पिछले हफ्ते कुछ लोग चंद्र ग्रहण के दौरान खाना न खाने की मेरी सलाह पर टिप्पणी कर रहे थे। वे इसे अंधविश्वास और अवैज्ञानिक करार दे रहे थे। उन्होंने कहा कि वे ग्रहण के दौरान खाना खाए और वे मरे नहीं। मुझे हैरानी हो रही थी कि क्या वे इसे लेकर निराश थे? सबसे पहले तो हम समझते हैं कि अंधविश्वास आखिर है क्या चीज। अंधविश्वास का मतलब किसी विषय के बारे में बिना राय या बोध के किसी नतीजे पर पहुँचना है। जीवन की यही प्रकृति है। आपका बोध व अनुभव इस पर निर्भर करते हैं कि आप कितने संवेदनशील हैं। आपका बोध या ग्रहणशीलता इस बात पर निर्भर नहीं करती कि आपने कितनी जानकारी इकठ्ठी कर ली है। जिन लोगों को दसवीं कक्षा की विज्ञान की किताब पढ़ लेने के बाद लगता है कि वे वैज्ञानिक हैं तो इसमें भला मैं क्या कर सकता हूं। एक सच्चा वैज्ञानिक, जिसने जिदंगी के किसी भी पहलू के बारे में काफी गहराई से छानबीन की है, वह कभी ऐसा नहीं बोलेगा।

एक योगी के तौर पर मैं जहां तक संभव होगा, डेढ़ घंटे से ज्यादा पहले पकाए हुए भोजन को नहीं खाऊंगा। हम आश्रम में भी क्यों एक खास तरीके से ही भोजन परोसते हैं? उसकी वजह सिर्फ इतनी है कि हम उम्मीद कर रहे हैं कि लोग योग साधक से धीरे-धीरे योगी बनें। उन्हें सिर्फ बदन को मोड़ना, झुकाना नहीं है, बल्कि उस सृष्टि के साथ अपने संयोग को भी महसूस करना है। ऐसा होने के लिए शरीर को संवेदनशील होना चाहिए और उसमें जड़ता का स्तर कम से कम होना चाहिए। अगर आप ऐसा खाना खाते हैं, जो किसी ना किसी रूप में खराब हुआ हो, हो सकता है कि यह सड़ा हुआ न हो तो यह आपको मारेगा नहीं, सिर्फ इतना होगा कि यह आपके बोध को कम कर देगा।

मेरा अनुभव यह कहता है कि बोध का घटना मृत्यु है। कम से कम एक योगी के लिए तो मृत्यु ही है। हो सकता है कि एक आम इंसान जिंदा रह जाए, लेकिन एक योगी अगर अपनी संवेदनशीलता व बोध खो देगा तो वह मर जाएगा। अगर अपनी संवदेनशीलता की मौत आपके लिए कोई मायने नहीं रखती तो आप जो चाहें, खा सकते हैं। आप बेकार भोजन खाकर भी जिंदा रह सकते हैं। आज लोग ऐसा खाना खा रहे हैं, जो कई दिन पहले, हफ्तों पहले या फिर महीनों पहले पका था। अगर उन्हें ताजे खाने और फ्रिज में रखे काफी पुराने खाने में अंतर महसूस नहीं होता तो भला आप क्या कह सकते हैं। लेकिन इतना तो तय है कि उनके भीतर उस तरह की संवेदनशीलता नहीं है, जिसके बारे में मैं बात कर रहा हूं। इसी से इंसान में जड़ता आती है। हो सकता है कि वे दिन में आठ से दस घंटे सोते हों, मेरे लिए यह मौत के समान है। दस घंटे की नींद का मतलब है कि हर दिन में से लगभग चालीस प्रतिशत हिस्से की मौत। तो अगर आप इसी तरह जीना चाहते हैं, तो आप जो चाहें, खाएं।

