दुर्योधन ने पिछले जन्मों में कौन से बुरे कर्म किए थे?
दुर्योधन महाभारत का एक ऐसा पात्र था जिसके पूर्व जन्मों का कोई वर्णन नहीं मिलता। महर्षि वेद व्यास ने हर किरदार के पिछले जन्म के बारे में बताया लेकिन दुर्योधन के बारे में कुछ नहीं बताया। उन्होंने ऐसा क्यों किया?

प्रश्नः दुर्योधन ने पिछले जन्म में ऐसे कौन से बुरे कर्म किए थे जिनकी वजह से वह एक दुष्ट चरित्र बना?
सद्गुरु: महाभारत के श्लोकों की रचना करने वाले वेद व्यास ने सबके जीवन का वर्णन किया है जिनमें अर्जुन और कृष्ण भी शामिल हैं, जो नर-नारायण थे।
दुर्योधन को क्षमा नहीं मिल सकती
व्यास ये कहना चाहते हैं कि दुर्योधन जो भी था, उसके लिए वो खुद सौ प्रतिशत जिम्मेदार था। बाकी सब लोगों के पास एक बीता हुआ कल है जिससे उनके चरित्र का अच्छा-बुरा, सुंदर व बदसूरत रूप सामने आता है पर दुर्योधन के पास ऐसा कोई बहाना नहीं है। संदेश यही है कि मूर्खता, गुस्से और असंवेदनशीलता से भरे पलों, अंधे भावों, चिंतन और कर्म के लिए तो उपाय है परंतु दुर्योधन जिस तरह सदा दूसरों के लिए रोष या बुरी भावना का लगातार प्रदर्शन करता था, उसके लिए कोई क्षमा नहीं मिल सकती। हालांकि कई ऐसे पल भी आते हैं जिनमें वह हमें एक महान और उदार मित्र के तौर पर दिखता है। इसके बावजूद उस पर वही नियम लागू होता है। उसने सदा मित्र बनाने की कोशिश की और अपने मित्रों और अपने प्रति वफादार लोगों का ध्यान रखा - पांडवों से भी कहीं ज्यादा। जो लोग संसार में नेता हैं, जो लोग सभी की भलाई चाहते हैं, अक्सर उनके कोई मित्र नहीं होते। महान कलाकार, जीनियस और वैज्ञानिकों के कोई मित्र नहीं होते परंतु बुरे से बुरे अपराधियों के पास अक्सर परम मित्र होते हैं।
अपराधियों की मित्रता पक्की होती है
मित्रता में अपराध फलता-फूलता है। आप जानते हैं न, ‘चोर-चोर मौसेरे भाई’। अपराध करने के लिए अक्सर साथियों की जरुरत होती है। अगर आपस में लेन-देन की वफादारी नहीं होती तो इस जमाने में अपराध से जुड़ी गतिविधियाँ भी कम होतीं। अपराध के क्षेत्र में आपस में ऐसे कुख्यात साझेदार हुए हैं, जिनके नाम आज भी लोगों के दिमाग और इतिहास की किताबों में दर्ज हैं। परंतु दुर्योधन को किसी भी रूप में क्षमा नहीं किया जा सकता था। मैं दुर्योधन के चाहने वालों से क्षमा चाहूँगा। अगर आप किसी जानवर से भी सुरक्षित दूरी बना कर रखें तो उससे भी प्रेम करने में कुछ गलत नहीं है। पशु भी रोमानी होता है। ‘टाइगर-टाइगर, बर्निंग ब्राइट’ कितनी सुंदर कविता है। आप किसी पिंजरे या चिड़ियाघर में या सफारी वैन से तो चीते की तारीफ़ कर सकते हैं, पर अगर आपकी उससे मुठभेड़ हो जाए तो उसकी तारीफ नहीं कर सकेंगे। इसी तरह दूरे से देखने पर, दुर्योधन, जूनुनी तरीके से धर्म की स्थापना करने वालों या कोई भी काम करने वालों से कहीं ज्यादा आाकर्षित करता है। पर अगर आप उसका वफादार दोस्त हुए बिना, उसके निकट होने का अवसर पाते हैं, तो आपके हाथ पछतावे के सिवा कुछ नहीं आएगा।
दुर्योधन की जंगली दावत
एक बार, कृष्ण दुर्योधन के महल में अतिथि हुए। दुर्योधन की युवा, नाजुक और प्यारी सी पत्नी, राजकुमारी भानुमती को अपने पति के चरित्र के बारे में कुछ पता नहीं था। उन दिनों में राजकुमारी होने की वजह से, उसे अपने पति से प्रेम करने की शिक्षा दी गई थी। भले ही वह कैसा भी इंसान क्यों न हो। वह चाहती थी कि उसका पति उसकी ओर ध्यान दे। उससे प्रेम करे। दरअसल उसे काफी कष्ट मिले, परंतु उसे प्रेम नहीं मिला। एक दिन, दुर्योधन ने महल में एक जंगली दावत की। लोग नशे में धुत्त हुए और महल में हर तरह के व्यभिचार की छूट दी गई। जब भीष्म को इस बारे में पता चला तो वे रोने लगे। कुरुओं के खानदान में आज तक ऐसा अनाचार(गलत काम) नहीं हुआ था। केवल उस एक आदमी की वजह से सब कुछ पशुवत्(जंगली) होता जा रहा था। जब भानुमती को अपने पति से उपेक्षा(ध्यान की कमी) मिली तो उसने भी बहुत सारी शराब का सेवन कर लिया। कृष्ण ने दूसरे कक्ष से उसे देखा तो झट से अर्धनग्न भानुमती को उठाया और उसके कक्ष की ओर ले चले ताकि सबके बीच शराब के नशे में चूर भानुमती अपमानित न हो। जब उन्होंने उसे बिस्तर पर लिटाया तो उस प्यारी और मासूम कन्या को देख उनकी आँखें भर आईं कि उसे दुर्योधन के हाथों सौंप दिया गया था। आगे जारी...
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