी हो। जब मैं अमेरिका में था, तो मैंने एक स्कूल का दौरा किया। मैंने देखा कि वहां पढऩे वाले सभी बच्चे 17 साल से कम उम्र के थे, लेकिन वे वजन के मामले में बेडौल थे। पौष्टिक आहार ज्यादा देने से बच्चे कभी मोटे नहीं होते, बल्कि अगर आप एक बढ़ते बच्चे को उसके लिए जरूरी सभी पौष्टिक पदार्थ देते हैं और अगर वह सक्रिय रहे, तो वह कभी भी मोटा नहीं होगा। पौष्टिक आहार से वह मजबूत तो बन सकता है, लेकिन ऐसा आहार उसे मोटा नहीं कर सकता।
आजकल के लडक़े-लड़कियों ने शारीरिक क्रियाकलापों को बहुत कम कर दिया है, इसलिए वे बेडौल हो गए हैं। इसी वजह से अजीबोगरीब दिखते हैं और अजीब सी चाल चलते हैं। आज के नौजवान को ऐसी हालत में देख कर सच में मुझे बहुत दुख होता है।
अगर देखा जाए तो यह सच नहीं है कि बच्चे समझदार हो गए हैं, बल्कि हुआ यह है कि उनकी गतिविधियां जो बहुआयामी हुआ करती थीं, वह अब एकआयामी हो गई हैं। आपको लगता है कि अगर आप अपने कंप्यूटर के सामने बैठ जाएं या अपने हाथ में एक आधुनिक गैजट ले लें तो आप अपनी पूरी जिंदगी इनके सहारे ही जी सकते हैं। ऐसा इसलिए है, क्योंकि इन आधुनिक उपकरणों में ऐसी ताकत है कि ये आपको ऐसा एहसास करा दें। देखिए, आपको कहीं जाने की जरूरत नहीं है। बस आपको अपना आईफोन लेना है और आप सारी दुनिया देख सकते हैं। और फिर आप ऐसे बात कर सकते हैं मानो आपके पास पूरी दुनिया की जानकारी है। कम से कम आप अपने आस-पास के लोगों को तो बेवकूफ बना ही सकते हैं कि आप पूरी दुनिया जानते हैं। आपने एक भी कदम घर के बाहर नहीं रखा और आपको पता चल गया कि इस्तांबुल में क्या हो रहा है। मैं आपको बता रहा हूं- यह सब बकवास है। जीवन ऐसे घटित नहीं होता है।
केवल जानकारी ही जिंदगी नहीं है। जानकारी हमें जीने की प्रेरणा दे सकती है, लेकिन ये जीवन का विकल्प नहीं है। आज आप एक प्रयोग करके देखें। एक होटल का मेन्यू-कार्ड लेकर आप अपने मनपसंद खाने के बारे में सारी बातें पता कर लें कि उस खाने के जरिए आपको कौन-कौन से पौष्टिक पदार्थ मिलने वाले हैं। इतना करके आप सोने चले जाएं। अब आपको पता चलेगा कि सिर्फ इतना करना ही काफी नहीं है। केवल इससे काम नहीं चलता। आप लोगों को एकांतवासी बना रहे हैं। वे किसी दूसरे व्यक्ति के साथ नहीं, इन गैजट्स के साथ ज्यादा अच्छा महसूस करते हैं।
शायद आपको यह बात अच्छी न लगे, फिर भी मैं कह रहा हूं कि यह सब करके आप एक बीमार मानवता को जन्म दे रहे हैं। अगर हम तकनीक का इस्तेमाल करना जानते हैं तो यह बहुत बढिय़ा चीज है। लेकिन हम तो हर तकनीक को अभिशाप में बदलने की ओर बढ़ रहे हैं। हमें जो भी बढिय़ा चीजें मिलीं, हमने उन सबको अभिशाप में बदल दिया, क्योंकि हम में चेतना की कमी रही।
मानव-चेतना का विकास नहीं हो रहा है। मानवीय चेतना को कैसे विकसित किया जाए, इस ओर कोई ध्यान नहीं दे रहा है, केवल टेक्नोलॉजी ही बढ़ रही है। यह स्थिति विनाशकारी हो सकती है। पच्चीस से तीस साल की उम्र ऐसी होती है, जिसमें किसी युवा को अपनी जिंदगी बनानी चाहिए। यह ऐसा दौर होता है, जब आप समझ और शारीरिक ताकत के मामले में चोटी पर होते हैं। ऐसे दौर में आप अपने कंप्यूटर या फोन पर बैठकर लड़ाई वाले गेम्स खेलते हैं। लड़ाई भी नहीं, लड़ाई वाले गेम्स। किसी वास्तविक चीज के साथ कुछ नहीं, बस खोखली परछाइयों और बेतुकी आवाजों के साथ खेल खेलते रहते हैं। कुछ समय बाद आप भी खोखले बनकर रह जाते हैं, मूंगफली के खोखले छिलके की तरह।
मैं एक परिवार के ऐसे बच्चे को बहुत नजदीक से जानता हूं, जो ऐसे खेल खेलता है। इन खेलों में आप इंटरनेट से किसी व्यक्ति को चुन सकते हैं और उसके साथ खेल सकते हैं।
निश्चित रूप से इन शानदार तकनीकों को इस्तेमाल करने के लिए हम बहुत परिपक्व नहीं हैं, लेकिन परिपक्व होने का यही सही समय है। ऐसा नहीं है कि हमें इन तकनीकों को छोड़ना पड़ेगा। यह तकनीकें एक वरदान है। हमें इनको उपयोग में लाने के लिए खुद को काबिल बनाना चाहिए।