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न तो मैं कोई वैज्ञानिक हूं और न ही होना चाहता हूं। न तो मैं कोई किताब पढ़ रहा हूं और न ही मैं किसी चीज को लेकर कोई शोध कर रहा हूं, और न ही मेरे घर के पिछवाड़े में कोई प्रयोगशाला है। मैं सिर्फ अपनी इस मानवीय मशीन की प्रणाली पर गौर करता हूं। मैं इसे खास तरीके से रखता हूं, जिसके लिए काफी मेहनत करनी पड़ती है। इतना ही नहीं, प्रकृति में जो कुछ भी घटित होता है, मैं नजर रखता हूं कि उसकी वजह से मेरे साथ क्या हो रहा है और मैं इसी को लेकर बात कर रहा था। पुष्टि के लिए मैं अपने आसपास के जीवन पर भी गौर करता हूं। हर कीड़ा, मकोड़ा, पक्षी, जंतु व पेड़ यही बात कर रहे हैं। अगर आप यही बात कई सालों बाद, कुछ खरब डॉलर खर्च कर, शेाध के बाद जानना चाहते हैं तो यह आपके ऊपर है।

कुछ तथाकथित वैज्ञानिकों का वास्तविक विज्ञान के साथ कोई लेना-देना नहीं है। लेकिन किसी भी चीज को पूरी गहराई से देखने वाला वैज्ञानिक कभी भी इस तरह से बात नहीं करेगा। यहां कुछ ऐसे इंटरनेट वैज्ञानिक भी हैं, जो सोचते हैं कि उन्हें हर तरह के विज्ञान के बारे में पता है, क्योंकि वे इंटरनेट से जुड़े हैं। एक साधारण सी चीज कि शराब, तंबाकू व लाल मांस आपकी सेहत के लिए खराब हैं, आपको यह समझने में कई साल और अरबों डॉलर खर्च कर शोध करने की जरूरत पड़ी। उनके लिए जो नए खोज हैं, वे हमारे शाश्वत ज्ञान व जानकारी में निहित रहे हैं। उदाहरण के लिए, कुछ समय पहले मैं भारतीय मूल के एक अमेरिकी डॉक्टर से बात कर रहा था, उन्होंने खोज की थी कि कैसे दिल की नलिका या आट्रियम दिल में खून वापस लाने का काम करता है। मैंने जब उनके वीडियो व वैज्ञानिक पेपर्स देखे तो मैं विश्वास ही नहीं कर पाया कि कुछ साल पहले तक मेडिकल विज्ञान यह बात नहीं जानता था। योगिक पद्धति में तो हमेशा से इस पर जोर दिया जाता है। योग में हमारी कोशिश यह होती है कि हमारा खून जितना ज्यादा संभव हो सके, शुद्ध रहे। खून में अशुद्धि बढ़ने का मतलब है कि आपके बोध का स्तर कम होना। आपके बोध का जो स्तर होता है, वह आपके जीवन की गुणवत्ता तय करता है। आपका बोध कितना गहन है, यह हमेशा से इस संस्कृति का एक बड़ा सरोकार रहा है।

अगर आपको लगता है कि किसी किताब में लिखी गई बात ही सही होती है, तो इसका मतलब है कि आप अंधविश्वासी व धार्मिक हैं। इसमें वैज्ञानिकता वाली कोई बात नहीं। जाहिर सी बात है कि चंद्र ग्रहण का यह मतलब हर्गिज नहीं कि चांद अठ्ठाइस दिनों की यात्रा जल्दी से कुछ ही घंटों में पूरी कर लेगा। इस दौरान यह बस धरती द्वारा ढंक लिया जाता है। यह कुछ ऐसा ही है, जैस जब हमारे लिए रात होती है, तो उस वक्त भी सूरज तो मौजूद रहता ही है, बस हम धरती के उस हिस्से में होते हैं, जो सूर्य से दूर होता है। आपके अनुभव में रात होने का मतलब क्या सिर्फ प्रकाश की अनुपस्थिति ही है या फिर दिन की अपेक्षा रात में जीवन के घटित होने में कोई बदलाव होता है? अगर आप हर कीड़े, पक्षी, जानवर, पेड़ या पत्थर को देखेंगे तो उसमें आपको बदलाव दिखाई देगा।

