भगवान बुद्ध ने क्या भेंट किया अपने पुत्र को?
भगवान बुद्ध ने आठ सालों तक एक भिक्षुक का जीवन जिया, जिसकी शुरुआत उन्होंने अपने महल से भाग कर की थी। लेकिन बुद्धत्व मिलने के बाद एक दिन वे अपने महल पहुंचे...
भगवान बुद्ध ने आठ सालों तक एक भिक्षुक का जीवन जिया, जिसकी शुरुआत उन्होंने अपने महल से भाग कर की थी। लेकिन बुद्धत्व मिलने के बाद एक दिन वे अपने महल पहुंचे...
शायद ही दुनिया में ऐसा कोई इंसान होगा जिसने गौतम का नाम न सुना हो। ज्यादातर लोग उन्हें बुद्ध के नाम से जानते हैं। इस धरती पर कई बार आध्यात्म की एक बड़ी लहर सी आई है। बुद्ध खुद ऐसी ही एक आध्यात्मिक लहर रहे हैं। संभवत: वह धरती के सबसे कामयाब आध्यात्मिक गुरु थे - उनके जीवन काल में ही उनके साथ चालीस हजार बौद्ध भिक्षु थे और भिक्षुओं की यह सेना जगह-जगह जाकर आध्यात्मिक लहर पैदा करती थी।
एक रात वह अपनी पत्नी- अपनी युवा पत्नी और नवजात शिशु को छोडक़र आधी रात को घर से निकल पड़े। वो एक राजा की तरह नहीं निकले, बल्कि एक चोर की तरह निकले थे- रात में घर छोडक़र गए थे। यह कोई आसान फैसला नहीं था। वह एक ऐसी पत्नी से दूर नहीं जा रहे थे, जिसे झेलना उनके लिए मुश्किल हो रहा हो। वह ऐसी स्त्री से दूर जा रहे थे, जिससे वह बहुत प्यार करते थे। वह नवजात बेटे से दूर जा रहे थे, जो उन्हें बहुत प्यारा था। वह अपनी शादी की कड़वाहट की वजह से नहीं भाग रहे थे। वह हर उस चीज से भाग रहे थे, जो उन्हें प्रिय थी। वह महल के ऐशो-आराम से, एक राज्य के राजकुमार होने से, भविष्य में राजा बनने की संभावना से, वह उन सभी चीजों से भाग रहे थे, जिन्हें हर आदमी आम तौर पर पाना चाहता है। लेकिन वे अपनी जिम्मेदारियों से भागने वाले कोई कायर नहीं थे। यह एक इंसान के साहस और ज्ञान की तड़प का परिणाम था। उन्होंने अपना महल, अपनी पत्नी, अपना बच्चा, अपना सब कुछ त्याग दिया और ऐसी चीज की खोज में लग गए, जो अज्ञात थी।
गौतम एक राजा थे, मगर उन्होंने एक भिक्षुक का जीवन जिया। आज आप इस घटना का गुणगान कर सकते हैं क्योंकि वह मशहूर हो चुके हैं। मगर मैं चाहता हूं कि आप समझें कि जब वह एक भिक्षुक की तरह चल पड़े थे, तो सडक़ पर चलते आम लोगों ने बाकी भिक्षुकों की तरह ही उन्हें भी दुत्कारा था। उन्हें उन सभी चीजों से गुजरना पड़ा जो किसी भिक्षुक को अपने जीवन में झेलना पड़ता है। जबकि वह एक राजकुमार थे और उन्होंने जानबूझकर भिक्षुक बनने का फैसला किया था।
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आठ सालों की खोज के बाद, जब उन्हें पूर्ण ज्ञान प्राप्त हुआ तो उन्हें अपना एक छोटा सा दायित्व याद आया जो उन्हें पूरा करना था। जब उन्होंने महल छोड़ा था, तो उनका पुत्र एक शिशु ही था। उनकी पत्नी एक युवती थी। वह रात को चोरों की तरह, बिना किसी को बताए वहां से चले आए थे। उनके पास उस हालात का सामना करने का साहस नहीं था या वह जानते थे कि इस पूरे हालात का सामना करने की कोशिश बेकार है, उसका वैसे भी कोई हल नहीं था। इसलिए वह रात के अंधेरे में चुपचाप घर छोडक़र चले गए। आठ साल बाद जब उन्हें पूर्ण ज्ञान प्राप्त हो गया, वह बुद्ध हो गए... जब पुराने गौतम का कोई अस्तित्व नहीं बचा था, तो वह वापस आए, क्योंकि वह अपने इस छोटे से दायित्व को पूरा करना चाहते थे। वह अपनी पत्नी यशोधरा से मिलने आए, जो बहुत स्वाभिमानी स्त्री थीं।
यशोधरा को जैसे ही पता चला कि वह आने वाले हैं, वह गुस्से से पागल हो गईं। वह उन्हें किसी तरह बख्शना नहीं चाहती थीं। वह गुस्से से उबल पड़ीं और बोलीं, ‘आप एक चोर की तरह घर छोडक़र गए, आप तो एक मर्द भी नहीं हैं। आपके दिव्यता की खोज का सवाल कहां उठता है? आप एक शाही परिवार में जन्मे थे, आपके अंदर इतना साहस होना चाहिए था कि मेरा सामना करते और मुझसे लड़ते फि र अपनी मनमर्जी करते।
फिर जैसा कि इमोशनल ड्रामा के समय होता है... यशोधरा ने बच्चे को उनके सामने रखा, बच्चा लगभग आठ साल का था। उन्होंने बच्चे को बुद्ध के सामने रखते हुए कहा, ‘इसके लिए आपकी क्या विरासत है? आप और आपकी आध्यात्मिक बकवास! आप इसे क्या देकर जाएंगे? इस बच्चे के लिए आपकी धरोहर क्या है?’ उन्होंने लडक़े को देखा, फिर अपने शिष्य आनंद को बुलाया, जो वहीं मौजूद था। वह बोले, ‘आनंद, मेरा भिक्षा पात्र लाओ।’ आनंद गौतम का भिक्षा पात्र ले कर आए, जो कुछ खास नहीं एक मामूली सा कटोरा था। गौतम बोले, ‘मेरी विरासत यही है, यह सबसे बड़ी विरासत है जो मैं अपने बेटे को सौंप सकता हूं।’ और उन्होंने वह भिक्षा पात्र अपने बेटे को सौंप दिया।
भगवान बुद्ध की ज्ञान की खोज तब शुरू हुई जब उन्होंने एक ही दिन तीन दृश्य दिखे - एक रोगी मनुष्य, एक वृद्ध और एक शव को उन्होंने देखा। बस इतना देखना था कि राजकुमार सिद्धार्थ गौतम निकल पड़े ज्ञान और बोध की खोज में...
सुनें यह गीत और जानें - कि कैसे निरंजना नदी के किनारे, बोधि वृक्ष के नीचे, सिद्धार्थ गौतम - बुद्ध में रूपांतरित हो गए।