ईश्वर हमारे अनुभव में क्यों नहीं है?
कुछ दिनों पहले प्रसिद्द लेखक और वक्ता डॉक्टर दीपक चोपड़ा और सद्गुरु के बीच हुई एक बातचीत में, इस विषय पर चर्चा हुई कि वो क्या चीज़ है - जो हमें इश्वर का अनुभव करने से रोकती है?
कुछ दिनों पहले प्रसिद्द लेखक और वक्ता डॉक्टर दीपक चोपड़ा और सद्गुरु के बीच हुई एक बातचीत में, इस विषय पर चर्चा हुई कि वो क्या चीज़ है - जो हमें इश्वर का अनुभव करने से रोकती है?
आइये जानते हैं वैज्ञानिक और योगिक दोनों ही दृष्टिकोणों से इस प्रश्न के उत्तर...
चंद्रिका टंडन: डॉक्टर चोपड़ा, क्या आप बता सकते हैं कि वे कौन सी चीजें हैं, जो लोगों को योग के अनुभव से रोकती हैं?
दीपक चोपड़ा: हममें से बहुत से लोग ऐसे हैं, जिनकी शिक्षा-दीक्षा वैज्ञानिक दृष्टिकोण वाले माहौल में हुई है या कहें ऐसे माहौल में पूरी हुई है, जिसका जोर बार-बार इस्तेमाल होने वाली सूचनाओं यानी ‘रीसइकिल्ड इनफर्मेशन’ पर होता है। ऐसे लोगों के लिए अपने अस्तित्व का अनुभव कर पाना मुश्किल है क्योंकि तब हम अपने बोधात्मक अनुभवों से अपनी पहचान स्थापित कर लेते हैं। हमारी बुद्धि, हमारा मन, हमारा अहं, हमें अपने प्रभाव में लिए रहता है, इसलिए हमेशा संघर्ष जैसा लगता रहता है। फि र एक दिन आता है, जब आप संघर्ष करना रोक देते हैं और आप पाते हैं कि आप वहां पहुंच चुके हैं। जैसा कि सद्गुरु ने कहा कि वे किसी भी चीज के साथ अपनी पहचान स्थापित नहीं करते। एक बार अगर आपने अपने विचार या सोच, संवेदना या भाव के साथ अपनी पहचान स्थापित कर ली तो आप समय की परिधि में आ जाते हैं। विचार समय की परिधि में है, लेकिन अस्तित्व समय से नहीं बंधा है।
चंद्रिका टंडन: सद्गुरु, इस बारे में आपके विचार क्या हैं?
सद्गुरु: मैं आध्यात्मिक रूप से पूरी तरह अशिक्षित हूं। मैं यह स्वीकार करता हूं कि मैंने न तो गीता पढ़ी है, न वेदों का अध्ययन किया है, न मैंने उपनिषद पढ़ा है और न कभी योग सूत्र ही पढ़ा है। मैंने कभी कुछ नहीं पढ़ा। मैं बस अंग्रेजी साहित्य पढ़ लेता हूं, वह भी बस मजे के लिए, क्योंकि मुझे यह भाषा पसंद है। इसके अलावा, सबसे गहराई वाली चीज जो मैं पढ़ता हूं, वह है एस्ट्रिक्स।
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मैं ऐसा क्यों कह रहा हूं, इसकी वजह यह है कि आधुनिक विज्ञान आज वास्तविकता या सत्य को गणितीय खांचे में फिट करना चाहता है। एक वैज्ञानिक तमाम तरह की गणनाओं और तर्क के बाद यह परिणाम निकालता है कि यह पूरा ब्रह्मांड एक है। लेकिन यह उसके अनुभव में नहीं होता है। एक धार्मिक इंसान कहेगा कि ईश्वर हर जगह है और हर चीज एक है, लेकिन यह उसका केवल विश्वास है, उसने भी इसका अनुभव नहीं किया है। कोई नतीजे तक पहुंचता है तो कोई भरोसे के आधार पर ऐसा मान लेता है, लेकिन योगी एक ऐसा शख्स है जो न तो तर्क से किसी नतीजे पर पहुंचना चाहता है और न ही विश्वास के आधार पर ऐसा मानता है। वह तब तक ऐसी बातों को नहीं मानता जब तक कि वह खुद उन बातों का अनुभव नहीं कर लेता। इसी वजह से मुझे कभी आध्यात्मिक सामग्री को पढऩे की जरूरत ही महसूस नहीं हुई। मैं पत्रिकाएं, साहित्य जैसी चीजें तो पढ़ लेता हूं, लेकिन आध्यात्मिक किताबें मैंने कभी नहीं पढ़ीं, क्योंकि मेरे दिमाग में चीजों की जो साफ तस्वीर है, उसे मैं इन बाहरी चीजों से धुंधली और भ्रमित नहीं बनाना चाहता। मैं केवल एक ही चीज जानता हूं और वह है जीवन का यह अंश। मैं जीवन के इस हिस्से को इसके आदि से इसके अंत तक जानता हूं। अगर आप जीवन के इस एक टुकड़े को पूरी तरह से जान लेते हैं, तो बाकी सभी चीजों के बारे में आप इसी को आधार बना कर बता सकते हैं।
चंद्रिका: डॉक्टर चोपड़ा, क्या आप इस पर कुछ कहना चाहेंगे?
