डायोजिनिस : एक आनंद-मग्न फ़कीर की कथा
क्या आप जानते हैं कि सिकन्दर महान के मन में भी एक क्षण के लिए अनासक्ति का भाव पैदा हो गया था? आइये जानते हैं ऐसे एक मस्तमौला संत के बारे में जिसे सिकन्दर खुद से ज्यादा साहसी मनाता था।
डायोजिनिस एक निराला और हमेशा मगन रहने वाला भिखारी था, जो यूनान (ग्रीस) में एक नदी के किनारे रहता था। किसी ने उसे बहुत सुंदर भीख का कटोरा दिया था। वह हमेशा एक लंगोटी ही पहनता था। वह मंदिरों के दरवाजों पर भीख मांगता था और जो कुछ भी मिलता, खा लेता था।
एक दिन खाना खाने के बाद वह नदी की ओर टहलने निकला। तभी एक कुत्ता उसे पीछे छोड़ते हुए नदी की तरफ भागा। थोड़ी देर नदी में तैरकर वह कुत्ता बाहर निकला और मजे से मिट्टी में लोटने लगा। ये सब देखकर डायोजिनिस ने सोचा कि हे भगवान! मेरी जिंदगी तो एक कुत्ते से भी बदतर है। डायोजिनिस हालांकि उस समय पूरी तरह आनंद-मग्न था, लेकिन वो सोच रहा था कि उसकी जिंदगी कुत्ते से भी बुरी है, क्योंकि जब भी वह नदी में कूदने की सोचता था, उसे अपने कपड़ों के गीले होने की चिंता हो जाती थी। उसे लगता कि अगर उसका सुंदर भीख का कटोरा वहीं छूट गया तो क्या होगा। बस उस दिन ही उसने अपना भीख का कटोरा और कपड़े फेंक दिए और हमेशा के लिए वस्त्रहीन होकर रहने लगा।
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सिकंदर और डायोजिनिस की मुलाक़ात
एक दिन जब सिकंदर राजसी कपड़ों में अपने बड़े से घोड़े पर आया तो उसने डायोजिनिस को नदी किनारे लेटे देखा। उसकी आंखें बंद थीं और वह रेत में परमानंद से भरपूर होकर लोट रहा था।
सिकंदर ने चिल्लाते हुए कहा – “तुम घिनौने जानवर की तरह हो। तुम्हारे शरीर पर कपड़े का एक टुकड़ा भी नहीं है। तुम किस बात पर इतना आनंदित हो रहे हो ? ”
डायोजिनिस ने सिकंदर को देखा और एक ऐसा सवाल पूछा जिसे एक राजा से पूछने की हिम्मत किसी की नहीं हो सकती।
उसने कहा – “क्या तुम भी मेरी तरह बनना चाहते हो ?”
इस बात ने सिकंदर को अंदर तक झकझोर दिया और उसने कहा - “मुझे क्या करना होगा ?”
डायोजिनिस बोला – “अपने फालतू घोड़े से उतरो और राजसी कपड़े उतारकर नदी में फेंक दो। नदी का यह किनारा हम दोनों के लिए काफी है। सब चीजों पर सिर्फ मेरा ही हक थोड़े ही है। तुम भी यहां मस्ती से लेट सकते हो। तुम्हें कौन रोक रहा है ? ”
सिकंदर ने कहा – “मैं भी तुम्हारी तरह बनना चाहता हूं लेकिन तुम्हारे जैसे काम करने का मुझमें साहस नहीं है।”
सिकंदर संभावना से चूक गया
इतिहास की किताबों में हमेशा यही बताया गया है कि सिकंदर का दूसरा नाम साहस है। फिर भी उसने यह माना कि डायोजिनिस के जैसे काम करने की उसमें हिम्मत नहीं है। इसीलिए सिकंदर ने डायोजिनिस से कहा कि मैं तुम्हें अगले जन्म में मिलूंगा और फिर तुम्हारे जैसे काम करूंगा। उसने इस बात को अगले जन्म पर टाल तो दिया लेकिन किसी को क्या पता कि वह अगले जन्म में कॉकरोच ही बन जाए। जब आप इंसान के रूप में जन्म लेते हैं तो आप के भीतर एक निश्चित संभावना होती है। अगर आपने उसे बेकार कर दिया और महत्वपूर्ण कामों को अगले जन्म पर टाल दिया, तो कौन जाने अगले जन्म में क्या होने वाला है।
एक पल के लिए सिकंदर नजदीक आया था, लेकिन फिर उसने इस बात को टाल दिया। इस घटना के कारण एक खास किस्म की अनासक्ति उसके भीतर पैदा हो गई। युद्ध के प्रति उसका जुनून खत्म हो गया, लेकिन वह अपनी आदतों से जूझता रहा और फिर भी युद्ध लड़ता रहा। जैसे ही उसका जुनून खत्म हुआ, उसकी ऊर्जा भी जाती रही और अंत में उसकी मौत हो गई। मौत से ठीक पहले उसने अपने लोगों को एक बड़ा अजीब निर्देश दिया। उसने कहा, मेरे लिए जो ताबूत बनाया जाए, उसके दोनों तरफ दो छेद होने चाहिए, जिससे कि मेरे दोनों हाथ ताबूत से बाहर रहें। हाथ बाहर रखकर मैं लोगों को यह दिखाना चाहता हूं कि सिकंदर महान भी इस दुनिया से खाली हाथ ही लौटा है। यह एक ही अक्लमंदी की बात थी, जो सिकंदर ने अपनी जीवन में की।