अगर आप रात में थोड़े खुले मन व विचारों के साथ बाहर बैठें तो आप जान पाएंगे कि रात का मतलब सिर्फ प्रकाश की गैरमौजूदगी ही नहीं होता। दिन व रात में गुणवत्ता में फर्क होता है। हो सकता है कि कोई कहे- ‘यह सब बेकार की बात है, रात में बस रोशनी नहीं होती’। यही बात कुछ लोग ग्रहण के बारे में भी कहते हैं। इससे कोई फर्क नही पड़ता। मैं कह रहा हूं कि ग्रहण के समय खाना मत बनाइए और न ही खाइए। उसके पहले या उसके बाद भोजन कीजिए। यह जीवन का विज्ञान है, इंटरनेट विज्ञान नहीं। यह एक सद्‌गुरु का कहना है, जिसका मतलब है कि वह जीवन को भीतर से जानता है। मैं उन लोगों के लिए हूं, जिनकी दिलचस्पी जीवन में है। सबसे बड़ी अज्ञानता तो यह मानना है कि आप अज्ञानी नहीं हैं। जो भी चीज आपको पता नहीं है, उसका अस्तित्व ही नहीं है, ऐसा सोचना तो अज्ञानता की पराकाष्ठा है। सारे इंटरनेट वैज्ञानिकों से मेरी गुजारिश है कि वे कुछ ताजा बना खाना खाएं, अपने को स्वस्थ रखें और जीवन के प्रति सचेतन बनें। अगर आप चाहते हैं तो ग्रहण के दौरान खाना खाइए, आप मरेंगे नहीं, बस आपमें जड़ता भरेगी। अगर आपको जड़ता से कोई परहेज नहीं है तो शौक से खाइए। जो लोग शराब व सिगरेट पीते हैं और हर तरह की चीजें खाते-पीते हैं, उनके लिए हो सकता है कि इससे कोई फर्क न पड़ता हो। यह कुछ उसी तरह की बात है कि आपने एक उच्च क्षमता वाली कार ली और उसमें कम क्षमता वाला पेट्रोल डाल दिया, ऐसे में आपकी कार कुछ किलोमीटर चल कर रुक सकती है। उच्च स्तरीय प्रदर्शन के लिए आपको विशेष पेट्रोल की जरूरत होती है।

अगर आप उच्च स्तरीय प्रदर्शन चाहते हैं तो आपको ध्यानपूर्वक यह देखने की जरूरत है कि आपके भीतर किस तरह का ईंधन जा रहा है। अगर आप एक जंक मशीन हैं तो आप जो चाहें खाएं, जो चाहें पिएं, जैसे चाहें वैसे जिएं। जीवन की प्रकृति ऐसी है कि पृथ्वी, सूर्य व चंद्रमा का हमारे सिस्टम पर महत्वपूर्ण प्रभाव होता है। अगर आप उनके तरीकों के बारे में सचेत हैं तो आप इन प्राकृतिक शक्तियों की सवारी कर, उनकी मदद लेकर अपना जीवन बिना किसी खास प्रयास के आसान व सहज बना सकते हैं। अगर आप सचेत नहीं हैं तो यही चक्र आपको कुचल भी सकते हैं, तब आपके लिए हर चीज एक संघर्ष होगी। अगले ग्रहण तक के लिए मेरी शुभकामनाएं। आप अपनी अज्ञानता से उपजे अहम को जीवन की महानतम संभावनाओं का ग्रहण मत बनने दीजिए।

Love & Grace