दीपक चोपड़ा: सद्गुरु गिने-चुने सौभाग्यशाली लोगों में से एक हैं। मैं दो और लोगों को जानता हूं, जिन्होंने ऐसी ही बात कही थी कि अच्छा हुआ, मैंने कभी कुछ नहीं पढ़ा। इनमें से एक थे महर्षि महेश योगी। वह हमेशा कहा करते थे, ‘अच्छा ही है कि मैंने कभी कुछ नहीं पढ़ा, नहीं तो उससे मेरा मन और अव्यस्थित हो गया होता’। दूसरे कृष्णमूर्ति थे, जो कहते थे ‘आप जितना ज्यादा पढ़ेंगे, उतना ही ज्यादा आपका मन उलझेगा’। वह कहते थे कि मैंने कभी कुछ नहीं पढ़ा। यह असमान्य सी बात है। ऐसे लोग बस अपने अस्तित्व या कहें बोध में स्थित हो गए। जबकि मुझे संघर्ष करना पड़ा।
मैंने तमाम तरह का साहित्य पढ़ा - विज्ञान, मेडिकल, मनोविज्ञान, भगवद्गीता का हर अनुवाद, ऋग्वेद, योग वशिष्ठ, कश्मीर शिववाद, वेदांत - हर तरह का साहित्य मैंने पढ़ा है। इन सबमें वही बात कही गई है, जो सद्गुरु कह रहे हैं। लेकिन मुझ जैसे व्यक्ति के लिए, जो चीजों को वैज्ञानिक तरीके से देखने के लिए प्रशिक्षित किया गया है, यह एक संघर्ष भी था और जरूरत भी थी। देखिए सत्य का कोई मानचित्र या नक्शा नहीं होता है, फि र भी विज्ञान हमें नक्शे देता है। योग वशिष्ठ हमें एक नक्शा देता है, पतंजलि हमें नक्शा देते हैं, भगवद्गीता हमें एक नक्शा देती है। क्योंकि हममें से कुछ लोगों को आगे बढऩे के लिए नक्शों की जरूरत होती है।
विज्ञान ने इन्हीं सब चीजों को समझने के लिए एक खिडक़ी खोली है। यह एक ऐसा रास्ता है, जिसे हमारी परंपरा में लोग पहले से ही जानते हैं।
सद्गुरु: अनुभवों की एक पूरी श्रृंखला के कारण विज्ञान का विकास हुआ। यह सब छोटे-छोटे आवेग या झोंके में हुआ। जो अनुभूति हुई, वह अपनी संपूर्णता में न होकर टुकड़ों में हुई। हम कहते हैं कि किसी वैज्ञानिक ने कोई चीज खोज ली, लेकिन वास्तव में उन्होंने उस चीज के काम करने के एक पहलू को देखा और अनुभव किया। कोई चीज कैसे काम करती है, अगर इसके भौतिक पहलू को आपने जान लिया तो आप भौतिक दुनिया में बहुत से काम कर सकते हैं। इन्हीं सब कामों को आप आज तकनीक के रूप में देखते हैं।
दीपक चोपड़ा: विज्ञान में आज एक महत्वपूर्ण सवाल है जो अनुत्तरित है। सवाल यह है कि यह ब्रह्मांड किस चीज से बना है। इसका जवाब हमें नहीं पता, क्योंकि इस ब्रह्मांड का 96% हिस्सा अदृश्य है। इसे ही डार्क एनर्जी या डार्क मैटर कहा जाता है। ये भी सिर्फ शब्द हैं, क्योंकि उन्हें नहीं पता कि वास्तव में ये हैं क्या। एक इस जगत को फैला रहा है और दूसरा इसे संकुचित कर रहा है। इस जगत का केवल चार फीसदी हिस्सा ही आणविक है। इस चार फीसदी में से भी 99.99% तारों के बीच की अदृश्य धूल है, जो तारों या आकाशगंगा का रूप नहीं ले पाया। जो दृश्य जगत है यानी सभी आकाशगंगा, अरबों तारे, खरबों ग्रह, ये सब महज 0.01% में हैं। इस 0.01% ब्रह्मांड का निर्माण कणों से हुआ है, लेकिन जब ये कण दूसरे कणों के साथ अंत:क्रिया नहीं करते, तो वे गायब हो जाते हैं - वे तरंग बन जाते हैं। तो फिर सवाल है कि यह ब्रह्मांड किस चीज का बना है? किसी चीज से नहीं, या कहें शून्य से, और यह एक वैज्ञानिक तथ्य है।
संपादक की टिप्पणी:
यह लेख ईशा लहर मासिक पत्रिका से लिया गया है।